दोहा सलिला
दोहा पढ़िए चाह कर
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दोहा पढ़िये चाह कर, अनचाहे जा भूल
चाह मन बसे सुमन सम, अनचाहे हो शूल
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चाह अंजली मल हुई, श्वेता लाल गुलाल
दीपा दीपित दीप ले, चली उठाये भाल
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चाह शिवानी ने करी, शिव की झुलसा काम
चाह मिल गयी चाह को, रति तडपे विधि वाम
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जान जानकी में बसी, हुई जानकी गैर
देख विकल मिथलेश को, राम मनाएं खैर
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दशकंधर की चाह ने, सब कुछ किया तबाह
इन्द्रजीत कर पराजित, इन्द्रजीत भर आह
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चाह-चाह कर चाह को, बनो चाह की चाह.
बरबस चाहे चाह फिर, भरे आह कह वाह.
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चाह चाह की राह में, खड़ा देखता राह.
चाह चाह को खिझाने, रही दिखाती राह.
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चाह चाह से झगड़ कर, बनी चाह की चाह
चाह चाह से हारकर, जीत गया पा चाह
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चाह चाह की थाह ले, उथला या गंभीर?
चाह चली मुँह फेरकर, चाह न चाह फकीर
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चाह चाह कर चाह को, हो निर्जीव सजीव
डाह दाह से झुलसकर, हो सजीव निर्जीव
डाह दाह से झुलसकर, हो सजीव निर्जीव
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गौ-भाषा को नित दुहें, यदि दोहा की चाह
दो-दो हा-हा मिल करें, राही की परवाह
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चाह भारती बन सके, जगवाणी जग जीत
भारतीय ही राह में, बाधक इंग्लिश-प्रीत
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चाह-चाह कर चाह को, करी चाह की चाह
चाह न चाहे चाह को, चाह फँसा कर चाह
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर
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