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शनिवार, 19 अगस्त 2017

muktika

मुक्तिका
कजलियाँ
*
जोड़ती हैं मन को मन से कजलियाँ
मिटाती हैं अपरिचय को कजलियाँ
*
सुनातीं हैं हौसलों के गीत भी
मुश्किलों को जीत जातीं कजलियाँ
*
उदासी हावी न होने दो कभी
कहें बम्बुलियाँ सुनातीं कजलियाँ
*
तृषित धरती की मिटे जब प्यास तो
अंकुरित हो मुस्कुराती कजलियाँ
*
कान में खोंसे बड़े आशीष दे
विरासत को हँस जिलातीं कजलियाँ
*
धरा को रखना हरा सन्देश दे
सेतु रिश्तों का बनातीं कजलियाँ
*
'सलिल' माटी में मिले हो अंकुरित
बीज को उगना सिखातीं कजलियाँ
*
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
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