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बुधवार, 11 जुलाई 2018

ॐ दोहा शतक: सरस्वती कुमारी


दोहा शतक
सरस्वती कुमारी


जन्म: १.१२.१९७६
आत्मजा: श्रीमती प्रेमलता देवी-स्व. गजाधर प्रसाद
जीवनसाथी: श्री राजकुमार सिंह
शिक्षा: एम.ए.हिंदी
संप्रति: शिक्षिका
संपर्क: गवर्नमेंट मिडिल स्कूल, ईटानगर ७९११११, जिला पापुंपारे, (अरुणाचल प्रदेश) चलभाष: ७००५८८ ४०४६
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पालनकर्ता जगत के, हे देवों के देव!
प्रभु! मुझको लेकर शरण, रक्षा करो सदैव।।
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बढ़ता जग में पाप जब, मचता हाहाकार।
लेते प्रभु अवतार तब, करते जन उद्धार।।

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मल-मल तन निर्मल किया, मिटा न मन का मैल। माया के बाजार में, अंदर कितने गैल।। * निश-दिन नैन बरस रहे, अंधकार चहुँ ओर। बाँह छोड़ मँझधार में, पिया गए किस ओर।। * नारी से ही नर बना, नारी शक्ति महान। सदा सींचती प्रेम से, नारी है रस-खान।। * चरणों में माँ-बाप के, बहती गंगा धार। तन-मन उन पर वार दो, होगा बेड़ा पार।।
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झांसा देकर प्यार का, लूटें अस्मत रोज।
दंभ भरें पुरुषार्थ का, खोकर अपना ओज।।
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साजन बसे विदेश में, छोड़-छाड़ कर देश।
तन-मन की सुधि कौन ले, सजनी विरहन वेश।।
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जगमग-जगमग दीप सा, ह्रदय जेल दिन-रात।
मनमंदिर मोहन बसा, थोथी जग की बात।।
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पिया मिलन की रात री!, होगा मृदु अभिसार। घूँघट का पट खोलकर, दूँगी तन-मन वार।।
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पिया गये प्रदेश में, लेकर सारे साज। विरहन सजनी रो रही, क्यों कहते हमराज़।।
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पर्व मना कर क्या करें, उनके बिन इस बार। पिया बसे परदेश में, नाव बिना पतवार।।
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जनम -जन्म का साथ है, जन्मों की है प्रीत। साजन तेरा साथ पा, मन गाए नवगीत।।
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सज-धज आई राधिका, मनमोहन के पास। मल-मल गाल गुलाल रे!, करें हास-परिहास।।
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रंग-रंगिली राधिका, छैल-छबीला श्याम। रास रचाते जमुन-तट, दोनों आठों याम।।
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आया फागुन झूमकर, बरसे रंग-अबीर। खुशी लुटाते आज भी, राम, रहीम, कबीर।।
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पंडित जी उपदेश दें, मिले स्वर्ग; कर दान। पाई-पाई जोड़कर, होते नहीं महान।।
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क्रोध नाश का मूल है, क्रोध बनाता दास।
नाश सुयोधन का हुआ, रहा न कोई पास।।
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बहू नहीं बेटी कहो, हो रिश्तों का मान। बहू-बहू कहकर सभी, लेते उसकी जान।।
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झूठे सुख को सुख कहे, करता है मन मोह। छोड़ चला जल मीन को, करता नहीं विछोह।।
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सास बहू सह बेटियाँ, अलग-अलग किरदार। धारावाहिक में लगें, तीर छुरी तलवार।।
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पिया बसे परदेश में, आया है मधुमास। विरह तपन कैसे बुझे, कौन बुझाये प्यास।।
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पीकर प्याला प्रेम का, मीरा हुई मलंग। जोगन बन फिरती रही, जैसे उड़े पतंग।।
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जाँच किए बिन लोन दो, सर! मत करो सवाल। बड़े-बड़ों की बात है, मत लो शीश बवाल।।
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नव पल्लव डाली नई,निवल बसंत बहार। वन-उपवन नूतन नवल, भ्रमर करे मनुहार।।
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साथ समय के जो चला, जग में वही महान कुसमय का फल भी कहीं, होता अमिय समान।।
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मीत मिला मन का नहीं, कैसे गाए गीत। प्रीत प्रणय की बात को, समझे झूठी रीत।।
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काया-माया का कभी, भूल न करो गुमान। ढलते जवानी धूप सी, छाया रहे समान।।
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पिया बसे परदेश में, मन अंदेशा घोर सौतन सह सुख पा रहे, होंगे छलिया चोर।।
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रघुवर के सँग जानकी, खेले रंग-अबीर। भर पिचकारी नयन से, डाले स्नेहिल नीर।।
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उपवन पुष्पित पल्लवित, भ्रमर करे गुंजार। आनंदित उमगित धरा, हँस नभ रही निहार।।
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जब-जब मन हुलसित हुआ, हिय फूटा नवगीत। नवल रूप हरदम मिला, जग-जीवन को जीत।।
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आया फागुन झूमकर, गोरी गाल-गुलाल। उमग-उमग खेले पिया, पाकर संग निहाल।।
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रुको! मदन सज लूँ पुलक, तब तो अभिसार। भरकर बाँहों में मुझे, करना जी भर प्यार।।
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जागो! वीर जवान तुम, अरि पर करो प्रहार। सुनो-सुनो माँ भारती, करती सतत पुकार।।
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मंदिर-मंदिर घूमकर, ढूँढ रहा भगवान।
मन-मंदिर झाँका नहीं, छिपा वहीं शैतान।।
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आया फागुन झूमकर, वन-उपवन रंगीन। आई ऋतु प्रिय-मिलन की, मौसम लगे हसीन।।
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महके वेणी-मोगरा, नैनन कजरा धार। अधराधर लाली लगा, प्रिय! लगती रतनार।।
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कौन साजना सा जना, है साजन के साथ। किसे बुलाऊँ नाथ मैं, लिए साज ना नाथ!!
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खनके कंगन-चूड़ियाँ, पायल गाए गीत। आया मौसम मिलन का, आ जा रे मन-मीत!!
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सजना है सजना मुझे, तेरे ही अनुरूप। लागी तुझसे ही लगन, तू ही मेरा भूप।।
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मत कर रे मन! मूढ़ तू , तन पर झूठ गुमान।
कर ले कर्म महान तब, सद्गति मिले सुजान।।
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तुम बिना सूना दिन लगे, तुम बिन सूनी रैन। तड़प रहा दिल साजना, मिलने को बेचैन।।
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ताल-तलैया सब भरे, आई ऐसी बाढ़। दादुर मोर हुलस रहे, मुस्काता आषाढ़।।
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गुरु सम दाता जगत में, दूजा नहीं महान। निर्मल पावन ह्रदय कर, भर दे अंतस ज्ञान।।
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शिव देवों के देव हैं, महादेव जगनाथ। पालनकर्ता जगत के, शिव अनाथ के नाथ।।
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विपदा आती देखकर, रंग न बदले मीत। राग-द्वेष पल में भुला, करता सच्ची प्रीत।।
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ढूँढ ज़रा ए ज़िंदगी!, तू अपनी पहचान। कर्म कर बदल भाग्य दे,लिख अपना उन्वान।।
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स्याह यामिनी में सुने, जब कोयल की कूक। धड़क-धड़क धड़के जिया, मन में उठती हूक।।
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सत्य कभी झुकता नहीं, सत है सच्चा मीत। सत्य सरल व्यवहार से, नर लेता जग जीत।।
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जग-जीवन कहते जिसे, माया का बाज़ार। बाहर-बाहर सब हँसे, भीतर है लाचार।।
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मधुर मृदुल व्यवहार से, लेते थे मन मोह। मधुर-मधुर दो बोल कह, प्रिय! दे गए विछोह।।
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फूल दिया महबूब को, था खुश बड़ा मिजाज। बोली हँसकर सुन प्रिये!, तू मेरा सरराज।।
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तन पर रमा भभूत शिव, करें हलाहल-पान।
हर संकट हर दे रहे, भक्तों को वरदान।।
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गेहूँ झूमे खेत में, चना बजाए ढोल। चूनर धानी पहनकर, सरसों दी शुभ बोल।।
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राम दरस की आस में, द्वार खड़े रैदास। मन माया में भटकता, कैसे जाए पास।।
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साजन तेरी प्रीत में, खोया मन का चैन। मिलने को आतुर रहे, आकुल-व्याकुल नैन।।
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चाँद चाँदनी से कहे, तू है बड़ी हसीन। बोली हँसकर चाँदनी, तेरी छटा नवीन।।
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गुल गुलाब पर है फिदा, गुल गुलाब हैरान। गुल से गुल है कह रहा, तू ही मेरी जान।।
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फूल फूल को खत दिया, भेजा सुर्ख गुलाब। दिखा अक्स था फूल में, मन महका महताब।।
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राजनीति विष बेल ने, बाँट दिया है देश। भाग देश का जो रहा, हाय! बना परदेश।।
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मन मेरा फागुन हुआ, खेले रंग हजार। हुआ बावला प्रीत में, झूमे संग बहार।।
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नश्वर तन क्यों मोहता, मन को बारंबार। मन लें चल गुरु शरण में, होगा बेड़ा पार।।
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झूठे सुख की खोज में, भटक रहा इंसान। ठगी-डकैती कर कहे, हूँ राजा-दीवान।।
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भारत पावन देश है, बहुत सुखद संयोग। खेलें आ भगवान भी, मिल-जुल रहते लोग।।
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मीठी वाणी बोलिए, कानों में रस घोल। कहें जगत में सब तभी, बोली है अनमोल।।
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नयन नयन को देखकर, करने लगा धमाल। नयन-नयन से कह रहा, तू ने किया कमाल।।
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वर्ण-मात्रा-मेल से, बनता छंद विधान। यति-गति लय के मिलन से, बढ़ता भाव निधान।।
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मन से मन जब मिल गया, प्रीत मिली अनमोल। भरता अब तन आह!है, जान न पाया मोल।।
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सरसों के सर फूल है, गेहूँ के सिर मौर। मन-मन हरषाए कृषक, खाए भर-भर कौर।।
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सखा!पूछ मत प्रीत में, दो नैनों का हाल। रैन-दिवस कटते नहीं, जीना हुआ मुहाल।।
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नज़र नज़र से मिली जब, दिल का गया करार। नज़र नज़र पर कर गई, पल में तीखा वार।।
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सभा बीच नारी खड़ी, करती रही गुहार।
मानवता निर्बल हुई, घूरे आँख पसार।।
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बात न पूछो विरह की, पल-पल बढ़ती पीर। उठती मन में हूक सी, नैन बहाये नीर।।
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धन-दौलत की चाह ने, लूटा निज सम्मान। पद गरिमा दोनों गए, बचा रहा अभिमान।।
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रही सींचती अमृत से, ताकि बने फौलाद। जालिम निकली हाय रे!, अपनी ही औलाद।।
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काम क्रोध मद कामना, चारों ही बलवान।
शरण गहे बिन नाथ की, कटे नहीं व्यवधान।।
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जीवन नैया भँवर में, कैसे उतरे पार। गुरु दयालु ने बाँह गह ,पार किया मझँधार ।।
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मोह निशा के जाल में, फँसता मन बेचैन। गुरु अँधियारा दूर कर, दें उजियारा चैन ।। * साथ अहिंसा के चला, बना सत्य हथियार। दूर फिरंगी को किया, जीत दिया संसार।। * नारी मन अबला नहीं, सिर्फ न कोमल जान। जब-जब संकट में पड़ी, निकली मुट्ठी तान।।
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मन से मन का मिलन ही, होता सच्चा प्यार। तन से तन का मिलन तो, थोथा है व्यापार।। * द्वार खड़े प्रियतम सखी!, कैसे जाऊँ पास। मन मेरा निर्मल नहीं, कैसे मिले सुवास।। *
मोहन तेरी बाँसुरी, लेती है मन मोह।
काम-काज सब छोड़कर, रही बाट मैं जोह।।
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खड़ी कामिनी द्वार पर,कर सोलह सिंगार। नयन कटारी से करे ,प्रिय पर विहँस प्रहार।।
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मन मेरा पंछी प्रिया!, उड़ नापे आकाश। शुचिते!तूने बाँह गह, हिय भर दिया प्रकाश।।
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पुष्प-पुष्प में सिय लखें, मोहक छवि रघुनाथ। नत पलकों से कह रहीं, तुम ही मेरे नाथ।।
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लिख-लिख पाती मैं थकी, आया नहीं जवाब। क्यों कहते थे झूठ प्रिय!, 'तुम हो सनम गुलाब'।।
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साजन तेरी प्रीत में, रहा नहीं कुछ भान। छूट गया घर-बार सब, वैरी हुआ जहान।।
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कोयल कूके बाग में, बौराया है आम। फूल-फूल को चूमकर, वसुधा हुई ललाम।। * आज प्रणय की रात है, हो जी भर अभिसार। आ जा प्रियतम!मैं करूँ, तुझको जी भर प्यार।। * उदित भानु नभ में हुआ, लिए अनंत प्रकाश। कर घूँघट भागी निशा,हुआ तिमिर का नाश।।
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कमलनयन रघुनाथ के, सीता-मन लें मोह। विनत नयन उठ-मिल-झुकें, कर खुद से विद्रोह।।
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मन मंदिर प्रियतम !बसे, कैसे खोलूँ नैन। मधुरिम मधु रस घोल कर, दिया ह्रदय को चैन।।
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श्याम नाम सुमिरन करो, होगा बेड़ा पार। डरना फिर किस बात से, रक्षक जब सरकार।।
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मछली तड़पे जल बिना, मन तड़पे बिन नेट। थाली में रोटी न हो, हो मोबाइल सेट।।
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पीत चुनर ओढ़े धरा, खुद पर करती नाज़। बीत शिशिर के दिन गए, घर आए ऋतुराज।।
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पास एक था मन सखी, दिया श्याम को दान। इस विरही मन को उधो, देने आया ज्ञान।। * मय छलकाता है अधर,, नैनन अंजन धार। मुखमण्डल है चाँद सा, प्रिय! लगती कचनार।। * पिया मिलन की आस में, ठाढ़ी सजनी द्वार। खाली सेज न भा रही, व्याकुल पंथ निहार।। * कोरा कागज ही रहा, ये मन धवल सफेद। रवि सा चमका गगन में, मिटा सभी मतभेद।। * माटी से पैदा हुआ, माटी मिला शरीर। भज ले मन प्रभु नाम को, क्यों हो रहा अधीर।। * जल से ही जीवन बना,जल ही है आधार। रखो बचाकर जल सदा, जल जीवन का सार।।
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राह तकी नैना थके, दिखे नही भरतार।
नागिन सी वेणी डँसे, दग्ध करे सिंगार।।
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सुख-दुख दोनों में कलम, बनी रही हथियार।
घायल मन की पीर हर, लेती कलम उबार।।
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समय-समय की बात है, समय-समय का खेल।
समय कराता दुश्मनी, समय कराये मेल।।
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अहंकार से मिट गया, कुल, वैभव, सम्मान।
सोने की लंका जली, मिला अमित अपमान।।
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शिक्षा पाने का मिले, बच्चों को अधिकार।
स्वस्थ, निरोगी, सुखी हों, मिले जगत का प्यार।।
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गुरु रहता गुरु ही सदा, लो उससे गुरु-ज्ञान।
गुरुता तम को दूर कर, मेटे भ्रम-अभिमान।।
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हो काँटों की राह या, फूलों की हो सेज।
दोनो में ही सम रखे, केवल गुरु का तेज।।
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अंतर्मन जब व्यथित हो, बाहर साधो मौन।
ताप घटे मन शांत हो, अंतस निर्मल गौण।।
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