ॐ
दोहा शतक
सरस्वती कुमारी
जन्म: १.१२.१९७६।
आत्मजा: श्रीमती प्रेमलता देवी-स्व. गजाधर प्रसाद।
जीवनसाथी: श्री राजकुमार सिंह।
शिक्षा: एम.ए.हिंदी।
संप्रति: शिक्षिका।
संपर्क: गवर्नमेंट मिडिल स्कूल, ईटानगर ७९११११, जिला पापुंपारे, (अरुणाचल प्रदेश)। चलभाष: ७००५८८ ४०४६।
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पालनकर्ता जगत के, हे देवों के देव!
दोहा शतक
सरस्वती कुमारी
जन्म: १.१२.१९७६।
आत्मजा: श्रीमती प्रेमलता देवी-स्व. गजाधर प्रसाद।
जीवनसाथी: श्री राजकुमार सिंह।
शिक्षा: एम.ए.हिंदी।
संप्रति: शिक्षिका।
संपर्क: गवर्नमेंट मिडिल स्कूल, ईटानगर ७९११११, जिला पापुंपारे, (अरुणाचल प्रदेश)। चलभाष: ७००५८८ ४०४६।
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पालनकर्ता जगत के, हे देवों के देव!
प्रभु! मुझको लेकर शरण, रक्षा करो सदैव।।
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बढ़ता जग में पाप जब, मचता हाहाकार।
लेते प्रभु अवतार तब, करते जन उद्धार।।
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मल-मल तन निर्मल किया, मिटा न मन का मैल।
माया के बाजार में, अंदर कितने गैल।।
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निश-दिन नैन बरस रहे, अंधकार चहुँ ओर।
बाँह छोड़ मँझधार में, पिया गए किस ओर।।
*
नारी से ही नर बना, नारी शक्ति महान।
सदा सींचती प्रेम से, नारी है रस-खान।।
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चरणों में माँ-बाप के, बहती गंगा धार।
तन-मन उन पर वार दो, होगा बेड़ा पार।।
*
झांसा देकर प्यार का, लूटें अस्मत रोज।
दंभ भरें पुरुषार्थ का, खोकर अपना ओज।।
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साजन बसे विदेश में, छोड़-छाड़ कर देश।
तन-मन की सुधि कौन ले, सजनी विरहन वेश।।
*
जगमग-जगमग दीप सा, ह्रदय जेल दिन-रात।
मनमंदिर मोहन बसा, थोथी जग की बात।।
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पिया मिलन की रात री!, होगा मृदु अभिसार।
घूँघट का पट खोलकर, दूँगी तन-मन वार।।
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पिया गये प्रदेश में, लेकर सारे साज।
विरहन सजनी रो रही, क्यों कहते हमराज़।।
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पर्व मना कर क्या करें, उनके बिन इस बार।
पिया बसे परदेश में, नाव बिना पतवार।।
*
जनम -जन्म का साथ है, जन्मों की है प्रीत।
साजन तेरा साथ पा, मन गाए नवगीत।।
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सज-धज आई राधिका, मनमोहन के पास।
मल-मल गाल गुलाल रे!, करें हास-परिहास।।
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रंग-रंगिली राधिका, छैल-छबीला श्याम।
रास रचाते जमुन-तट, दोनों आठों याम।।
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आया फागुन झूमकर, बरसे रंग-अबीर।
खुशी लुटाते आज भी, राम, रहीम, कबीर।।
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पंडित जी उपदेश दें, मिले स्वर्ग; कर दान।
पाई-पाई जोड़कर, होते नहीं महान।।
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क्रोध नाश का मूल है, क्रोध बनाता दास।
नाश सुयोधन का हुआ, रहा न कोई पास।।
*
बहू नहीं बेटी कहो, हो रिश्तों का मान।
बहू-बहू कहकर सभी, लेते उसकी जान।।
*
झूठे सुख को सुख कहे, करता है मन मोह।
छोड़ चला जल मीन को, करता नहीं विछोह।।
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सास बहू सह बेटियाँ, अलग-अलग किरदार।
धारावाहिक में लगें, तीर छुरी तलवार।।
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पिया बसे परदेश में, आया है मधुमास।
विरह तपन कैसे बुझे, कौन बुझाये प्यास।।
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पीकर प्याला प्रेम का, मीरा हुई मलंग।
जोगन बन फिरती रही, जैसे उड़े पतंग।।
*
जाँच किए बिन लोन दो, सर! मत करो सवाल।
बड़े-बड़ों की बात है, मत लो शीश बवाल।।
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नव पल्लव डाली नई,निवल बसंत बहार।
वन-उपवन नूतन नवल, भ्रमर करे मनुहार।।
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साथ समय के जो चला, जग में वही महान
कुसमय का फल भी कहीं, होता अमिय समान।।
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मीत मिला मन का नहीं, कैसे गाए गीत।
प्रीत प्रणय की बात को, समझे झूठी रीत।।
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काया-माया का कभी, भूल न करो गुमान।
ढलते जवानी धूप सी, छाया रहे समान।।
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पिया बसे परदेश में, मन अंदेशा घोर
सौतन सह सुख पा रहे, होंगे छलिया चोर।।
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रघुवर के सँग जानकी, खेले रंग-अबीर।
भर पिचकारी नयन से, डाले स्नेहिल नीर।।
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उपवन पुष्पित पल्लवित, भ्रमर करे गुंजार।
आनंदित उमगित धरा, हँस नभ रही निहार।।
*
जब-जब मन हुलसित हुआ, हिय फूटा नवगीत।
नवल रूप हरदम मिला, जग-जीवन को जीत।।
*
आया फागुन झूमकर, गोरी गाल-गुलाल।
उमग-उमग खेले पिया, पाकर संग निहाल।।
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रुको! मदन सज लूँ पुलक, तब तो अभिसार।
भरकर बाँहों में मुझे, करना जी भर प्यार।।
*
जागो! वीर जवान तुम, अरि पर करो प्रहार।
सुनो-सुनो माँ भारती, करती सतत पुकार।।
*
मंदिर-मंदिर घूमकर, ढूँढ रहा भगवान।
मन-मंदिर झाँका नहीं, छिपा वहीं शैतान।।
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आया फागुन झूमकर, वन-उपवन रंगीन।
आई ऋतु प्रिय-मिलन की, मौसम लगे हसीन।।
*
महके वेणी-मोगरा, नैनन कजरा धार।
अधराधर लाली लगा, प्रिय! लगती रतनार।।
*
कौन साजना सा जना, है साजन के साथ।
किसे बुलाऊँ नाथ मैं, लिए साज ना नाथ!!
*
खनके कंगन-चूड़ियाँ, पायल गाए गीत।
आया मौसम मिलन का, आ जा रे मन-मीत!!
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सजना है सजना मुझे, तेरे ही अनुरूप।
लागी तुझसे ही लगन, तू ही मेरा भूप।।
*
मत कर रे मन! मूढ़ तू , तन पर झूठ गुमान।
कर ले कर्म महान तब, सद्गति मिले सुजान।।
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तुम बिना सूना दिन लगे, तुम बिन सूनी रैन।
तड़प रहा दिल साजना, मिलने को बेचैन।।
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ताल-तलैया सब भरे, आई ऐसी बाढ़।
दादुर मोर हुलस रहे, मुस्काता आषाढ़।।
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गुरु सम दाता जगत में, दूजा नहीं महान।
निर्मल पावन ह्रदय कर, भर दे अंतस ज्ञान।।
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शिव देवों के देव हैं, महादेव जगनाथ।
पालनकर्ता जगत के, शिव अनाथ के नाथ।।
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विपदा आती देखकर, रंग न बदले मीत।
राग-द्वेष पल में भुला, करता सच्ची प्रीत।।
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ढूँढ ज़रा ए ज़िंदगी!, तू अपनी पहचान।
कर्म कर बदल भाग्य दे,लिख अपना उन्वान।।
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स्याह यामिनी में सुने, जब कोयल की कूक।
धड़क-धड़क धड़के जिया, मन में उठती हूक।।
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सत्य कभी झुकता नहीं, सत है सच्चा मीत।
सत्य सरल व्यवहार से, नर लेता जग जीत।।
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जग-जीवन कहते जिसे, माया का बाज़ार।
बाहर-बाहर सब हँसे, भीतर है लाचार।।
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मधुर मृदुल व्यवहार से, लेते थे मन मोह।
मधुर-मधुर दो बोल कह, प्रिय! दे गए विछोह।।
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फूल दिया महबूब को, था खुश बड़ा मिजाज।
बोली हँसकर सुन प्रिये!, तू मेरा सरराज।।
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तन पर रमा भभूत शिव, करें हलाहल-पान।
हर संकट हर दे रहे, भक्तों को वरदान।।
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गेहूँ झूमे खेत में, चना बजाए ढोल।
चूनर धानी पहनकर, सरसों दी शुभ बोल।।
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राम दरस की आस में, द्वार खड़े रैदास।
मन माया में भटकता, कैसे जाए पास।।
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साजन तेरी प्रीत में, खोया मन का चैन।
मिलने को आतुर रहे, आकुल-व्याकुल नैन।।
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चाँद चाँदनी से कहे, तू है बड़ी हसीन।
बोली हँसकर चाँदनी, तेरी छटा नवीन।।
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गुल गुलाब पर है फिदा, गुल गुलाब हैरान।
गुल से गुल है कह रहा, तू ही मेरी जान।।
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फूल फूल को खत दिया, भेजा सुर्ख गुलाब।
दिखा अक्स था फूल में, मन महका महताब।।
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राजनीति विष बेल ने, बाँट दिया है देश।
भाग देश का जो रहा, हाय! बना परदेश।।
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मन मेरा फागुन हुआ, खेले रंग हजार।
हुआ बावला प्रीत में, झूमे संग बहार।।
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नश्वर तन क्यों मोहता, मन को बारंबार।
मन लें चल गुरु शरण में, होगा बेड़ा पार।।
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झूठे सुख की खोज में, भटक रहा इंसान।
ठगी-डकैती कर कहे, हूँ राजा-दीवान।।
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भारत पावन देश है, बहुत सुखद संयोग।
खेलें आ भगवान भी, मिल-जुल रहते लोग।।
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मीठी वाणी बोलिए, कानों में रस घोल।
कहें जगत में सब तभी, बोली है अनमोल।।
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नयन नयन को देखकर, करने लगा धमाल।
नयन-नयन से कह रहा, तू ने किया कमाल।।
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वर्ण-मात्रा-मेल से, बनता छंद विधान।
यति-गति लय के मिलन से, बढ़ता भाव निधान।।
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मन से मन जब मिल गया, प्रीत मिली अनमोल।
भरता अब तन आह!है, जान न पाया मोल।।
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सरसों के सर फूल है, गेहूँ के सिर मौर।
मन-मन हरषाए कृषक, खाए भर-भर कौर।।
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सखा!पूछ मत प्रीत में, दो नैनों का हाल।
रैन-दिवस कटते नहीं, जीना हुआ मुहाल।।
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नज़र नज़र से मिली जब, दिल का गया करार।
नज़र नज़र पर कर गई, पल में तीखा वार।।
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सभा बीच नारी खड़ी, करती रही गुहार।
मानवता निर्बल हुई, घूरे आँख पसार।।
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बात न पूछो विरह की, पल-पल बढ़ती पीर।
उठती मन में हूक सी, नैन बहाये नीर।।
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धन-दौलत की चाह ने, लूटा निज सम्मान।
पद गरिमा दोनों गए, बचा रहा अभिमान।।
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रही सींचती अमृत से, ताकि बने फौलाद।
जालिम निकली हाय रे!, अपनी ही औलाद।।
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काम क्रोध मद कामना, चारों ही बलवान।
शरण गहे बिन नाथ की, कटे नहीं व्यवधान।।
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जीवन नैया भँवर में, कैसे उतरे पार।
गुरु दयालु ने बाँह गह ,पार किया मझँधार ।।
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मोह निशा के जाल में, फँसता मन बेचैन।
गुरु अँधियारा दूर कर, दें उजियारा चैन ।।
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साथ अहिंसा के चला, बना सत्य हथियार।
दूर फिरंगी को किया, जीत दिया संसार।।
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नारी मन अबला नहीं, सिर्फ न कोमल जान।
जब-जब संकट में पड़ी, निकली मुट्ठी तान।।
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मन से मन का मिलन ही, होता सच्चा प्यार।
तन से तन का मिलन तो, थोथा है व्यापार।।
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द्वार खड़े प्रियतम सखी!, कैसे जाऊँ पास।
मन मेरा निर्मल नहीं, कैसे मिले सुवास।।
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मोहन तेरी बाँसुरी, लेती है मन मोह।
काम-काज सब छोड़कर, रही बाट मैं जोह।।
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खड़ी कामिनी द्वार पर,कर सोलह सिंगार।
नयन कटारी से करे ,प्रिय पर विहँस प्रहार।।
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मन मेरा पंछी प्रिया!, उड़ नापे आकाश।
शुचिते!तूने बाँह गह, हिय भर दिया प्रकाश।।
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पुष्प-पुष्प में सिय लखें, मोहक छवि रघुनाथ।
नत पलकों से कह रहीं, तुम ही मेरे नाथ।।
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लिख-लिख पाती मैं थकी, आया नहीं जवाब।
क्यों कहते थे झूठ प्रिय!, 'तुम हो सनम गुलाब'।।
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साजन तेरी प्रीत में, रहा नहीं कुछ भान।
छूट गया घर-बार सब, वैरी हुआ जहान।।
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कोयल कूके बाग में, बौराया है आम।
फूल-फूल को चूमकर, वसुधा हुई ललाम।।
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आज प्रणय की रात है, हो जी भर अभिसार।
आ जा प्रियतम!मैं करूँ, तुझको जी भर प्यार।।
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उदित भानु नभ में हुआ, लिए अनंत प्रकाश।
कर घूँघट भागी निशा,हुआ तिमिर का नाश।।
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कमलनयन रघुनाथ के, सीता-मन लें मोह।
विनत नयन उठ-मिल-झुकें, कर खुद से विद्रोह।।
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मन मंदिर प्रियतम !बसे, कैसे खोलूँ नैन।
मधुरिम मधु रस घोल कर, दिया ह्रदय को चैन।।
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श्याम नाम सुमिरन करो, होगा बेड़ा पार।
डरना फिर किस बात से, रक्षक जब सरकार।।
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मछली तड़पे जल बिना, मन तड़पे बिन नेट।
थाली में रोटी न हो, हो मोबाइल सेट।।
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पीत चुनर ओढ़े धरा, खुद पर करती नाज़।
बीत शिशिर के दिन गए, घर आए ऋतुराज।।
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पास एक था मन सखी, दिया श्याम को दान। इस विरही मन को उधो, देने आया ज्ञान।। * मय छलकाता है अधर,, नैनन अंजन धार। मुखमण्डल है चाँद सा, प्रिय! लगती कचनार।। * पिया मिलन की आस में, ठाढ़ी सजनी द्वार। खाली सेज न भा रही, व्याकुल पंथ निहार।। * कोरा कागज ही रहा, ये मन धवल सफेद। रवि सा चमका गगन में, मिटा सभी मतभेद।। * माटी से पैदा हुआ, माटी मिला शरीर। भज ले मन प्रभु नाम को, क्यों हो रहा अधीर।। * जल से ही जीवन बना,जल ही है आधार। रखो बचाकर जल सदा, जल जीवन का सार।।
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पास एक था मन सखी, दिया श्याम को दान। इस विरही मन को उधो, देने आया ज्ञान।। * मय छलकाता है अधर,, नैनन अंजन धार। मुखमण्डल है चाँद सा, प्रिय! लगती कचनार।। * पिया मिलन की आस में, ठाढ़ी सजनी द्वार। खाली सेज न भा रही, व्याकुल पंथ निहार।। * कोरा कागज ही रहा, ये मन धवल सफेद। रवि सा चमका गगन में, मिटा सभी मतभेद।। * माटी से पैदा हुआ, माटी मिला शरीर। भज ले मन प्रभु नाम को, क्यों हो रहा अधीर।। * जल से ही जीवन बना,जल ही है आधार। रखो बचाकर जल सदा, जल जीवन का सार।।
*
राह तकी नैना थके, दिखे नही भरतार।
नागिन सी वेणी डँसे, दग्ध करे सिंगार।।
*
सुख-दुख दोनों में कलम, बनी रही हथियार।
घायल मन की पीर हर, लेती कलम उबार।।
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समय-समय की बात है, समय-समय का खेल।
समय कराता दुश्मनी, समय कराये मेल।।
*
अहंकार से मिट गया, कुल, वैभव, सम्मान।
सोने की लंका जली, मिला अमित अपमान।।
*
शिक्षा पाने का मिले, बच्चों को अधिकार।
स्वस्थ, निरोगी, सुखी हों, मिले जगत का प्यार।।
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गुरु रहता गुरु ही सदा, लो उससे गुरु-ज्ञान।
गुरुता तम को दूर कर, मेटे भ्रम-अभिमान।।
*
हो काँटों की राह या, फूलों की हो सेज।
दोनो में ही सम रखे, केवल गुरु का तेज।।
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अंतर्मन जब व्यथित हो, बाहर साधो मौन।
ताप घटे मन शांत हो, अंतस निर्मल गौण।।
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राह तकी नैना थके, दिखे नही भरतार।
नागिन सी वेणी डँसे, दग्ध करे सिंगार।।
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सुख-दुख दोनों में कलम, बनी रही हथियार।
घायल मन की पीर हर, लेती कलम उबार।।
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समय-समय की बात है, समय-समय का खेल।
समय कराता दुश्मनी, समय कराये मेल।।
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अहंकार से मिट गया, कुल, वैभव, सम्मान।
सोने की लंका जली, मिला अमित अपमान।।
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शिक्षा पाने का मिले, बच्चों को अधिकार।
स्वस्थ, निरोगी, सुखी हों, मिले जगत का प्यार।।
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गुरु रहता गुरु ही सदा, लो उससे गुरु-ज्ञान।
गुरुता तम को दूर कर, मेटे भ्रम-अभिमान।।
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हो काँटों की राह या, फूलों की हो सेज।
दोनो में ही सम रखे, केवल गुरु का तेज।।
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अंतर्मन जब व्यथित हो, बाहर साधो मौन।
ताप घटे मन शांत हो, अंतस निर्मल गौण।।
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