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रविवार, 15 जुलाई 2018

ॐ दोहा शतक शशि त्यागी

ॐ दोहा शतक शशि त्यागी 

नाम - शशि त्यागी शिक्षा-एम. ए. हिन्दी, बी. एड, गायन प्रभाकर, बोम्बे आर्ट संप्रति -अध्यापिका दिल्ली पब्लिक स्कूल, मुरादाबाद निवास - 38 अमरोहा ग्रीन जोया रोड अमरोहा पिन कोड 244221 उत्तर प्रदेश साहित्यिक परिचय - प्रकाशित साहित्य -साझा संकलन 1 • वर्ण पिरामिड- अथ से इति 2 • शत हाइकुकार -शताब्दी वर्ष 3 • ताँका की महक 4• अंतर्राष्ट्रीय ई मैगजी़न "प्रयास" कनाडा से प्रकाशित पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित



















भोले बालक चीन दिए, मुग़ल-काल बतलाय। 
दर्म के रक्षा कीजिए, गुरु गोबिंद सहाय। 
पंच प्यारे साधते, हाथों में तलवार।
सिक्ख समर्पण झलकता धर्म हेतु हर बार। 
सदा गवाही दे रहा, जलियाँवाला बाग़। 
आज़ादी कि बली चढ़ा, देश-धर्म अनुराग. 
निर्दयी वह दायर था, दिन था बहुत विशेष। 
सत्य प्रमाणित कर रहे, गोलिन के अवशेष. 
आज़ादी की नीव गड, नर-नारी बलिदान।
आज़ादी तब ही मिली, भारत तू यह जान. 
भोले बालक चिन दिए,मुगल काल बतलाय। 
धर्म की रक्षा कीजिए,गुरु गोविंद सहाय।। 7 
पञ्च प्यारे साधते,हाथों में तलवार। 
सिक्ख समर्पण झलकता,धर्म हेतु हर बार।। 8 
सदा गवाही दे रहा, जलियाँवाला बाग। 
आज़ादी की बलि चढ़ा, देश धर्म अनुराग।। 9 
निर्दयी वह डायर था,दिन था बहुत विशेष। 
सत्य प्रमाणित कर रहे,गोलिन के अवशेष।। 10 
आजादी नींव गड़ा, नर-नारी बलिदान। 
आजादी तब ही मिली,भारत यह तू जान।।11 
घोर कलयुगी काल में,हीरे-मोती मान। 
मनभावन सुख देत है,अविकारी संतान।। 12 
नोंक-झोंक लगती भली, जीवन साथी-साथ। 
इक दूजे को छेड़ते,ले हाथों में हाथ।। 13 
हँसी ठिठोली हो भली, बिखरे हों सब रंग। 
कुछ पल सभी बिताइए,अनमोल मीत संग।। 14 
घर आए अतिथि का, खूब कीजिए मान। 
यश-कीर्ति घर से चले, यही लीजिए जान।। 15 
जीवन में उल्लास हो,रख मन में विश्वास। 
मिलेगा फल निश्चित ही , जिसको जिसकी आस।।16 
अंग-अंग में प्रभु रमा,शुचि गंगा माँ गाय। 
नित इनकी सेवा करो,मन कोमल हो जाए।। 17 
जून माह घर यूँ लगे,हो शीतल जल कूप। 
तन को शीतलता मिले,मन के हो अनुरूप।। 18 
धरा-अंबर डोल रहा,अंधड़ रहयो डरा। 
मानव के दुष्कर्म का, भरन लगा है घड़ा।। 19 
पढ़ा-लिखा संतान को, भेज दिया परदेस। 
सेवा करने के लिए, किसको दें आदेश।। 20 
पढ़-लिखकर उन्नति करे,करे देश हित काम। 
र क्षेत्र विकसित करे,करे देश का नाम।।२१ 






31 
निशिदिन सुमिरन कीजिए,लीजै हरि का नाम। 
हरख-हरख जस गाइए,सुघरें बिगड़े काम।। 32 
खड़े प्रतीक्षा कर रहे, अमलतास के पेड़। 
कब लाओगे घट भरे, काले काले मेघ।। 33 
भगवन अब तो खेंच दे, इंद्र धनुष की रेख। 
मानव मन पुलकित हुआ,अंबर मेघा देख।। 34 
रूठे सुजन मनाइए,बढ़े प्रीत दिन रैन। 
तम में दीप जलाइए,भरे ज्ञान से नैन।। 34 
मीठी वाणी जग सुने,सुनकर हर्षित होय। 
बालकपन में जो गुने,वही कोकिला होय।। 35 
प्रात:शीतल पवन चली,
36
कन्या भ्रूण बचाइए, बेटी घर की  शान।
घर खुशहाली लाइए,समृद्धि की पहचान।।
37
वधू सुता सम जानिए,इनको दो सम्मान।
देहरी सेतु मानिए, मत कीजै अपमान।।
38
मात-पिता बेटी जनी, सदा देत सम्मान।
देस पराई हो चली,रखती सदा ध्यान।।
39
मुगलों ने घूंघट दिया,शिक्षा का किया नाश।
तब नारी अनपढ़ बनी,हुआ विकास विनाश।।
40
झाँसी की लक्ष्मीबाई, घूँघट कोसों दूर।
लम्बा सा घूँघट ओढ़े, नही चाहिए हूर।।
41
लम्बा घूँघट काढ़ के, नैनन को मटकाय।
निशिदिन ताना मार के,घूमन को लठियाय।।
42
कपटी को क्या देखता,अपने मन को देख।
कपट यदि हृदय छा गया,खींच लक्ष्मण रेख।।
43
मानव जब क्रोधित हुआ,बुद्धि भ्रष्ट हो जाय।
मनवा इसको साध ले,जीवन सफल बनाय।।
44
नया जमाना आ गया,नारी करती काम।
नव युग में है छा गया,अब नारी का नाम।।
45
चक्कर धिन्नी से दिन कटे, दुखिया  रोती रात।
जोहे बाट सखियन की,हो मन की ही बात।।
46
इकलौती संतान को,बहुत लड़ाया लाड।
ज्ञानी हो वह इसलिए ,माँ ने तोड़े हाड।।
47
मीठा जल वहीं मिले, जहाँ हो गहरा कूप।
मन गहराई राखिए,बनना हो यदि भूप।।
48
सब जन मिलकर बैठिए,खुश रहिए दिन-रात।
हँस बोल कह दीजिए,करिए मन की बात।।
49
सुख में सब साथी मिले,है यह जग की रीत।
बुरे समय में साथ दे,सो ही सच्चा मीत।।
50
भूलवश कभी मत करो ,नारी का अपमान।
मान हानि दावा सही,तब ही मिले सम्मान।।
51
अमरोहा के आम भी, होते हैं कुछ खास।
विशेष प्रजाति के सभी,आते सबको रास।।
52
मुँह छुट दावत में सभी,छबड़े में थे आम।
खास-खास पहले चखे,खास हुए फिर आम।।
53
मंडी में थे बिक रहे ,आम जो न थे खास।
विदेश को भेजे गए ,जो थे खासम-खास।।
54
लँगड़ा खासा बिक रहा,चौंसा बिकता आम।
आम की दावत में रखे,खास सभी थे आम।।
55
आम-आम चिल्ला रहा,जन-मन भाता खास।
खास सभी को सोहता,आम ही बिकता खास।।
56
मुंबई के अल्फाँसो, ठेले सजते खास।
चाकू से कटते रहे, जो थे खासम खास।।
57
शहर का तालाब पटा,बने अनेक मकान।
बरसाती पानी भरा, डूबी सभी दुकान ।।
58
हाथ जोड़ जग कर रहा, अच्छे दिन की आस।
राम राज इक दिन बने,रखो अटल विश्वास।।
59
आया समय प्रयास का,भारत बने अखण्ड।
बन जाएगा विश्व गुरू, बहु मत मिले प्रचण्ड।।
60
घने मेघ की छाँव में,झिलमिल करता ताल।
खिले कमल पुलकित हुए, हर्षाया वह काल।।
61
मुख से फेन निकालता,सागर तट तक धाय।
कण बालू के सोखता,अपनी प्यास बुझाय।।
62
जीवन को खा जात है,तन-मन होत खराब।
अपना दुश्मन मान ले,गुटका, नशा शराब।।
63
आतंकी ही खेलते, खूनी होली रोज़।
कैसे इनका नाश हो,इसका हल अब खोज।।
64
दुश्मन हैं अब कर रहे,हरदम भीतर घात।
हे प्रभु जल्दी से बिता, विकट अँधेरी रात।।
65
बचपन वाले खेल भी, खो गए सब आज।
घर के अंदर खेलते,वायु को मोहताज।।
65
भोला बचपन खेलता, माटी में मुस्काय।/मुस्कात।
रज स्वदेश की चूमता, तनिक युवा हो जाय/जात।।
घने मेघ की  छाँव में, झिलमिल करता ताल।
खिले कमल पुलकित हुए,पुलक उठा वह काल।।
बैठ अकेला ताकता, भौंकत रहे श्वान।
चोरों से रक्षा करता,रखे घर का ध्यान।।
67
जीव की रक्षा कीजिए , रखिए सभी ध्यान।
स्वामी भक्त सब कहें ,जबकि योनी श्वान।।
68
झूठ बिना गाड़ी चला, जाना यद्यपि दूर।
भरम टूट ही जाएगा,होकर चकनाचूर।।
69
शांत मन से वह मिलता, मन में जिसका वास।
निशिदिन उसे पुकारता,ईश मिलन की आस।।
70 (कुछ दोहे -एक दिव्यांग जिसके हाथ कटे हुए हैं)
प्यासा व्याकुल हुआ, करता सोच विचार।
हाथ बिना दुख भोगता, है अपंग लाचार।।
71
मुख डुबोय जल पी रहा,करके सोच विचार।
हाथ जल में डुबो रहा, अंजुलि को लाचार।। 
72
भोला बालक कर रहा,पशुवत है लाचार।
खुद ही अनुभव कर रहा,पशुओं का आचार।।
73
बचपन भोला न रहा,सरल नहीं आचार।
दुर्व्यसन में पड़ रहा,पशु समान व्यवहार।।
74
देखकर मन द्रवित हुआ,रोग का कर उपचार।
पर पीड़ा अवगत हुआ,कर उस पर उपकार।।
75
दया क्षमा न बिसारिए, होती जन से भूल।
ईश मगन हो जाइए,कट जाएंगे शूल।।
76
शहरों की मत बूझिए,जो जल है अनमोल।
ईश्वर ने सबै दिया, वह जल बिकता मोल।।
77
जैसी संगति बैठिए, वैसा ही मन होय।
संतन के ढिग बैठिए,प्रभु के दर्शन होय।।
78
सबसे अग्रिम प्रेम है,जिससे सृष्टि बसाय।
जीवन के इस चक्र में,इस विध ईश समाय।।
79
राम-नाम रसना रटे,हिय लगन लग जाय।
राम नाम की नाव से, यह जीवन तर जाय।।
80
माया के इस फेर में,मन को मत भटकाय।
राम ही राम फेर ले,भव सागर तर जाय।।
81
हर पल हरि का भजन कर,मन को मत भटकाय।
राम नाम जो जन जपे,भव सागर तर जाय।।
82
ब्रज की शोभा श्याम से, श्यामा प्रिय घनश्याम।
अधर मधुर मुरली धरी,सुने धेनु अविराम।।
83
मेरे देश का बच्चा, रोज़ करेगा योग।
तन बलवान मन सच्चा, पास न आए रोग।।
84
झर-झर नैना बरसते,बढे़ ईश की आस।
होंगे दर्शन राम के,हृदय गली हरि वास।।
85
मन को हल्का राखिए,भजे राम ही राम।
भव सागर तर जाइए,हिय धर हरि का नाम।।
86
मुरली सुन राधा चली,बैठी यमुना तीर।
कान्हा छवि निहारती ,कालिंदी के  नीर।।
87
पल-पल गाय पुकारती,हे गिरिधारी श्याम।
अपलक धेनु निहारती,जित लखै तित श्याम।।
88
लकुटि कमरिया लै चले,दौड़े ग्वाल-बाल।
मधुर मुरलिया हाथ में,हिय पहनी बनमाल।।
89
सिर पर धर मटकी धरी,दधि लिए चली नार।
कंकड़ से फोड़ मटकी, भीगे चुनरी हार।।
90
यशोदा के घर-आँगना,घुटरुनि चले श्याम।
कंचन सी चमके धरा,सजा नंद कौ धाम।।



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