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मंगलवार, 17 जुलाई 2018

दोहा सलिला: जाति

'जाति' पर दोहे
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'जा' से आशय जन्मना, 'जाया' जननी अंब।
'जात्रा' यात्रा लक्ष्य तक, पहुँचाती अविलंब।।
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'जातक' लेता जन्म जग, हो आनंद विभोर।
रहा गर्भ में सुप्त जग, थाने जीवन डोर।।
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बौद्धों की 'जातक कथा', गह जीवन का सार।
विविध योनि में बुद्ध का, बतलाती अवतार।।
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जो 'जाता' वह पहुँचता, दृढ़ हो यदि संकल्प।
श्रम-प्रयास कर अनवरत, दूजा नहीं विकल्प।।
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'जा ना' को कर अनसुना,  'जाना' ले जो ठान।
पाना वह ही जानता, जग गाता जयगान।।
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'जाति' वर्ग संवर्ग या, कुनबा वंश समूह।
गोत्र अल्ल एकत्व का, रचते सुदृढ़ व्यूह।।
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कास्ट क्लास कैडर करें, संप्रेषित कुछ अर्थ।
सैन्य वाहिनी फौज दल, बल बिन होते व्यर्थ।
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'जात दिखा दी' कहावत, कहती क्या सच खोल।
'जात' ग्यात तो असलियत, ग्यात नहीं तो पोल।।
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'जनता' 'जनती' जन्म दे, जिसे वही जनतंत्र।
जनता द्वारा-हेतु-की, रक्षा-हित मन-मंत्र।।
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'जात-जाति' से वास्तविक, गुण-अवगुण हो ग्यात।
सामाजिक अनुमान की, रीति-नीति चिर ख्यात।।
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'जाति' बताती जन्मना, खूबी-कमी विशेष।
प्रथा-विरासत जन्म से, पाई-गही विशेष।।
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वंशगती गुण-सूत्र जो, 'जाति' करे संकेत।
जो समझे आगे बढ़े, टकराकर हो खेत।।
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मिल विजाति से 'जाति' ही, रचे नया संसार।
तज कुजाति को बच-बचा, होती भव से पार।।
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रूढ़ न होती 'जाति' सच, अटल लीजिए मान।
'जाति' भेद करती नहीं, हर गुण मान समान।।
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गुण से गुण मिल गुण बढ़ें, अवगुण हों कम-दूर।
जाति-व्यवस्था है यही, देख न पाते सूर।।
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भिन्न जातियों के मिलें, जातक सोच-विचार।
ताल-मेल ताजिंदगी रखें, 'जाति' का सार।।
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नीर-क्षीर का मिलन शुभ, चंदन-कीचड़ हेय।
'जाति' परखती मिलन-फल, मिले श्रेष्ठ को श्रेय।।
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'जाति' न अत्याचार है, नहीं जिद्द या स्वार्थ।
उच्छृंखलता रोकनी, 'जाति' साध सर्वार्थ ।।
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मर्यादा हर व्यक्ति की, होती एक समान।
नहीं जीविका; कर्म से, श्रेष्ठ-हेय अनुमान।।
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आत्मा काया में बसे, हो कायस्थ न भूल।
समता का वैषम्य में, 'जाति' सुगंधित फूल।।
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'जाति' देखती अंत में, क्या होगा परिणाम।
आदि भले हो कष्टप्रद, सुखद रहे अंजाम।।
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salil.sanjiv@gmail.com
17.7.2018, 7999559618

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