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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

navgeet kanhaiya

एक रचना 
कनैया नई सुदरो
*
नई सुदरो, बब्बा नई सुदरो 
मन कारो, 
कनैया नई सुदरो
*
कालिज मा जा खें
नें खोलें किताबें
भासन दें, गुंडों सें
ऊधम कराबें
अधनंगी मोंड़िन सँग
फोटू खिंचाबे
भारत मैया कीं
नाक कटाबे
फरज निभाबें मा
बा पिछरो
मन कारो,
कनैया नई सुदरो
*
दुसमन की जै-जै के
नारे लगाए
भारत की सैना पे
उँगरी उठाए
पत्तल में खा-खा खें
छिदरा गिनाए
थूके खों चाटे, नें
तनकऊ लजाए
सूकर है मैला में
जाय सपरो
मन कारो,
कनैया नई सुदरो
*

१३.३.२०१६ 

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