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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

दोहा शतक: महातम मिश्र

दोहा शतक: महातम मिश्र
एम. ए.  मनोविज्ञान, रचनाकार  

वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी प्रथम वर्ग  (मनोविज्ञान ), आइ. सी. एम. आर. - राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य संस्थान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय , भारत सरकार, अहमदाबाद -३८००१६, गुजरात, चलभाष: ९४२६५७७१३९, दूरभाष: ७९२२६८८७२७ वेबसाइट :   www.nioh.org      
ईमेल : mahatamrmishra@gmail.com
राधा छवि दर्पण लिए, मन कान्हा चितचोर।
मोरपंख सह बाँसुरी, वन-वन नाचत मोर।।-1
राधा कृष्ना बोलिए, युगल रूप मकरंद।
मंचसीन प्रभु जब हुए, तब आया आनंद।।-2
ममता बिन माता नहीं, वृक्ष बिना नहीं छाँव।
करुनाकर करुनामयी, हो अभाव नहिं गाँव।।-3
शिव कुल की महिमा अमिट, वंदउँ प्रथम गणेश।
शिवशक्ति के लालना, जय शिव शंभु महेश।।-4
नीति विनीत चरित्र मन, विनय करूँ कर जोर।
भक्ति शक्ति तप कर्म मम, नित साधना अँज़ोर॥ -5
सदा भवानी पूजितम, पाऊँ कुशलम क्षेम।
विनय बुद्धि प्रतिपल बढ़े, जस कुबेर गृह हेम।।-6
हरिहर अपने धाम में, लिए भूत बैताल।
गणपति बप्पा मोरया, सदा रखें खुशहाल।।-7
बाबा शिव की छावनी, गणपति का ननिहाल।
धन्य-धन्य दोनों पुरा, गौरा मालामाल।।-8
वाहन नंदी सत्य शिव, डमरू नाग त्रिशूल।
भष्म भंग प्रभु औघड़ी, मृगछाला अनुकूल।।-9
चौदह स्वर डमरू बजे, सारेगामा सार।
जूट जटा गंगा धवल, शिव बाबा संसार।।-10
चंदा की सोलह कला, धारण करते नाथ।
पार्वती अर्धांगिनी, सोहें शिव के साथ।।-11
बाबा भोले नाथ की, महिमा अपरंपार।
भंग भष्म की आरती, शक्ति सत्य आपार।।-12

डम-डम डमरू बाजता, आदि कलश कैलाश।
अर्ध चंद्रमा खिल रहा, गंगा धवल प्रकाश।।-13
जय गणेश जय कार्तिके, जय नंदी महाराज।
जयति-जयति माँ पार्वती, धन्य शीतला राज।।-14
डोला माँ का सज गया, जय चैत्री नवरात।
नित-नव गरवा घूमती, जननी दुर्गा मात।।-15
भूल चूक कर माँ क्षमा, विनय करूँ कर जोर।
सेवक "गौतम" पग पड़ा, दे आशीष अजोर।।-16
मातु शीतला अब बहे, शीतल नीम बयार।
निर्मल हो आबो हवा, मिटे मलीन विचार।।-17
डोला मैया आप का, बगिया का रखवार।
माली हूँ अर्पण करूँ, नीम पुष्प जलधार।।-18
जन्म दिवस है आप का, आज वीर हनुमान।
चरण पवन सुत मैं पडूँ, ज्ञानी गुण बलवान।।-19
शुभकामना बधाइयाँ, जन जन पहुँचे राम।
हनुमत के हिय में बसें, लखन सिया श्रीराम।।-20
प्रथम पूज्य गणेश जी, नंदन शिवा महेश।
आसन आय विराजिए, भागे दुख अरु क्लेश।।-21
गंगोत्री सु-यमुनोत्री, बद्रीनाथ केदार।
चारोधाम विराजते, महिमा शिव साकार।।-22
मातु पार्वती ने दिया, अपना घर उपहार।
आ बैकुंठ विराजिए, ममता विष्णु दुलार।।-23
स्वर्गलोक की छावनी, देव भूमि यह धाम।
ब्रम्हा विष्णु महेश को, बारंबार प्रणाम।।-24
दर्शन करके तर गए, पूर्वज सहित अनेक।

सकल कामना सिद्धता, आए बुद्धि विवेक।।-25
सकल तीर्थ बार बार, एक बार हरि धाम।
प्रेमिल रसना आरती, बोल विष्णु का नाम।।-26
दोहा अपनी बात से, मन को लेता मोह।
चकित करे हर मोड़ पे, काहु न बैर बिछोह।।-27
पशु पंक्षी की बोलियाँ, समझ गया इंसान।
निज बोली पर हीनता, मूरख का अभिमान।।-28
दोहा है ऐसी विधा, कहे छंद अरु सार।
तेरह ग्यारह पर रुके, रचना स्वर अनुसार।।-29
दोहा अपने आप में, रखता सुंदर भाव।
जागरूक करता सदा, लेकर मोहक चाव।।-30
पर्यावरण सुधार लो, सबकी साधे खैर।
जल जीवन सब जानते, जल से किसका बैर।।-31
पर्यावरण यदि शुद्ध हो, नाशे रोग विकार।
प्रेमी सींचें बाग वन, मन में रख उपकार।।-32
मानव तेरा हो भला, मानवता की राह।
कभी न दानव संग हो, करते मन गुमराह।।-33
वो दिन कहाँ चले गए, ओल्हा पांती पेड़।
अभी कहाँ नियरात हैं, मोटे तगड़े मेड़॥-34
उड़े तिरंगा शान से, लहराए जस फूल।
हरित केशरी चक्र बिच, शुभ्र रंग अनुकूल।।-35
झंडा डंडे से बधा, मानवता की डोर।
काश्मीर जिसकी सिखा, क न्याकुमारी छोर।।-36
कड़क रही है दामिनी, बादल सह इतराय।
पलक बंद पल में करे, देखत जिय डरि जाय।।-37

क्यों रूठे हो तुम सखे, कुछ तो निकले बैन।
व्याकुल विरह बढ़ा रहा, मन नहिं आए चैन।।-38
तनिक बरस भी जाइए, आँगन मेरा सून।
गर्मी से राहत मिले, शीतल हो दिन जून।।-39
बारिस भी यह खूब है, बिन मर्जी के होय।
कहीं गिरे कहिं धौकनी, बिना रंग की पोय।।-40
किसे कहूँ कैसे लिखूँ, दोहा तुझसे नेह।
परवश होती प्रीत है, मानों परमा स्नेह।।-41
गड़बड़ झाला देख के, पड़ा कबीरा बोल।
मौसम ऋतु बीरान है, पीट रहे दिग ढ़ोल।।-42
कैसे तुझे जतन करूँ, पुष्प पराग नहाय।
अपने पथ नवयौवना, महक बसंत बुलाय॥-43
रंग-रंग पर चढ़ गया, दिखे न दूजा रंग।
अंग-अंग रंगीनियाँ, फरकत अंग प्रत्यंग॥-44
ऋतु बहार ले आ गई, पड़त न सीधे पाँव।
कदली इतराती रही, बैठे पुलकित छाँव॥-45
महुआ कुच दिखने लगे, बौर गए हैं आम।
मेरे कागा बोल ना, सुबह हुई कत शाम॥-46
नहि पराग कण पाँखुडी, कलियन मह नहि वास।
कब वसंत आयो गयो,चित न चढें मधुमास॥-47
सोन चिरैया उड़ चली, पिंजरा हुआ पराय।
नात बात रोवन लगे, जस तस निकसत हाय॥-48
कई मंजिला घर मिला, मिली जगह भरपूर।
छूट जाय घर मानवा, जीवन जग दस्तूर॥-49
निर्धन मरा जुआरिया, धनी मरा संताप।

मानवता पल में मरी,मरि-मरि जिए अनाथ॥-50
लोभी क्रोधी धूतरा,दिख सज्जन बड़ वेष।
उतराए दिन रात है, कतहु न मिले निमेष।।-51
माया महिमा साधुता, उगी ठगी चहु ओर।
जातन देखि विलासिता, भीड़ भई मतिभोर॥-52
उटपटांग भाषा भवि-ष्य, बोलत बैन बलाय।
हर्ष भरे मन शूरमा, फिर पाछे पछिताय॥-53
पाप पुण्य की आस में, जीवन बीता जाय।
नही भक्ति नहि कर्म भा, दिन में रात दिखाय॥-54
भली भलाई पारकी, मन संतोष समाय।
खुद की थाली कब कहे, रख दे औरन खाय॥-55
कहु जीवन का जल बिना, प्राण धरा रहि जाय।
विष पिए नही को बचें, महि जनि जहर मिलाय॥-56
कैसे कहूँ महल सुखी, दिग में ख़ुशी न कोय।
बहुतायती अधीर है, रोटी मिले न भोय।।-57
मुट्ठी भरते लालची, अपराधी चहुँ ओर।
कोना-कोना छानते, लेते मणी बिटोर।।-58
दूधों वाली गाय को, करते सभी दुलार।
दूध नहीं दाना नहीं, चला करे तलवार।।-59
पूत पिता को तौलते, लिए तराजू चोर।
हीरा हिंसक एक से, बँसवारी में शोर।।-60
समय-समय की बात है, आज बहुत है ठंड।
भीग रहे हैं छाँव में, बिना काम का फंड।।-61
सम समानता अरु समय, होता है अति वीर.
बुद्धि विवेक बहुत भले, अपनाते है धीर।।-62

वीणा का स्वर अति मधुर, मन को लेती मोह।
मानों कोयल कूकती, बौर-बौर चित सोह।।-63
जगत जहाँ बढ़ता गया, बढ़ते गए फ़क़ीर।
बाबा ढोंगी हो गये, अब क्या करें कबीर।।-64
मिलन-मिलन में फेर है, मिल लीजे मन खोल।
अंत समय विछोह है, सब कुछ पोलम-पोल।।-65
खुश रहिये मेरे सखा, सब कुछ भगवत हाथ।
कभी न चिंता कीजिये, करनी भरनी साथ।।-66
डाली-डाली झूमती, लादे रहती बोझ।
झुक जाती है फल लिए, कैसा किसका झोझ।।-67
दुख में दुखी न होइए, धीरज दीजे मान।
क्लेश होत नहिं स्वार्थी, आता जाता शान।।-68
कभी न मन में रार हो, कभी न छाए द्वेष।
बोली भाषा एक सी, अलग अलग है भेष।।-69
लहर रही है ओस अब, ठिठुर रही है रात।
सूझत नाहीं कत गया, भौंरा गुंजत प्रात।।-70
चादर मैली हो गई, धोया जिसको खूब।
अजी खाद पानी बिना, फैल गई है दूब।।-71
मैं अति भला तुमहिं सरिष, भला मिला संसार।
जैसी जिसकी नजर है, वैसा है व्यवहार।।-72
अलंकार साहित्य का, गहना भूषण मान।
छंदस मात्रा सादगी, आभूषण सुविधान।।-73
उचित कर्म सौंदर्य है, मंशा महक महान.
रे साथी अब चेतना, क्रोध न करना जान।।-74
भूगोल का ज्ञान नहीं, लिखन चला इतिहास।

अर्थशास्त्र के महारथी, द्रव्य करे उदभास।।-75
करो अध्ययन लालना, मानों सखा किताब।
बिना पढ़े नहिं ज्ञान हो, यह पूंजी नायाब।।-76
कर्म बिना सत्कर्म क्या, धन होता बेकार।
सोच समझ ले रे मना, तब करना तकरार।।-77
नेह निमंत्रण आप को, पहुँचे मेरे मीत।
कोयलिया की स्वर सुधा, मीठी बोली गीत।।-78
मनन बुद्धि गर शुद्ध हो, बने आचरण नेक।
कड़वी पर शीतल लगे, नीम छाँव प्रतिरेक।।-79
बिना आधार के सखे, सभी हैं निराधार।
अंगूठा पहचान है, बाकी सब बेकार।।-८०
मेरे परमात्मा सदा, करना मुझे मजबूत।
नव नमन आराध्य को, होकर के अविभूत।।-81
नदी किनारा देख के, मन होता खुशहाल।
कलकल सरिता बह रहीं, जल मछली बदहाल।।-82
रे मन धीरज रख तनिक, नाहक क्यूँ परेशान।
समय-समय की बात है, समय होत बलवान।।-83
हे माँ वीणावादिनी, वास करो आकंठ।
कभी न कलम मलीन हो, साथ न आए चंठ।।-84
सृजन सहज हो सामयिक, लय में हो प्रभु गान।
सुरावली हो सूर की, हो कबीर का मान।।-85
मानव होकर क्यूँ करें, यह झूठा अभिमान।
कर्म-धर्म होता सगा, जीवन जोगी जान।।-86
आविष्कार का हर किता, करता है अनुमान।
इस विकास के दौड़ में, खुद को भी पहचान।।-87

मंगल मय होता सदा, सु-मनसा अनुष्ठान।
सर्व कामना सिद्ध हो, हों प्रवल प्रतिष्ठान।।-88
हरियाली लहरा रही, झूम रहें हैं खेत।
सरसो भी फूलन लगे, रे किसान गृह चेत।।-89
मारा-मारी हो रही, मिल जाए अधिकार।
कुछ भी बोलो साथिया, मन नहिं हो व्यविचार।।-90
करूँ नहीं अधिकल्पना, मन में राखूँ धीर.
स्वागत सबका ही करूँ, निर्धन हो या नीर।।-91
जिम्मेदारी है बहुत, लेकर चलता आज।
जितना कर पाता भला, उतना करता राज।।-92
सिंहासन सजता रहा, आदिकाल तक अंत।
कितने आए अरु गए, कैसे-कैसे संत।।-93
मरती है संवेदना, मानव तेरा हाल।
एक हाथ में हाथ है, एक हाथ में खाल।।-94
सहनशीलता पावनी, देती शीतल छाँव।
मानों बैठा है भगत, जिय के भीतर गाँव।।-95
लिए खूबसूरत जहाँ, क्यों करते हो रार।
हे बलशाली मानवा, मतकर जल को खार।।-96
नैतिकता की आड़ में, लूट रहे सब खूब।
खेतों में जकड़ा रहा, भल किसान जस दूब।।-97
दीजो आशीर्वाद माँ, आया तेरे धाम।
रमा रहे मन भक्ति में, शुद्ध भाव निष्काम।।-98
सकारात्मक जब हुआ, आया चिंतन काम।
नकारात्मक क्यों बनें, हे मेरे अभिराम।।-99
हुआ बेरोजगार है, डिग्री धार सपूत।

घूम रहा पगला जहाँ, जैसे काला भूत।।-100
नमन करूँ प्रभु आप का, रखकर हृदय विशाल.
स्वस्थ रहें साथी सकल, साजे पूजा थाल।।-101
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
गोरखपुर हाल अहमदाबाद
मो.न., 9426577139 (वाट्सएप), 8160875783

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