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रविवार, 30 अक्तूबर 2011

दोहा सलिला: घुले-मिले दोहा-यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
धूप-छाँव दोहा-यमक
संजीव 'सलिल'
*
ताना-बाना यदि अधिक, ताना जाए टूट.
बाना भी व्यक्तित्व का, होता अंग अटूट..
*
तंग सोच से तंग मत, हो- रख सोच उदार.
तंग हाथ हो तो 'सलिल', मत बनना दिलदार..
*
पान अमिय या गरल का, करिए सोच-विचार.
पान मान का खाइए, तब जब हो मनुहार..
*
सु-मन सुमन सम सुगंधित, महकाये घर-बाग़.
अमन अ-मन से हो नहीं, चमन चहे अनुराग..
*
करे शब्द-आराधना, कलम न होती मूक.
कलम लगाती बाग़ में, हरियाली की हूक..
*
आई ना वह देख पथ, आईना भी गया थक.
अब तो मिलने आइए, थका देख पथ अथक..
*
कर कढ़ाइ घर पलटीं, किन्तु न मानें मात.
खा कढ़ाइ में पाइए, शादी में बरसात..
*
कर पढ़ाइ फिर गह 'सलिल', सब विषयों का सार.
जब पढ़ाइ कंठस्थ हो, करती बेडा पार..
*
पार कर रहा सड़क तो, दायें-बायें देख.
पार न कर दे पर्स यह, साथ-साथ ले लेख..
*
कड़ा-प्रसाद ग्रहण करें, कड़ा पहनकर आप.
पंच ककार न त्यागी, कड़ा नर्म दिल आप.
*
सदा सदा देते रहें, नाज़-अदा के साथ.
फ़िदा हुए हम वे नहीं, रहे कभी भी साथ..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



3 टिप्‍पणियां:

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
सुंदर दोहो हेतु साधुवाद स्वीकार करें।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
आपके दोहों में यमक अलंकार के इतने कौशल पूर्वक प्रयोग पर मुग्ध हूँ |
क्या इस अलंकार का प्रयोग दोहों के सिवा काव्य की अन्य विधाओं में
भी किया जा सकता है ? यदि हाँ तो कुछ उदाहरणों की प्रतीक्षा रहेगी |
मिले जुले दोहे यमक करते भाव-विभोर
जुले बलम फिर ना मिले गये कहाँ किस ओर ( जुले = जुड़े )
( क्या उपरोक्त दोहा सही होगा ?)
सादर
कमल

sanjiv 'salil' ने कहा…

आदरणीय!
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.
अपने बिलकुल सही दोहा कहा है, वह भी यमक में.
बधाई.