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शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

नवगीत: उत्सव का मौसम -- संजीव 'सलिल'

नवगीत:
उत्सव का मौसम
संजीव 'सलिल'
*
उत्सव का मौसम
बिन आये ही सटका है...
*
मुर्गे की टेर सुन
आँख मूँद सो रहे.
उषा की रूप छवि
बिन देखे खो रहे.
ब्रेड बटर बिस्कुट
मन उन्मन ने
गटका है.....
*
नाक बहा, टाई बाँध
अंगरेजी बोलेंगे.
अब कान्हा गोकुल में
नाहक ना डोलेंगे..
लोरी को राइम ने
औंधे मुँह पटका है...
*
निष्ठा ने मेहनत से
डाइवोर्स चाहा है.
पद-मद ने रिश्वत का
टैक्स फिर उगाहा है..
मलिन बिम्ब देख-देख
मन-दर्पण चटका है...
*
देह को दिखाना ही
प्रगति परिचायक है.
राजनीति कहे साध्य
केवल खलनायक है.
पगडंडी भूल
राजमार्ग राह भटका है...
*
मँहगाई आयी
दीवाली दीवाला है.
नेता है, अफसर है
पग-पग घोटाला है. 
अँगने  को खिड़की
दरवाजे से खटका है...
*

4 टिप्‍पणियां:

Rakesh Khandelwal ✆ ekavita ने कहा…

naak बहा, टाई बाँध
अंगरेजी बोलेंगे.
अब कान्हा गोकुल में
नाहक ना डोलेंगे..
लोरी को राइम ने
औंधे मुँह पटका है...

" मटकी रीती पड़ी दही की बड़ी अजब लाचारी
सपरेटा को बटर मिलेगैं फ़्रिज में ओ वनवारी
आधी टिकिया मुँह लपटा जईयो, बुलाय गयी राधा प्यारी
कान्हा बरसाने में आ जईयो

बांसुरिया को लील गयी है इक गिटार मनभावन्ब
टेंकटाप में सिमट गोपियां ललचातीं वृन्दावन
सन्डे के दिन रास रचा......



अपमे श्री चरणों में अभिनन्दन स्वीकार करें.

राकेश खंदेलवाल

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

सलिल जी,

बिल्कुल नवीन!

निम्न विशेष--


*
मुर्गे की टेर सुन
आँख मूँद सो रहे.
उषा की रूप छवि
बिन देखे खो रहे.
ब्रेड बटर बिस्कुट
मन उन्मन ने
गटका है.....
*

निष्ठा ने मेहनत से
डाइवोर्स चाहा है.
पद-मद ने रिश्वत का
टैक्स फिर उगाहा है..

*
देह को दिखाना ही
प्रगति परिचायक है.
राजनीति कहे साध्य
केवल खलनायक है.
पगडंडी भूल
राजमार्ग राह भटका है...
*

अँगने को खिड़की
दरवाजे से खटका है...

--ख़लिश

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

यह माध्यम भी खूब चुना आचार्य आपने
खटमीठी अंचार का स्वाद मिल गया सुन्दर
आन्गल शब्द भी गीतों में हैं खूब पिरोये
प्रिय हिन्दी भाषा की दिखती छटा मनोहर ||

Achal Verma

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
नवगीत अच्छा लगा
बधाई स्वीकारें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’