कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

नवगीत: दिशाहीन बंजारे हैं.... संजीव 'सलिल'


*
कौन, किसे, कैसे समझाये?
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह
खुद को तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों-
नाहक बजते इकतारे हैं...
*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटखा
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं ...
*********

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com


6 टिप्‍पणियां:

- rekha_rajvanshi@yahoo.com.au ने कहा…

संजीव जी
बहुत सुन्दर बधाई, विशेषकर ये पंक्तियाँ
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
रेखा

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
बहुत सुन्दर रचना......मन-मोहक , मन-भावन और स्मरणीय बनी रहने वाली !
अशेष सराहना के साथ,
दीप्ति

- pratapsingh1971@gmail.com ने कहा…

सुन्दर नवगीत !


रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं........ बहुत सुन्दर !

सादर
प्रताप

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
हम शहीदों के वारिस नहीं, सचमुच दिशाहीन बंजारे हैं |
इस सच को कविता कुशलता से प्रकट करती है | साधुवाद !
सादर
कमल

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
आ० सलिल जी
वाह --- मार्मिक और सच्चाई की अभिव्यक्ति। बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

बेनामी ने कहा…

नवगीत:
दिशाहीन बंजारे हैं....----- सुन्दर सम्बोधन !

संजीव 'सलिल'
*
कौन, किसे, कैसे समझाये?
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम----- सही आकलन
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह
खुद को तीसमारखां पाते हैं.---------- वाह !

रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों------- अटल सत्य
नाहक बजते इकतारे हैं...----- बहुत खूब !

*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटखा
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या----- सही संकेत
दिशाहीन बंजारे हैं ...
*********

Acharya Sanjiv Salil