दोहा सलिला:
![]() दीवाली के संग : दोहा का रंग संजीव 'सलिल' * सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न पार. राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार.. * आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल. दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल.. * कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत. रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत?? * तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास. आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस.. * दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर. दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर.. * चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम. जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम. * सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार. दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार.. * मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप. तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप.. * करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान. रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान.. * मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान. दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान.. * मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात. साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात.. * Acharya Sanjiv Salil http://divyanarmada.blogspot. | |
|
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 24 अक्टूबर 2011
चिप्पियाँ Labels:
दीवाली,
दोहा,
संजीव 'सलिल',
contemporary hindi poetry,
diwali,
doha,
hindi chhand,
sanjiv verma 'salil'
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
२३ अक्तूबर २०११ ९:३० अपराह्न
आ० आचार्य जी,
अनन्त सार-गर्भित दोहों के लिये मेरा नमन स्वीकार करें |
कितना प्रक्षिप्त दर्शन हैं आपके इस दोहे में -
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
कुटिया में जन्म पाए दीपक ( दियाली ) ने अंतिम साँस ली राजमहल में | किसी ने यह विचार
नहीं किया कि उसकी मौत वहाँ क्यों हुई जिसकी थाने में रपट भी असंभव बनी |
सुन्दर अति सुन्दर
सादर
कमल
आ० संजीव जी,
अति सुन्दर !
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
विजय निकोर
वन्दनीय, अतिसुन्दर !
२४ अक्तूबर २०११ ६:०७ पूर्वाह्न
बहुत खूब ..
.. दीपावली की शुभकामनाएं !!
आ. संजीव जी,
जितनी प्रशंसा करूँ कम है।
एक-एक दोहा पढ़ती गई, मुँह से वाह निकलता गया।
दीपावली के अवसर पर दोहों की खूबसूरत सौगात देने के लिए हार्दिक बधाई।
चेतना
संजीव जी,
दोहों की तारीफ़ के लिए उचित शब्द ही नहीं मिल रहे ! अब समझ लीजिए कि कितने अच्छे लगे आपके दोहे ....!
मरहबा...मरहबा.....!
दीपावली की शुभकामनाओं सहित
दीप्ति
एक टिप्पणी भेजें