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बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

एक हुए दोहा यमक

-- संजीव 'सलिल'
*
दिया दिया लेकिन नहीं, बाली उसमें ज्योत.
बाली उमर न ला सकी, उजियारे को न्योत..
*
संग समय के जंग है, ताकत रखें अकूत.
न हों कुमारी अब 'सलिल', सुकुमारी- मजबूत..
*
लाल किसी का हो- मिला, खून सभी का लाल.
हों या ना हों पास में, हीरे मोती लाल..
*
चली चाल पर चाप पर, नहीं सुधारी चाल.
तभी चालवासी करें, थू-थू बिगड़े हाल..
*
पाल और पतवार बिन, पेट न पाती पाल.
नौका मौका दे चलें, जब चप्पू सब काल..
*
काल न आता, आ गया, काल बन गया काल.
कौन कहे सत्काल कब, कब अकाल-दुष्काल..
*
भाव बिना अभिनय विफल, खाओ न ज्यादा भाव.
ताव-चाव गुम हो गये, सुनकर ऊँचे भाव..
*
असरकार सरकार औ', असरदार सरदार.
अब भारत को दो प्रभु, सचमुच है दरकार..
*
सम्हल-सम्हल चल ढाल पर, फिसल न जाये पैर.
ढाल रहे मजबूत तो, मना जान की खैर..
*
दीख पालने में रहे, 'सलिल' पूत के पैर.
करे कार्य कुछ पूत हो, तभी सभी की खैर..
*
खैर मना ले जान की, लगा पान पर खैर.
पान मान का खिला-खा, मिट जाये सब  बैर..
*

8 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
सुन्दर दोहे यमक विशेष-
काल न आता, आ गया, काल बन गया काल.
कौन कहे सत्काल कब, कब अकाल-दुष्काल..
सादर
कमल

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
यमक अलंकार युक्त दोहे पढ़वाने के लिए साधुवाद।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० संजीव सलिल जी,

अति सुन्दर !

भाव बिना अभिनय विफल, खाओ न ज्यादा भाव.
ताव-चाव गुम हो गये, सुनकर ऊँचे भाव..



बधाई हो

विजय निकोर

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आ० सलिल जी
मुग्ध कर देते हैं दोहे।
संकलन योग्य हैं। बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

Bravo , Salil jee .
Highly recommended for higher studies .

Your's ,

Achal Verma

Navin C. Chaturvedi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

यमक पर बहुत सुन्दर संग्रह तैयार हो रहा है आदरणीय
एक यादगार संग्रह
नमन

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
सुन्दर दोहे यमक विशेष-
काल न आता, आ गया, काल बन गया काल.
कौन कहे सत्काल कब, कब अकाल-दुष्काल..
सादर
कमल

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
यमक अलंकार युक्त दोहे पढ़वाने के लिए साधुवाद।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’