मुन्नी की बदनामी में छिपा मनोविज्ञान
अश्विनी कुमार
‘मुन्नी
बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए’ – पहली पंक्ति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है.
हमारे कई बुद्धिजीवी मित्र इसे एक छिछोरे गीत की एक भोंडी पंक्ति कहकर इसका
तिरस्कार करना चाहेंगे. परन्तु वो यह भूल रहे हैं कि इस छोटी पंक्ति में
मुन्नी के मनोविज्ञान का सार-तत्त्व छुपा है, पूरी श्रीमद् भागवत गीता
जितना ज्ञान छुपा है. श्रोता अगर ध्यान दें तो पायेंगे कि मुन्नी अपनी
बदनामी से बिलकुल भी दुखी नहीं है. अब ज़ाहिर बात है कि कोई भी स्त्री अपना
दुःख छोटे कपडे़ पहनकर और दर्जनों शराबी मित्रों के साथ नाचकर व्यक्त नहीं
करेगी. दरअसल मुन्नी अपनी बदनामी का उत्सव मना रही है. पर अपनी बदनामी का
उत्तरदायित्त्व अपने प्रेमी अर्थात डार्लिंग पर मढ़ रही है.
‘मुन्नी के गाल गुलाबी, नैन शराबी, चाल नवाबी रे’ — अब मुन्नी अपनी शारीरिक दशा का चित्रण करती है. ‘मुन्नी के गाल गुलाबी’ – ध्यान रहे उसके गाल बदनामी से आई शर्म से गुलाबी नहीं हो रहे. यह तो गर्व और आत्म-सम्मान की प्रचुरता से ऐसा रंग दिखा रहे हैं. ‘नैन शराबी’ – बदनामी से मिल रही लोकप्रियता से उसकी आँखों में अहंकार का नशा आ गया है. ‘चाल नवाबी’ – अब स्पष्ट है कि चलने-फिरने में राजाओं जैसी शान तो आ ही जायेगी जब दर्जनों प्रेमी प्रेम की अभिलाषा लिए चारों ओर स्वामिभक्त कुत्तों की तरह चक्कर लगा रहे हों.
”ले झंडू बाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए’ – फिर से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पंक्ति. हमारे मार्केटिंग और सेल्स प्रोमोशन के मित्र इस पंक्ति को यह कहकर खारिज करेंगे कि मुन्नी सिरदर्द की औषधि का विज्ञापन कर रही है. पर हम यदि इस वाक्य की गहराई में जायेंगे तो समझेंगे कि मुन्नी कुछ और ही कहना चाह रही है. हम सभी जानते हैं कि झंडू बाम से सिरदर्द दूर नहीं भागता. दरअसल बाम हमारी त्वचा पर इतनी तीव्र संवेदना उत्पन्न करता है कि हमें सिरदर्द का अहसास नहीं होता. ठीक इसी तरह मुन्नी का यौवन मर्दों के दिलों में इतनी तीव्र वासना उत्पन्न करता है कि वो घर-परिवार, बीवी, बच्चे, नौकरी आदि सभी के प्रति जिम्मेवारी भूल जाते हैं.
आभार: जनोक्ति
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