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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

मुक्तिका: देखो -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
देखो
-- संजीव 'सलिल'
*
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..

बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..

चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..

ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..

आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.कॉम
हिंदीहिंदी.इन 

22 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

सलिल जी,

निम्न विशेष लगे--


ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..

*****

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

आदरणीय कविवर,
आपकी पहली पंक्ति पर ही लिखने के लिए इतना कुछ है कि उसका कोई अंत नहीं ! प्रकृति के प्रख्यात आंग्ल कवि 'Wordsworth' ने अपनी कविता The Tables Turned में कुछ ऎसी ही
सुन्दर और सच बात कही है -

UP! up! my Friend, and quit
your books;
x x x x x x x
The sun, above the mountain's head,
A freshening luster mellow
Through all the long green fields has spread,
His first sweet evening yellow.
x x x x x x x

प्रकृति हमारी सबसे अच्छी शिक्षिका है ! वह हमें जीवन की अच्छाईयों और बुराइयों
के बारे में साधु-संतों से बेहतर पाठ पढ़ा सकती है ----
One impulse from a vernal wood
May teach you more of man,
Of moral evil and of good,
Than all the sages can.


'देखो' रचना सुन्दर और संदेशपरक है, तदहेतु आपको बहुत-बहुत बधाई !
सादर,
दीप्ति

2011/10/29 sanjiv verma salil


मुक्तिका:
देखो
-- संजीव 'सलिल'
*
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.--------------------------------- आंग्ल कवि वर्डस्वर्थ की पंक्तियाँ याद आ गई
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो.-----------------------------------क्या चाँद निश्चित मिलेगा तब ?


बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..-------------------------------निदा फाज़ली याद आ गए

चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..

ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.----------------------------------बहुत खूब !
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.----------------------------------अति सुन्दर
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..------------------------------ सुन्दरातिसुन्दर

आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..------------------------------------ मरहबा

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..------------------------------------मरहबा....मरहबा

*

AVINASH S BAGDE ने कहा…

बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो......आहा हा हा...क्या बात है संजीव जी.

sanjiv 'salil' ने कहा…

धन्यवाद. आपको समर्पित एक द्विपदी-
विनाश अब न करो कह रही कुदरत हमसे.
आओ अविनाश बनो पौध लगाकर देखो..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com

Ambarish Srivastava ने कहा…

//ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..//
प्रणाम आदरणीय आचार्य जी ! मतले में ही खूबसूरत गिरह लगाई है आपने ! इस हेतु बहुत-बहुत बधाई

//बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..//
बहुत सुन्दर शेर! क्या बात कह दी आपने ! इससे बढ़कर भी कुछ है क्या ?

//चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..//
वाह वाह! बहुत खूब आचार्य जी !

//ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..//
प्रेम के प्रति अदभुत समर्पण का भाव लिए हुए बहुत गहरा शेर ! बधाई .........

//ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..//
वाह वाह वाह ! एक ठोकरें ही तो हैं जो हमें चलने का तरीका सिखाती हैं !

//आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..//
बिलकुल सच कहा आपने ! आज यही तो हो रहा है ! आज हमें इसी आग में झुलसाया जा रहा है ! और इसका निदान आपने बिलकुल सही सुझाया है ....टंकड़ त्रुटिवश 'हीरो' के बजाय 'नीरो' लिख गया है

//कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..//
बहुत खूब आदरणीय .......

//संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..//
शेर गहरे हैं बहुत खूब कही सच्ची ग़ज़ल,
भाव संतों से लगें दिल में बसाकर देखो..

सूफी संतों वाला भाव लिए गज़ब का मक्ता ..........पुनः बहुत बहुत बधाई आदरणीय आचार्य जी !
सादर :

sanjiv 'salil' ने कहा…

बंधु!
यहाँ टंकण त्रुटि नहीं है. नीरो रोम का तानाशाह था, जब रोम में आग लगी तो वह चैन से बाँसुरी बजाता रहा था. इसी तरह आज के रहनेता जानता के दर्दो-दुःख से दूर रहकर सत्ता सुख में मशगूल हैं.
आपकी विस्तृत और उदारतापूर्ण समीक्षा के लिये दिल से आभार.
ईश अम्बर से वास्तव में श्री लिये आये.
कहे अम्बरीश की नज़र से ही गजलें देखो..
http://divyanarmada.hindihindi.com

Rajendra Swarnkar ने कहा…

श्रद्धेय सलिल दा !

कमाल है आपकी अन्य मुक्तिकाओं की तरह ही यह भी !

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..



प्रणाम !

sanjiv 'salil' ने कहा…

राजेन्द्र भाई!
आप सबका अपनापन ही तो तमाम व्यस्तताओं के बावजूद कुछ न कुछ लिखते रहने की प्रेरणा देता है. धन्यवाद.

siyasachdev ने कहा…

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो.. बहुत खूबसूरत

आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो.. बेहतरीन वाह

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..लाजवाब शेर

sanjiv 'salil' ने कहा…

सिया जी!

उत्साहवर्धन हेतु आभार.

जमाना राम बन के जब भी जुल्मो-सितम करे.
'सलिल' न हारना तुम खुद को सिया कर देखो..

योगराज प्रभाकर ने कहा…

//ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..//

वाह वाह वाह ! "चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो", धैर्य ओर संयम रखने का यह सन्देश बहुत प्यारा लगा आचार्य जी !


//बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..//

आपकी इस इन्सां-शनासी को शत शत नमन!

//चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..//

हैसले का जवान होकर खुदा हो जाना - बहुत कमाल का ख्याल है आचार्य जी !

//ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..//

सन्देश बहुत ही लाउड एंड क्लीयर है मान्यवर ! आदेश का पालन होगा !

//ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..//

मंजिलों पर मंजिलों को उठाने का ख्याल तो कमाल का है - वाह वाह वाह !

//आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..//

हालत-ए-हाजिरा का बहुत ही सटीक चित्रण ओर संघर्ष की छटपटाहट का सुन्दर वर्णन किया है इस शेअर में - वाह !

//कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..//

भारतीय दर्शन के दर्शन होते हैं इस शेअर से - बेहतरीन !

//संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..//

इस शेअर का सूफियाना मिजाज़ रूह को ठंडक पहुंचाने वाला है - साधु साधु ! इस लाजवाब प्रस्तुति के लिए मेरा सादर साधुवाद स्वीकारें गुरुवर !

sanjiv 'salil' ने कहा…

प्रभाकर जी!
आपने विस्तृत विवेचना कर न केवल हौसला बढ़ाया है अपितु प्रेरणा भी दी है. आपकी कलम को नमन.

तिमिर अमावसी जब घेर ले, न राह दिखे.
'सलिल' दिए से जलो, हँस के प्रभा कर देखो..

satish mapatpuri ने कहा…

ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..

ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..
सभी शे 'र उम्दा हैं आचार्य जी,इन दो शे'रों पर विशेष दाद कुबूल फरमाएं

AVINASH S BAGDE ने कहा…

sunder..dvipadi.Sanjeev ji.

Ambarish Srivastava ने कहा…

इस जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय .......
ज्ञान सबको ही सदा प्यार से हैं देते 'सलिल',
बंदगी कर लो अभी शीश नवाकर देखो.

rajendra swarnkar ने कहा…

आचार्य जी ,

आपका ब्लॉग तो खुल ही नहीं रहा …

आपके ब्लॉग के साथ भी कहीं वही समस्या तो नहीं

जो मेरे दोनों ब्लॉग्स के साथ रही अभी दो दिन ?

sanjiv 'salil' ने कहा…

भाई
संगत का असर तो होगा ही. वैसे मैं तो अपने चिट्ठे पर काम कर पा रहा हूँ. यह शिकायत नवीन जी ने भी की है. देखता हूँ क्या किया जा सकता है.

योगराज प्रभाकर ने कहा…

गुरुवर

मेरा मुझ में कुछ नहीं

जो कुछ है सो तेरा !

sanjiv 'salil' ने कहा…

sanjiv verma 'salil'
सतीश जी!

आप जैसे उम्दा रचनाकार से शाबासी पाकर प्रोत्साहन मिलता है. आपका आभार.

Ravi Prabhakar ने कहा…

Ravi Prabhakar
हरेक शेअर काबिले तारीफ है मगर नीरो की बांसुरी वाली बात सीधे दिल में उतर जाती है, बहुत बहुत बधाई.

dharmendra kumar singh ने कहा…

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

बहुत खूब आचार्य जी,

बधाई स्वीकारें खासकर नेह की नर्मदा वाला शेर तो हासिले ग़ज़ल है, क्योंकि बहती नदी पत्थर को भी मोम की तरह काट देती है।

पुनः बधाई

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey 1

ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..

चाँद पाने के लिये तारे सजाना.. वाह .. क्या कहन है ! तेरी माँग सितारों से सजा दूँ का अर्थ साकार हुआ समझिये !

बिना सितारे सजाये चाँद का बेनाम होना..!

बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..

इस महीन शेर पर मुलायम सी दाद लीजिये आचार्यजी.

चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..

बहुत पते की बात साझा किया है आपने.. अनुभव ने राह दिखायी है. जवां भी खुदा की ऊँचाई का ! वाह !!

ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..

बहुत कुछ कहा है आपने इस शेर में. ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया ! बे थके, बिना हारे ढाई आखर का व्याकरण पढ़ कर इतनी समझ जरूर हो जाती है आचार्यजी. ..

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..

बहुत सही.. बहुत खूब.. चल चल पुरतो निधेहि चरणम् .. मंजिल पाना नहीं .. मंजिलें तय करना .. बहुत ऊँची बात..

आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..

हुक्मरां नीरो न बनेंगे तो क्या बनेंगे .. मेरी ऑलरेडी जो है... ...दाम बढ़ रहे हैं और अब ये कहा जाता है कि महंगाई बढ़ेगी न तो क्या लोगों की आमदनी बढ़ रही है .. महंगाई पता न चलेगी अग़र आमदनी बढ़ती रहे. मेरी और नीरो का संयोग है. ग़ज़ब !

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..

सही है, मुसलसल मुलामियत पत्थर तक को पिघला देती है.. वाह !

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..

निर्गुन पढ गये आप.. इस मक्ते में वैराग्य है जो बेराग कत्तई नहीं...

आपकी ग़ज़ल हमेशा की तरह ज़िन्दाबाद हैं .. सादर बधाई. बधाई