ज्योति पर्व : ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा
जीवन की
अंधियारी
रात हो उजारी!
धरती पर धरो चरण
तिमिर-तम हारी
परम व्योमचारी!
चरण धरो, दीपंकर,
जाए कट तिमिर-पाश!
दिशि-दिशि में चरण धूलि
छाए बन कर-प्रकाश!
आओ,
नक्षत्र-पुरुष,
गगन-वन-विहारी
परम व्योमचारी!
आओ तुम, दीपों को
निरावरण करे निशा!
चरणों में स्वर्ण-हास
बिखरा दे दिशा-दिशा!
पा कर आलोक,
मृत्यु-लोक हो सुखारी
नयन हों पुजारी!
दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह
दीप शिखा की लौ कहती है,
व्यथा कथा हर घर रहती है,
कभी छिपी तो कभी मुखर बन,
अश्रु हास बन बन बहती है
हाँ व्यथा सखी, हर घर
रहती है ..
बिछुडे स्वजन की याद कभी,
निर्धन की लालसा ज्योँ थकी थकी,
हारी ममता की आँखोँ मेँ नमी,
बन कर, बह कर, चुप सी रहती है,
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है !
नत मस्तक, मैँ दिवला, बार नमूँ
आरती, माँ, महालक्ष्मी मैँ तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियोँ को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ, देक्ग, दिया, अब, प्रज्वलित कर दूँ !
दीपावली आई फिर आँगन, बन्दनवार,
रँगोली रची सुहावन !
किलकारी से गूँजा रे प्राँगन, मिष्ठान्न
अन्न धृत मेवा मन भावन !
देख सखी, यहाँ फूलझडी मुस्कावन !
जीवन बीता जाता ऋउतुओँ के सँग सँग,
हो सबको, दीपावली का अभिनँदन !
नव -वर्ष की बधई, हो, नित नव -रस !
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