विरासत:
दीवाली के दीप जले
स्व. रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी'
*
नयी हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले.
शाम सुहानी, रात सुहानी दीवाली के दीप जले..
धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के
लहराये वो आँचल धानी दीवाली के दीप जले..
नर्म लबों ने जुबान खोली फिर दुनिया से कहने को
बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले..
लाखों-लाखों दीपशिखाएँ देती हैं चुप आवाज़ें
लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले..
लाखों आँखों में डूबा है खुशहाली का यह त्यौहार
कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले..
कितनी मँहगी हैं सब चीज़ें, कितने सस्ते हैं आँसू.
उफ़ ये गरानी, ये अरजनी दीवाली के दीप जले..
मेरे अँधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो
आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले..
तझे खबर है आज रात को नूर की लरज़ा मौजों में
चोट उभर आयी है पुरानी दीवाली के दीप जले..
जलते चरागों में सज उठती भूखे-नंगे भारत की
ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले..
देख रही हूँ सीने में मैं दाग़े जिगर के चराग लिये
रात की इस गंगा की रवानी दीवाली के दीप जले..
जलते दीप रात के दिल में घाव लगाते जाते हैं
शब् का चेहरा है नूरानी दीवाली के दीप जले..
जुग-जुग से इस दु:खी देश में बन जाता है हर त्यौहार
रंजो-खुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले..
रात गये जब इक-इक करके जलते दिए दम तोड़ेंगे
चमकेगी तेरे गम की निशानी दीवाली के दीप जले..
जलते दियों ने मचा रखा है आज की रात ऐसा अंधेर
चमक उठी दिल की वीरानी दीवाली के दीप जले..
कितनी उमंगों का सीने में वक़्त ने पत्ता काट दिया
हाय ज़माने, हाय जवानी दीवाली के दीप जले..
लाखों चरागों से सुनकर भी आह ये रात अमावस की
तूने परायी पीर न जानी दीवाली के दीप जले..
लाखों नयन-दीप जलते हैं तेरे मनाने को इस रात.
ऐ किस्मत की रूठी रानी दीवाली के दीप जले..
खुशहाली है शर्ते-ज़िंदगी फिर क्यों दुनिया कहती है
धन-दौलत है आनी-जानी दीवाली के दीप जले..
छेड़ के साजे-निशाते चिरागां आज फ़िराक सुनाता है
गम की कथा खुशी की ज़बानी दीवाली के दीप जले..
*************
दीवाली के दीप जले
स्व. रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी'
*
नयी हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले.
शाम सुहानी, रात सुहानी दीवाली के दीप जले..
धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के
लहराये वो आँचल धानी दीवाली के दीप जले..
नर्म लबों ने जुबान खोली फिर दुनिया से कहने को
बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले..
लाखों-लाखों दीपशिखाएँ देती हैं चुप आवाज़ें
लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले..
लाखों आँखों में डूबा है खुशहाली का यह त्यौहार
कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले..
कितनी मँहगी हैं सब चीज़ें, कितने सस्ते हैं आँसू.
उफ़ ये गरानी, ये अरजनी दीवाली के दीप जले..
मेरे अँधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो
आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले..
तझे खबर है आज रात को नूर की लरज़ा मौजों में
चोट उभर आयी है पुरानी दीवाली के दीप जले..
जलते चरागों में सज उठती भूखे-नंगे भारत की
ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले..
देख रही हूँ सीने में मैं दाग़े जिगर के चराग लिये
रात की इस गंगा की रवानी दीवाली के दीप जले..
जलते दीप रात के दिल में घाव लगाते जाते हैं
शब् का चेहरा है नूरानी दीवाली के दीप जले..
जुग-जुग से इस दु:खी देश में बन जाता है हर त्यौहार
रंजो-खुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले..
रात गये जब इक-इक करके जलते दिए दम तोड़ेंगे
चमकेगी तेरे गम की निशानी दीवाली के दीप जले..
जलते दियों ने मचा रखा है आज की रात ऐसा अंधेर
चमक उठी दिल की वीरानी दीवाली के दीप जले..
कितनी उमंगों का सीने में वक़्त ने पत्ता काट दिया
हाय ज़माने, हाय जवानी दीवाली के दीप जले..
लाखों चरागों से सुनकर भी आह ये रात अमावस की
तूने परायी पीर न जानी दीवाली के दीप जले..
लाखों नयन-दीप जलते हैं तेरे मनाने को इस रात.
ऐ किस्मत की रूठी रानी दीवाली के दीप जले..
खुशहाली है शर्ते-ज़िंदगी फिर क्यों दुनिया कहती है
धन-दौलत है आनी-जानी दीवाली के दीप जले..
छेड़ के साजे-निशाते चिरागां आज फ़िराक सुनाता है
गम की कथा खुशी की ज़बानी दीवाली के दीप जले..
*************
1 टिप्पणी:
२२ अक्तूबर २०११ ८:१६ अपराह्न
आ० आचार्य जी ,
फ़िराक साहब की गजल में जाने कितने दिलों का दर्द है | उनकी अनोखी शैली में प्रस्तुत ग़ज़ल दिल को छू गई | विशेष -
कितनी मँहगी हैं सब चीज़ें, कितने सस्ते हैं आँसू.
उफ़ ये गरानी, ये अरजनी दीवाली के दीप जले..
कितनी उमंगों का सीने में वक़्त ने पत्ता काट दिया
हाय ज़माने, हाय जवानी दीवाली के दीप जले..
लाखों चरागों से सुनकर भी आह ये रात अमावस की
तूने परायी पीर न जानी दीवाली के दीप जले..
प्रस्तुति के लिये आभार |
सादर
कमल
एक टिप्पणी भेजें