अभिनव सारस्वत प्रयोग:
त्रिपदिक नवगीत :
नेह नर्मदा तीर पर
संजीव 'सलिल'
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?
निष्क्रिय, मौन, हताश है.
या दिलजला निराश है?
जलती आग पलाश है.
जब पीड़ा बनती भँवर,
खींचे तुझको केंद्र पर,
रुक मत घेरा पार कर...
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन का धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.
शांति दग्ध उर को मिली.
मुरझाई कलिका खिली.
शिला दूरियों की हिली.
मन्दिर में गूँजा गजर,
निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
'हे माँ! सब पर दया कर...
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन का धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.
सिकता कण लख नाचते.
कलकल ध्वनि सुन झूमते.
पर्ण कथा नव बाँचते.
बम्बुलिया के स्वर मधुर,
पग मादल की थाप पर,
लिखें कथा नव थिरक कर...
*
त्रिपदिक नवगीत :
नेह नर्मदा तीर पर
संजीव 'सलिल'
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?
निष्क्रिय, मौन, हताश है.
या दिलजला निराश है?
जलती आग पलाश है.
जब पीड़ा बनती भँवर,
खींचे तुझको केंद्र पर,
रुक मत घेरा पार कर...
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन का धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.
शांति दग्ध उर को मिली.
मुरझाई कलिका खिली.
शिला दूरियों की हिली.
मन्दिर में गूँजा गजर,
निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
'हे माँ! सब पर दया कर...
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन का धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.
सिकता कण लख नाचते.
कलकल ध्वनि सुन झूमते.
पर्ण कथा नव बाँचते.
बम्बुलिया के स्वर मधुर,
पग मादल की थाप पर,
लिखें कथा नव थिरक कर...
*
10 टिप्पणियां:
mahesh dewedy २२ अक्तूबर २०११ १:३९ अपराह्न
अति सुन्दर त्रिपदिक नवगीत. संजीव जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
महेश चन्द्र द्विवेदी
२२ अक्तूबर २०११ ५:२९ अपराह्न
आ० संजीव 'सलिल' जी,
दोहे अच्छे लिखे हैं, बधाई हो ।
जलती आग पलाश है. कौन उदासी-विरागी,
कल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?
निष्क्रिय, मौन, हताश है.
या दिलजला निराश है?
बहुत खूब ।
विजय निकोर
विजय जी!
प्रशंसा हेतु आभार.
निवेदन है कि ये त्रिपदियाँ हैं, दोहा नहीं. इनमें १३-१३ मात्राएँ हैं, इसे दोहे के ३ विषम पद की तरह १३-१३ मात्राएँ हैं.
दोहा में १३-११ मात्राओं के के २ पद होते हैं.
कविवर,
बहुत ही सुन्दर नवगीत !
सादर,
दीप्ति
२२ अक्तूबर २०११ ६:४५ अपराह्न
आ० संजीव 'सलिल' जी,
सुधार के लिए धन्यवाद । मैं जल्दी में बिना सोचे "दोहा" लिख बैठा था ।
विजय निकोर
२२ अक्तूबर २०११ ६:५९ अपराह्न
आ० आचार्य जी,
अन्य त्रिपदियों की भाँति दूसरी त्रिपदी में विरागी और खड़ा की टेक नहीं मिलती क्या त्रिपदी में तेंनो पदों की टेक समान होती है ? इसमें मात्राओं के क्या नियम है? कृपया, जिज्ञासा का समाधान करें |
सादर,
कमल
माननीय,
त्रिपदिक छन्दों के अनेक प्रकार हैं जिनमें मात्र-गन के भिन्न भिन्न नियम हैं. यहाँ प्रयुक्त त्रिपदी में दोहा के विषम चरण की तरह १३ मात्राएँ हैं. तुकांत इनमें ४ तरह से रचना की जा सकती है. १. तीनों पदों की तुक मिले, २. किसी पद की तुक न मिले, ३. १-२ पद की तुक मिले, ४. २-३ पद की तुक मिले, ५. १-३ पद की तुक मिले. आपके द्वारा इंगित पंक्ति को 'खड़ा किनारे पर व्रती' कर देने से तुक मिल जाती है.
२२ अक्तूबर २०११ ८:०३ अपराह्न
आ० आचार्य जी,
स्पष्टीकरण के लिये आभारी हूँ | खड़ा किनारे पर व्रती से पहली और दूसरी
पंक्ति कि टेक तो मिली पर तीसरी में " जोहता " भिन्न टेक हुई | अगर कहें कि
" खडी किनारे पर व्रती
किसका पथ चुप जोहती "
क्या इस प्रकार करना ठीक होगा क्यों कि शेष सभी में तीनों पंक्तियों की टेक समान है |
वैसे जो नियम आपने बताये उनके अनुसार तो कोई परिवर्तन आवश्यक नहीं |
सादर
कमल
आदरणीय आचार्य जी,
सभी त्रिपदिक नवगीत सुन्दर हैं! मुझे विषेश रूप से
"सुन पंछी का मशविरा
मेघदूत जाता फिरा
सलिल-धार बनकर गिरा"
की कल्पना बहुत भाई।
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
२२ अक्तूबर २०११ १०:५२ अपराह्न
आदरणीय आचार्य जी,
आपका नवगीत अति सुन्दर लगा | बधाई स्वीकार करें |
सादर
श्रीपेअकाश शुक्ल
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