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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

कुण्डलियाँ: -- संजीव 'सलिल'


कुण्डलियाँ:                                       

संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.

फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..

तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.

मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..

तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.

'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..

*

कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.

हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..

कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.

तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..

जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.

'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..

*

सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.

घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.

जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.

बिछुड़ें तो अवढरदानी भी हों प्रलयंकर.

असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.

नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..

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