बाल गीत:
सोन चिरैया ---
संजीव वर्मा 'सलिल'



सोनचिरैया फुर-फुर-फुर,
उड़ती फिरती इधर-उधर.
थकती नहीं, नहीं रूकती.
रहे भागती दिन-दिन भर.
रोज सवेरे उड़ जाती.
दाने चुनकर ले आती.
गर्मी-वर्षा-ठण्ड सहे,
लेकिन हरदम मुस्काती.
बच्चों के सँग गाती है,
तनिक नहीं पछताती है.
तिनका-तिनका जोड़ रही,
घर को स्वर्ग बनाती है.
बबलू भाग रहा पीछे,
पकडूँ जो आए नीचे.
घात लगाये है बिल्ली,
सजग मगर आँखें मीचे.
सोन चिरैया खेल रही.
धूप-छाँव हँस झेल रही.
पार करे उड़कर नदिया,
नाव न लेकिन ठेल रही.
डाल-डाल पर झूल रही,
मन ही मन में फूल रही.
लड़ती नहीं किसी से यह,
खूब खेलती धूल रही.
गाना गाती है अक्सर,
जब भी पाती है अवसर.
'सलिल'-धार में नहा रही,
सोनचिरैया फुर-फुर-फुर.
* * * * * * * * * * * * * *
= यह बालगीत सामान्य से अधिक लम्बा है. ४-४ पंक्तियों के ७ पद हैं. हर पंक्ति में १४ मात्राएँ हैं. हर पद में पहली, दूसरी तथा चौथी पंक्ति की तुक मिल रही है.चिप्पियाँ / labels : सोन चिरैया, सोहन चिड़िया, तिलोर, हुकना, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', great indian bustard, son chiraiya, sohan chidiya, hukna, tilor, indian birds, acharya sanjiv 'salil'
6 टिप्पणियां:
सलिल जी,
बहुत सुंदर बाल गीत है. बच्चों के लिए और लिखें. आनन्द की अनुभूति होती है.
मुझसे भी एक बन गया देखा-देखी:
३५५४. चिड़िया आती जाती है: बाल-गीत
चिड़िया आती जाती है
इक तिनका रख जाती है
नन्हा नीड़ सजाती है
सबका जिया लुभाती है
मनभावन, सलोनी सी कविता !...
बधाई !
सादर,
दीप्ति
आदरणीय आचार्य जी
मोहक!
सादर
आ० सलिल जी
बच्चों के मन को छू जाने वाली सुन्दर बाल कविता।
आपको ढेर सारी बधाइयाँ।
सन्तोष कुमार सिंह
एक अति रोचक मीठा बाल गीत |
अचल वर्मा
आदरणीय सलिल जी,
सुंदर लगा बाल गीत
बधाई स्वीकारें
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
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