(१)
मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है,सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है,
अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,
रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||
(२)
यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है,
यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार है,
सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है,
निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का त्यौहार है ||
(३)
सहना पड़े सुख दुःख कभी मत, भूलिए उस पाप को,
यह जिन्दगी है कीमती अब, छोडिये संताप को,
अभिमान को भी त्यागिये तब, मापिये निज ताप को,
तब तो कसौटी पर कसें हम, आज अपने आप को||
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