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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

alankar salila : rupak

अलंकार सलिला 

: २२ : रूपक अलंकार























एक वर्ण्य का हो 'सलिल', दूजे पर आरोप 
अलंकार रूपक  करे, इसका उसमें लोप 
*
इसको उसका रूप दे, रूपक कहता बात 
रूप-छटा मन मोह ले, अलंकार विख्यात  
*
किसी वस्तु को दे 'सलिल', जब दूजी का रूप 
अलंकार रूपक कहे, निरखो छटा अनूप  
*
जब कवि एक व्यक्ति या वस्तु को किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु रूप देता है तो रूपक अलंकार होता है  रूपक में मूल का अन्य में उसी तरह लोप होना बताया बताया जाता है जैसे नाटक में पात्र के रूप में अभिनेता खुद को विलीन कर देता है

उदाहरण: 

१. चरन-सरोज पखारन लागा 

२. निष्कलंक यश- मयंक, 
    पैठ सलिल-धार-अंक
     रूप निज निहारता     

जब प्रस्तुत या उपमेय पर अप्रस्तुत या उपमान का निषेधरहित आरोप किया जाता है तब रूपक अलंकार होता है यह आरोप २ प्रकार का होता है प्रथम अभेदात्मक या वास्तविक  तथा द्वितीय भेदात्मक, तद्रूपात्मक या आहार्य। इस आधार पर रूपक के २ प्रकार या रूप हैं अ. अभेद रूपक एवं आ. तद्रूप रूपक। 

उक्त दोनों के ३ उप भेद क. सम, ख. अधिक तथा ग. न्यून हैं 

उदाहरण:

क. सम अभेद रूपक: 

१. उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग 
    विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग  

२. नेह-नर्मदा नहाकर, मन-मयूर के नाम 
    तन्मय तन ने लिख दिया, चिन्मय चित बेदाम   

ख. अधिक अभेद रूपक:


       जिस अभेद रूपक में समानता होते हुए भी उपमेय को उपमान से कुछ अधिक दिखाया या बताया जाता वहाँ अधिक अभेद रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. नव वधु विमल तात जस तोरा। रघुवर किंकर कुमुद चकोरा 
    उदित सदा अथ इहि कबहू ना। घटिहि न जग नभ दिन-दिन दूना

२. केसरि रंग के अंग की वास वसी रहै याही से पास घनेरी
    चित्रमयी क्षिति भीति सवै रघुनाथ लसै प्रतिबिंबिनि घेरी
    प्यारी के रूप अनूप की और कहाँ लौ कहौं महिमा बहुतेरी
    आनन चंद की कैसी अमंद रहै घर में दिन-रात उजेरी

ग. न्यून या हीन अभेद रूपक: 

     जहाँ उपमेय में उपमान से  कुछ कमी होने पर भी अभेदता स्पष्ट की जाती है, वहाँ न्यून या हीन अभेद  रूपक अलंकार होता है  

उदाहरण:

१.  उषा रंगीली किन्तु सजनि उसमें वह अनुराग नहीं 
    निर्झर में अक्षय स्वर-प्रवाह है पर वह विकल विराग नहीं 
    ज्योत्स्ना में उज्ज्वलता है पर वह प्राणों का मुस्कान नहीं 
    फूलों में हैं वे अधर किंतु उनमें वह मादक गान नहीं 

२. आई हौं देखि सराहे न जात हैं, या विधि घूँघट में फरके हैं 
    मैं तो जानी मिले दोउ पीछे ह्वै कान लख्यो कि उन्हें हरके हैं 
    रंगनि ते रूचि ते रघुनाथ विचारु करें कर्ता करके हैं 
    अंजन वारे बड़े दृग प्यारि के खंजन प्यारे बिना परके हैं 

च. सम तद्रूप रूपक :

जहाँ उपमेय को उपमान का दूसरा रूप कहा जाता है वहाँ सम रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. दृग कूँदन को दुखहरन, सीत करन मनदेस 
    यह वनिता भुव लोक की, चन्द्रकला शुभ वेस 

२. मन-मेकल गिरिशिखर से, नेह-नर्मदा धार
    बह तन-मन की प्यास हर, बाँटे हर्ष अपार     

छ. अधिक तद्रूप :

जब उपमेय और उपमान की तद्रूपता दर्शायी जाते समय उपमेय में कोई बात अधिक हो, तब अधिक तद्रूप रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. लगत कलानिधि चाँदनी, निशि में ही अभिराम 
    दिपति अपर विधु वदन की, आभा आठों जाम 

२. अर्धांगिनी बहिना सुता, नहीं किसी का मोल 
    माँ की ममता है मगर, सचमुच ही अनमोल  

ज. न्यून या हीन तद्रूप रूपक

जहाँ उपमेय में उपमान से यत्किंचित न्यून गुण होने पर भी तद्रूपता दिखाई जाए, वहाँ न्यून तद्रूप रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. दुइ भुज के हरि रघुवर सुंदर वे 
   एक जीभ के लछिमन दूसर सेष 
   रस भरे यश भरे कहै कवि रघुनाथ रंग भरे रूप भरे खरे अंग कल के 
   कमलनिवास परिपूरन सुवास आस भावते के चंचरीक लोचन चपल के 
   जगमग करत भरत ड्यटी दीह पोषे जोबन दिनेश के सुदेश भुजबल के 
   गाइबे के जोग भये ऐसे हैं अम्मल फूले तेरे नैन कोमल कमल बिनु जल के 

२. राम-श्याम अभिराम हैं, दोनों हरि के रूप 
    लड़ते-लड़वाते रहे, जीत-जिता अपरूप 

रूपक के ३ अन्य भेद सांग, निरंग तथा परम्परित हैं।   

इ. सांग रूपक : 

जब उपमेय का उपमान पर आरोप करते समय उपमेय के अंगों का भी उपमान के अंगों पर आरोप किया जाए तो वहां सांग (अंग सहित) रूपक होता है। सांग में उपमेय-उपमान समानता स्थापित करते समय उनके अंगों की भी समानता स्थापित की जाती है। 

उदाहरण:

१. ऊधो! मेरा हृदयतल था एक उद्यान न्यारा 
                  शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ थीं 
    न्यारे-न्यारे कुसुम कितने भावों के थे अनेकों 
                  उत्साहों के विपुल विटपी मुग्धकारी महा थे 
    लोनी-लोनी नवल लतिका थीं अनेकों उमंगें 
                  सद्वाञ्छा के विहग उसके मंजुभाषी बड़े थे 
    धीरे-धीरे मधुर हिलतीं वासना-बेलियाँ थीं 
                  प्यारी आशा-पवन जब थी डोलती स्निग्ध हो के 

यहाँ ह्रदय को उद्यान बताते हुए उद्यान के अंगों की हृदय के अंगों से सामंता स्थापित की गई है: उद्यान - ह्रदय, क्यारियाँ -कल्पनाएँ, कुसुम - ह्रदय के विविध भाव, वृक्ष - उत्साह, लतिकाएँ - उमंगें, पक्षी - सदवांछाएँ, बेलें - वासनाएँ, पवन - आशा लोनी = सुन्दर   


२. मेरे मस्तक के छत्र मुकुट वसुकाल सर्पिणी के शतफन 
    मुझ चिर कुमारिका के ललाट में नित्य नवीन रुधिर चंदन 
    आँजा करती हूँ चितधूम् का ड्रग में अंध तिमिर अञ्जन 
    श्रृंगार लपट की चीयर पहन, नचा करती मैं छूमछनन 

 क्रांति की नर्तकी से सामंता स्थापित करते हुए उनके अंगों की समानता (छत्र मुकुट - शत फन, रुधिर - चन्दन, चिताधूम - तिमिरअंजन, लपट - चीर) दर्शायी गयी है। 

३. निर्वासित थे राम, राज्य था कानन में भी 
    सच ही है श्रीमान! भोगते सुख वन में भी 
    चंद्रातप था व्योम तारका रत्न जड़े थे 
    स्वच्छ दीप था सोम, प्रजा तरु-पुञ्ज खड़े थे 
    शांत नदी का स्रोत बिछा था, अति सुखकारी 
    कमल-कली का नृत्य हो रहा था मन-हारी 

यहाँ कानन और राज्य का साम्य स्थापित करते समय अंगोंपांगों का साम्य (चन्द्रातप - व्योम, रत्न - तारे, दीप - चन्द्रमा, प्रजा - तरु-पुञ्ज, बिछावन - शांत नदी का स्रोत, नर्तकी - कमल कली) दृष्टव्य है

४. कौशिक रूप पयोनिधि पावन, प्रेम-वारि अवगाह सुहावन  
    राम-रूप राकेस निहारी, बढ़ी बीचि पुलकावलि बाढ़ी 

विश्वामित्र - समुद्र, प्रेम - पानी, राम - चण्द्रमा, पुलकावलि - लहर कौशिक = विश्वामित्र, पयोनिधि - समुद्र, बीचि = तरंग। 

. बरखा ऋतु रघुपति-भगति, तुलसी सालि-सु-दास 
    राम-नाम बर बरन जुग, सावन-भदों मास 

राम-भक्ति - वर्षा, तुलसी जैसे रामभक्त = धान, रा म - सावन-भादों 

६. हरिमुख पंकज भ्रुव धनुष, खंजन लोचन नित्त 
    बिम्ब अधर कुंडल मकर, बसे रहत मो चित्त 

हरिमुख - पंकज, भ्रुव - धनुष, खंजन - लोचन, बिम्ब - अधर, कुंडल - मकर

७. चन्दन सा वदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना 
    मुझे दोष न देना जग वालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना 
    ये काम कमान भँवें तेरी, पलकों के किनारे कजरारे 
    माथे पर सिंदूरी सूरज, ओंठों पे दहकते अंगारे 
    साया भी जो तेरा पड़ जाए, आबाद हो दिल का वीराना 

ई. निरंग रूपक :

जब उपमेय मात्र का आरोप उपमान पर किया जाए अर्थात उपमेय-अपमान की समनता बताई  उनके अंगों का उल्लेख न हो तो निरंग रूपक होता है 

उदाहरण:

१. चरण-कमल मृदु मंजु तुम्हारे 

२. हरि मुख मृदुल मयंक 

३. ईश्वर-अल्लाह एक समान

४. धरती मेरी माता, पिता आसमान 
    मुझको तो अपना सा लागे सारा जहान 

५. 

उ. परम्परित रूपक: 

जहाँ प्रधान रूपक अन्य रूपक पर आश्रित हो, अथवा उपमेय का उपमान पर आरोपण किसी अन्य आरोप पर आधारित हो वहां परंपरित रूपक होता है। ।परंपरित में दो रूपक होते हैं। एक रूपक का कारण आधार दूसरा रूपक होता है। 

उदाहरण: 

१. आशा मेरे हृदय-मरु की मंजु मंदाकिनी है 

यहाँ ह्रदय-मरु तथा मंजु-मंदाकनी दो रूपक हैं। आशा को मंदाकिनी बनाया जाना तभी उपयुक्त है जब हृदय को मरु बताया जा चुका हो 

२. रविकुल-कैरव विधु-रघुनायक 

रविकुल को कैरव बताने के पश्चात रघुनायक को विधु बताया गया है। यहाँ २ रूपक हैं। पश्चात्वर्ती रूपक पूर्ववर्ती रूपक पर आधारित है

३. किसके मनोज-मुख चन्द्र को निहारकर 
    प्रेम उर सागर सदैव है उछलता 

यहाँ मुख-चन्द्र रूपक उर-सागर रूपक का आधार है

४. प्रेम-अतिथि है खड़ा द्वार पर, ह्रदय-कपाट खोल दो तुम!

ह्रदय-कपाट का रूपक प्रेम-अतिथि के रूपक बिना अपूर्ण प्रतीत होगा

५. यह छोटा सा शिशु है मेरा, जीवन-निशि का शुभ्र सवेरा 

जीवन-निशि के रूपक पर शिशु-शुभ्र सवेरा का रूपक आधृत है. 

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