एक रचना:
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मुर्दा मन ही
मुर्दा तन की
करे नुमाइश।
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संबंधों के अनुबंधों को
प्रतिबंधों सम जिसने जाना।
माया-मोह, लोभ-लालच ही
साध्य जिसे, अपना बेगाना।
नहीं निधन पर
अश्रु बहाने की भी
वहाँ रही गुंजाइश।
मुर्दा मन ही
मुर्दा तन की
करे नुमाइश।
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जानेवाला चला गया पर
बेगाना तो डटा खड़ा है।
चित्र खिंचाने का लालच भी
तनिक न छोटा बहुत बड़ा है।
साक्ष्य जुटा लूँ,
काम वक़्त पर आये
है इतनी फरमाइश।
मुर्दा मन ही
मुर्दा तन की
करे नुमाइश।
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माटी का ही गढ़ा घरौंदा
माटी ने माटी से मिलकर।
माटी के कुछ बना खिलौने
विदा हुआ माटी में मिलकर।
हाय विधाता!
सबक न सीखी
अब भी रंजिश।
मुर्दा मन ही
मुर्दा तन की
करे नुमाइश।
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