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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

navgeet

नवगीत:
किस पण्डे की जय बोलें 
किस डंडे को रोयें, 
हर चुनाव में आश्वासन की 
खेती होती है.
बेबस जनता
पाँच साल तक
बरबस रोती है.
*
केंद्र, राज्य, पंचायत, मंडी,
कॉलेज या स्कूल.
जब भी होता कहीं इलेक्शन
हिल जाती है चूल.
ताड़ बना देते तिनके को
नाहक देकर तूल.
धोखा देते एक-दूजे को
नाता-रिश्ता भूल.
अनदेखी करते तूफां की
झोंक आँख में धूल.
किस झंडे की जय बोलें
किस गुंडे को रोयें,
हर चुनाव में फटा चीर, चुप
कृष्णा खोती है.
हर घुमाव है
भूल-भुलैयाँ
फँस मति खोती है.
बेबस जनता
पाँच साल तक
बरबस रोती है.
*
गिद्ध, बाज, भेड़िया खड़े हैं
ले पैने नाखून.
तनिक विरोध किया तो होगा
गौरैयों का खून.
देश-विदेश मटकता फिरता
नेता अफ़लातून.
सुत, जमाई,साले खाते
नैतिकता-मुर्गा भून.
सुरा-सुंदरी की बहार है
गली-गली रंगून.
किस फंदे की जय बोलें
किस चंदे को रोयें,
हर चुनाव में खूं -आँसू पी
भूखी सोती है.
घिर अभाव में
बेच रही मत
काँटे बोती है.
बेबस जनता
पाँच साल तक
बरबस रोती है.
*

1 टिप्पणी:

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