अलंकार सलिला: २५
प्रतीप अलंकार
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प्रतीप अलंकार
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अलंकार में जब खींचे, 'सलिल' व्यंग की रेख.
चमत्कार सादृश्य का, लें प्रतीप में देख..
उपमा, अनन्वय तथा संदेह अलंकार की तरह प्रतीप अलंकार में भी सादृश्य का चमत्कार रहता है, अंतर यह है कि उपमा की अपेक्षा इसमें उल्टा रूप दिखाया जाता है। यह व्यंग पर आधारित सादृश्यमूलक अलंकार है। प्रसिद्ध उपमान को उपमेय और उपमेय को उपमान सिद्ध कर चमत्कारपूर्वक उपमेय या उपमान की उत्कृष्टता दिखाये जाने पर प्रतीप अलंकार होता है।जब उपमेय के समक्ष उपमान का तिरस्कार किया जाता है तो प्रतीप अलंकार होता है।
प्रतीप अलंकार के ५ प्रकार हैं।
उदाहरण-
१. प्रथम प्रतीप:
जहाँ प्रसिद्ध उपमान को उपमेय के रूप में वर्णित किया जाता है अर्थात उपमान को उपमेय और उपमेय को उपमान बनाकर।
उदाहरण-
१. यह मयंक तव मुख सम मोहन
२. है दाँतों की झलक मुझको दीखती दाडिमों में.
बिम्बाओं में पर अधर सी राजती लालिमा है.
मैं केलों में जघन युग की देखती मंजुता हूँ.
गुल्फों की सी ललित सुखमा है गुलों में दिखाती
३. वधिक सदृश नेता मुए, निबल गाय सम लोग
कहें छुरी-तरबूज या, शूल-फूल संयोग?
२. द्वितीय प्रतीप:
जहाँ प्रसिद्ध उपमान को अपेक्षाकृत हीन उपमेय कल्पित कर वास्तविक उपमेय का निरादर किया जाता है।
उदाहरण-
१. नृप-प्रताप सम सूर्य है, जस सम सोहत चंद
२. का घूँघट मुख मूँदहु नवला नारि.
चाँद सरग पर सोहत एहि अनुसारि
३. बगुला जैसे भक्त भी, धारे मन में धैर्य
बदला लेना ठनकर, दिखलाते निर्वैर्य
3. तृतीय प्रतीप:
जहाँ प्रसिद्ध उपमान का उपमेय के आगे निरादर होता है।
उदाहरण-
१. काहे करत गुमान मुख?, तुम सम मंजू मयंक
२. मृगियों ने दृग मूँद लिए दृग देख सिया के बांके.
गमन देखि हंसी ने छोडा चलना चाल बनाके.
जातरूप सा रूप देखकर चंपक भी कुम्हलाये.
देख सिया को गर्वीले वनवासी बहुत लजाये.
३. अभिनेत्री के वसन देख निर्वासन साधु शरमाये
हाव-भाव देखें छिप वैश्या, पार न इनसे पाये
४. चतुर्थ प्रतीप:
जहाँ उपमेय की बराबरी में उपमान नहीं तुल/ठहर पाता है, वहाँ चतुर्थ प्रतीप होता है।
उदाहरण-
१. काहे करत गुमान ससि! तव समान मुख-मंजु।
२. बीच-बीच में पुष्प गुंथे किन्तु तो भी बंधहीन
लहराते केश जाल जलद श्याम से क्या कभी?
समता कर सकता है
नील नभ तडित्तारकों चित्र ले?
३. बोली वह पूछा तो तुमने शुभे चाहती हो तुम क्या?
इन दसनों-अधरों के आगे क्या मुक्ता हैं विद्रुम क्या?
४. अफसर करते गर्व क्यों, देश गढ़ें मजदूर?
सात्विक साध्वी से डरे, देवराज की हूर
५. पंचम प्रतीप:
जहाँ उपमान का कार्य करने के लिए उपमेय ही पर्याप्त होता है और उपमान का महत्व और उपयोगिता व्यर्थ हो जाती है, वहाँ पंचम प्रतीप होता है।
उदाहरण-
१. का सरवर तेहि देऊँ मयंकू
२. अमिय झरत चहुँ ओर से, नयन ताप हरि लेत.
राधा जू को बदन अस चन्द्र उदय केहि हेत..
३. छाह करे छितिमंडल में सब ऊपर यों मतिराम भए हैं.
पानिय को सरसावत हैं सिगरे जग के मिटि ताप गए हैं.
भूमि पुरंदर भाऊ के हाथ पयोदन ही के सुकाज ठये हैं.
पंथिन के पथ रोकिबे को घने वारिद वृन्द वृथा उनए हैं.
४. क्यों आया रे दशानन!, शिव सम्मुख ले क्रोध
पाँव अँगूठे से दबा, तब पाया सत-बोध
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