मुक्तिका :
सूखी नदी भी रेत सीपी शंख दे देती हमें
हम मनुज बहती नदी को नित्य गन्दा कर रहे
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कह रहे मैया! मगर आँसू न इसके पोंछते
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कह रहे मैया! मगर आँसू न इसके पोंछते
झाड़ पत्थर रेत मछली बेच धंधा कर रहे
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काल आ मारे हमें इतना नहीं है सब्र अब
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काल आ मारे हमें इतना नहीं है सब्र अब
गले मिलकर पीठ पर चाकू चलाकर हँस रहे
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व्यथित प्रकृति रो रही, भूचाल-तूफां आ रहे
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व्यथित प्रकृति रो रही, भूचाल-तूफां आ रहे
हम जलाने लाश अपनी आप चंदा कर रहे
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सूरज ठहाका लगाता है, देख कोशिश बेतुकी
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सूरज ठहाका लगाता है, देख कोशिश बेतुकी
मलिन छवि भायी नहीं तो दीप मंदा कर रहे
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वाह! शाबाशी खुदी को दे रहे कर रतजगा
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वाह! शाबाशी खुदी को दे रहे कर रतजगा
बाँह में ये, चाह में वो आह फंदा कर रहे
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सभ्यता-तरु पौल डाला, मूल्य अवमूल्यित किये
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सभ्यता-तरु पौल डाला, मूल्य अवमूल्यित किये
पाँच अँगुली हों बराबर, पञ्च रंदा कर रहे
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