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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

ananvaya alankar

अलंकार सलिला 

: २१  : अनन्वय अलंकार

















बने आप उपमेय ही, जब खुद का उपमान 
'सलिल' अनन्वय है वहाँ, पल भर में ले जान 
*
किसी काव्य प्रसंग में उपमेय स्वयं ही उपमान हो तथा पृथक उपमान का अभाव हो तो अनन्वय अलंकार होता है.  

उदाहरण:

१. लही न कतहुँ हार हिय मानी।  इन सम ये उपमा उर जानी।।

२. हियौ हरति औ' करति अति, चिंतामनि चित चैन 
    वा सुंदरी के मैं लखे, वाही के से नैन  

३. अपनी मिसाल आप हो, तुम सी तुम्हीं प्रिये! 
    उपमान कैसे दे 'सलिल', जूठे सभी हुए

४. ये नेता हैं नेता जैसे, चोर-उचक्के इनसे बेहतर

५. नदी नदी सम कहाँ रह गयी?, शेष ढूह है रेत के 
    जहाँ-तहाँ डबरों में पानी, नदी हो गयी खेत रे!

६. भारत माता 
    समान है, केवल 
    भारत माता।    -हाइकु 

७. नहीं लता सी दूसरी  
    कहीं गायिका हुई है 
    लता आप हैं लता सी -जनक छंद    


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