अलंकार सलिला
: १९ : उपमेयोपमा अलंकार
बने परस्पर चाह से, जीवन स्वर्ग समान
दोनों ही उपमेय हों, दोनों ही उपमान
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किसी काव्य प्रसंग में बाह्य उपमान के स्थान पर दो वस्तुएँ अथवा व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे के उपमेय और उपमान हों तो वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है.
उदाहरण:
१. सब मन रंजन हैं, खंजन से नैन आली, नैनन से खंजन हू, लागत चपल है.
मीनन से महा मनमोहन है मोहिबे को, मीन इन ही से नीके, सोहत अमल है
मृगन के लोचन से, लोचन हैं रोचन ये, मृग दृग इन ही से, सोहे पलापल है
सूरति निहार देखी, नीके ऐसी प्यारी जू के, कमल से नैन और, नैन से कमल हैं
२. नेता जैसे अपराधी हैं, अपराधी हैं जैसे नेता
देता प्रभु पल में ले लेता, ले लेता पल में प्रभु देता
ममता-माया, माया-ममता, काया-छाया, छाया-काया
भिन्न अभिन्न कौन है किससे, सोच-सोच कवि-मन चकराया
-लाक्षणिक जातीय ३२ मात्रिक, दण्डकला छंद यति १६-१६, पंक्त्यांत लघु-गुरु, द्विपदिक मुक्तक
३. उषा लगती
सुंदरी सी, सुंदरी
लगती उषा. - हाइकु वर्णिक छंद, ५-७-५
४. कविता-पत्र
कौन लिखता अब
पत्र-कविता? - - हाइकु वर्णिक छंद, ५-७-५
५. गैर अपने हो गए हैं, हुए अपने गैर
कौन जाने कौन किसकी, चाहता है खैर?
- अवतारी जातीय २४ मात्रिक रूपमाला छंद, यति १४-१०, पंक्त्यांत गुरु लघु
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