व्यंग्य:
आवेदन आमंत्रित हैं.…
राष्ट्रीय साहित्य अकादमी आवेदन आमंत्रित करती है उन सभी से जो-
१. विगत आम चुनाव में जनता द्वारा दिये गए निर्णय को पचा नहीं सके हैं.
२. स्वतंत्रता प्राप्ति से ६८ साल बाद भी अपनी विचारधारा को जनस्वीकृति नहीं दिला सके
३. तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों को दबाव में रखकर विविध अकादमियों और शिक्षा संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश करते रहे
४. प्रशासनिक कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते रहे और हिंसक जनान्दोलनों में निर्दोष ग्रामीणों को झोंकते रहे
५. सीमा विवादों में भारत सरकार के पक्ष को गलत और चीन को सही मानते रहे
६. आतंकवादियों के मानवाधिकारों के पहरुआ हैं
७. जिन्हें कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं के साथ होता अन्याय, अन्याय नहीं प्रतीत होता
८. जो प्रगतिवादी कविता के नाम पर आम आदमी को समझ न आनेवाली भाषा के पैरोकार हैं
९. छंद को तिरस्कृत कर गीत के मरने की घोषणा कर चुके हैं
१०. साहित्य में यथार्थ के नाम पर अश्लील और गाली-गलौज भरी भाषा के पक्षधर हैं
११. जो सांप्रदायिक एकता का अर्थ बहुसंख्यकों का दमन और अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण मानते हैं
१२. येन-केन-प्रकारेण मोदी सरकार के विरोध में वातावरण बनाने के लिये कटिबद्ध हैं
१३. असामाजिक तत्वों द्वारा की गयी हत्याओं की जाँच वैधानिक एजेंसियों द्वारा कराये जाने पर विश्वास नहीं रखते
१४. चिन्ह-चिन्ह कर बाँटी गयी रेवड़ियों से पुरस्कृत होकर खुद को स्वनामधन्य मानने लगे किन्तु जिन्हें जाननेवाले नाममात्र के हैं
१५. जिन्होंने आवेदन कर पुरस्कार जुगाडे, किताबों की सैकड़ों प्रतियों को पुस्तकालयों में खपवाया, शिक्षण संस्थाओं में जाकर किराये और भत्ते प्राप्त किये
प्राप्त पुरस्कारों तथा अन्य लाभों का विवरण देते हुए पुरस्कार वापिसी हेतु आवेदन फ़ौरन से पेश्तर प्रस्तुत करें और अपनी आत्मा पर लड़े बोझ से मुक्त हों. आपके द्वारा प्राप्त लाभों के विवरण के अनुसार राशि का चेक प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा कर विवरण संलग्न करें।
प्राप्त आवेदनों पर तत्काल पुरस्कार वापिसी की अनुमति दी जाकर आत्मावलोकन, आत्मालोचन तथा आत्मोन्नयन के सपनो पर पग रखने के लिये आपको धन्यवाद दिया जायेगा।
इश्वर से प्रार्थना है कि शेष जीवन में आपको पुरस्कारों का मोह न व्यापे, क्योंकि जब पुरस्कृत होना साध्य और रचना कर्म साधन हो जाता है तब न रचना अमर होती है, न रचनाकार।
आवेदन आमंत्रित हैं.…
राष्ट्रीय साहित्य अकादमी आवेदन आमंत्रित करती है उन सभी से जो-
१. विगत आम चुनाव में जनता द्वारा दिये गए निर्णय को पचा नहीं सके हैं.
२. स्वतंत्रता प्राप्ति से ६८ साल बाद भी अपनी विचारधारा को जनस्वीकृति नहीं दिला सके
३. तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों को दबाव में रखकर विविध अकादमियों और शिक्षा संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश करते रहे
४. प्रशासनिक कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते रहे और हिंसक जनान्दोलनों में निर्दोष ग्रामीणों को झोंकते रहे
५. सीमा विवादों में भारत सरकार के पक्ष को गलत और चीन को सही मानते रहे
६. आतंकवादियों के मानवाधिकारों के पहरुआ हैं
७. जिन्हें कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं के साथ होता अन्याय, अन्याय नहीं प्रतीत होता
८. जो प्रगतिवादी कविता के नाम पर आम आदमी को समझ न आनेवाली भाषा के पैरोकार हैं
९. छंद को तिरस्कृत कर गीत के मरने की घोषणा कर चुके हैं
१०. साहित्य में यथार्थ के नाम पर अश्लील और गाली-गलौज भरी भाषा के पक्षधर हैं
११. जो सांप्रदायिक एकता का अर्थ बहुसंख्यकों का दमन और अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण मानते हैं
१२. येन-केन-प्रकारेण मोदी सरकार के विरोध में वातावरण बनाने के लिये कटिबद्ध हैं
१३. असामाजिक तत्वों द्वारा की गयी हत्याओं की जाँच वैधानिक एजेंसियों द्वारा कराये जाने पर विश्वास नहीं रखते
१४. चिन्ह-चिन्ह कर बाँटी गयी रेवड़ियों से पुरस्कृत होकर खुद को स्वनामधन्य मानने लगे किन्तु जिन्हें जाननेवाले नाममात्र के हैं
१५. जिन्होंने आवेदन कर पुरस्कार जुगाडे, किताबों की सैकड़ों प्रतियों को पुस्तकालयों में खपवाया, शिक्षण संस्थाओं में जाकर किराये और भत्ते प्राप्त किये
प्राप्त पुरस्कारों तथा अन्य लाभों का विवरण देते हुए पुरस्कार वापिसी हेतु आवेदन फ़ौरन से पेश्तर प्रस्तुत करें और अपनी आत्मा पर लड़े बोझ से मुक्त हों. आपके द्वारा प्राप्त लाभों के विवरण के अनुसार राशि का चेक प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा कर विवरण संलग्न करें।
प्राप्त आवेदनों पर तत्काल पुरस्कार वापिसी की अनुमति दी जाकर आत्मावलोकन, आत्मालोचन तथा आत्मोन्नयन के सपनो पर पग रखने के लिये आपको धन्यवाद दिया जायेगा।
इश्वर से प्रार्थना है कि शेष जीवन में आपको पुरस्कारों का मोह न व्यापे, क्योंकि जब पुरस्कृत होना साध्य और रचना कर्म साधन हो जाता है तब न रचना अमर होती है, न रचनाकार।
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