एक रचना:
*
ओ मेरी नेपाली सखी!
एक सच जान लो
समय के साथ आती-जाती है
धूप और छाँव
लेकिन हम नहीं छोड़ते हैं
अपना गाँव।
परिस्थितियाँ बदलती हैं,
दूरियाँ घटती-बढ़ती हैं
लेकिन दोस्त नहीं बदलते
दिलों के रिश्ते नहीं टूटते।
मुँह फुलाकर रूठ जाने से
सदियों की सभ्यताएँ
समेत नहीं होतीं।
हम-तुम एक थे,
एक हैं, एक रहेंगे।
अपना सुख-दुःख
अपना चलना-गिरना
संग-संग उठना-बढ़ना
कल भी था,
कल भी रहेगा।
आज की तल्खी
मन की कड़वाहट
बिन पानी के बदल की तरह
न कल थी,
न कल रहेगी।
नेपाल भारत के ह्रदय में
भारत नेपाल के मन में
था, है और रहेगा।
इतिहास हमारी मित्रता की
कहानियाँ कहता रहा है,
कहता रहेगा।
आओ, हाथ में लेकर हाथ
कदम बढ़ाएँ एक साथ
न झुकाया है, न झुकाएँ
हमेशा ऊँचा रखें अपना माथ।
नेता आयेंगे-जायेंगे
संविधान बनेंगे-बदलेंगे
लेकिन हम-तुम
कोटि-कोटि जनगण
न बिछुड़ेंगे, न लड़ेंगे
दूध और पानी की तरह
शिव और भवानी की तरह
जन्म-जन्म साथ थे, हैं और रहेंगे
ओ मेरी नेपाली सखी!
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