मुक्तक:
हम भी भरते हैं उड़ान पर बेपर की, गीत ग़ज़ल कविता रचते-मुस्काते हैं
नहीं जलाते पेट्रोल, नहिं धुआँ करें, नहीं पटक बम तांडव कभी मचाते हैं
तीर चलाते हैं शब्दों के हँस दिल पर, श्रोता सुन हँसते है, कुछ खिसियाते हैं
बात किसी के मन को यदि छू जाए तो, ह्रदय किले पर हम परचम लहराते हैं
हम भी भरते हैं उड़ान पर बेपर की, गीत ग़ज़ल कविता रचते-मुस्काते हैं
नहीं जलाते पेट्रोल, नहिं धुआँ करें, नहीं पटक बम तांडव कभी मचाते हैं
तीर चलाते हैं शब्दों के हँस दिल पर, श्रोता सुन हँसते है, कुछ खिसियाते हैं
बात किसी के मन को यदि छू जाए तो, ह्रदय किले पर हम परचम लहराते हैं
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