लघुकथा:
रिश्ते
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लंबे विदेश प्रवास के बीच पति के किसी अन्य महिला से जुड़ने का समाचार पाकर बिखर गयी थी वह। पति का फोन सुनना भी बंद कर दिया। विश्वास और संदेह में डूबते-उतराते उसने अपना कार्य निबटाया और स्वदेश लौट आयी।
रिश्ते
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लंबे विदेश प्रवास के बीच पति के किसी अन्य महिला से जुड़ने का समाचार पाकर बिखर गयी थी वह। पति का फोन सुनना भी बंद कर दिया। विश्वास और संदेह में डूबते-उतराते उसने अपना कार्य निबटाया और स्वदेश लौट आयी।
जितने मुँह उतनी बातें, सत्य की तलाश में एक दिन किसी को कुछ बताये बिना मन कड़ा कर वह पहुँच गयी पति के दरवाज़े पर।
दरवाज़ा खटकाने को थी कि अंदर से किसी को डाँटते हुए महिला स्वर सुनाई पड़ा 'कितनी बार कहा है अपना ध्यान रखा करिए लेकिन सुनते ही नहीं हो, भाभी का नंबर दो तो उनसे ऐसी शिकायत करूँ कि आपकी खटिया खड़ी कर दें।'
'किससे शिकायत करोगी और क्या वह न तो अपनी खबर देती है, न कोई फोन उठाती है। हमारे घरवाले पहले ही इस विवाह के खिलाफ थे। तुम्हें मना करता करता हूँ फिर भी रोज चली आती हो, लोग पीठ पीछे बातें बनायेंगे।'
'बनाने दो बातें, भाई को बीमार कैसे छोड़ दूँ?.... उसका धैर्य जवाब दे गया। भरभराती दीवार सी ढह पड़ी.… आहट सुनते ही दरवाज़ा खुला, दो जोड़ी आँखें पड़ीं उसके चेहरे पर गड़ी की गड़ी रह गयीं। तुम-आप? चार हाथ सहारा देकर उसे उठाने लगे। उसे लगा धरती फट जाए वह समा जाए उसमें, इतना कमजोर क्यों था उसका विश्वास? उसकी आँखों से बह रहे थे आँसू पर मुस्कुरा रहे थे रिश्ते।
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