अलंकार सलिला
: २१ : स्मरण अलंकार
एक वस्तु को देख जब दूजी आये याद
अलंकार 'स्मरण' दे, इसमें उसका स्वाद
करें किसी की याद जब, देख किसी को आप.
अलंकार स्मरण 'सलिल', रहे काव्य में व्याप..
अलंकार स्मरण 'सलिल', रहे काव्य में व्याप..
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कवि को किसी वस्तु या व्यक्ति को देखने पर दूसरी वस्तु या व्यक्ति याद आये तो वहाँ स्मरण अलंकार होता है.
जब पहले देखे-सुने किसी व्यक्ति या वस्तु के समान किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु को देखने पर उसकी याद हो आये तो स्मरण अलंकार होता है.
स्मरण अलंकार समानता या सादृश्य से उत्पन्न स्मृति या याद होने पर ही होता है. किसी से संबंधित अन्य व्यक्ति या वस्तु की याद आना स्मरण अलंकार नहीं है.
'स्मृति' नाम का एक संचारी भाव भी होता है. वह सादृश्य-जनित स्मृति (समानता से उत्पन्न याद) होने पर भी होता है और और सम्बद्ध वस्तुजनित स्मृति में भी. स्मृति भाव और स्मरण अलंकार दोनों एक साथ हो भी सकते हैं और नहीं भी.
स्मरण अलंकार से कविता अपनत्व, मर्मस्पर्शिता तथा भावनात्मक संवगों से युक्त हो जाती है.
उदाहरण:
१. प्राची दिसि ससि उगेउ सुहावा
सिय-मुख सुरति देखि व्है आवा
यहाँ पश्चिम दिशा में उदित हो रहे सुहावने चंद्र को सीता के सुहावने मुख के समान देखकर राम को सीता याद आ रही है. अत:, स्मरण अलंकार है.
२. बीच बास कर जमुनहि आये
निरखि नीर लोचन जल छाये
यहाँ राम के समान श्याम वर्ण युक्त यमुना के जल को देखकर भरत को राम की याद आ रही है. यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.
३. सघन कुञ्ज छाया सुखद, शीतल मंद समीर
मन व्है जात वहै वा जमुना के तीर
कवि को घनी लताओं, सुख देने वाली छाँव तथा धीमी बाह रही ठंडी हवा से यमुना के तट की याद आ रही है. अत; यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.
४. देखता हूँ
जब पतला इंद्रधनुषी हलका
रेशमी घूँघट बादल का
खोलती है कुमुद कला
तुम्हारे मुख का ही तो ध्यान
तब करता अंतर्ध्यान।
यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.
५. ज्यों-ज्यों इत देखियत मूरुख विमुख लोग
त्यौं-त्यौं ब्रजवासी सुखरासी मन भावै है
सारे जल छीलर दुखारे अंध कूप देखि
कालिंदी के कूल काज मन ललचावै है
जैसी अब बीतत सो कहतै ना बने बैन
नागर ना चैन परै प्रान अकुलावै है
थूहर पलास देखि देखि के बबूर बुरे
हाथ हरे हरे तमाल सुधि आवै है
६. श्याम मेघ सँग पीत रश्मियाँ देख तुम्हारी
याद आ रही मुझको बरबस कृष्ण मुरारी.पीताम्बर ओढे हो जैसे श्याम मनोहर.
दिव्य छटा अनुपम छवि बाँकी प्यारी-प्यारी.
७ . जो होता है उदित नभ में कौमुदीनाथ आके
प्यारा-प्यारा विकच मुखड़ा श्याम का याद आता
८. छू देता है मृदु पवन जो, पास आ गात मेरा
तो हो आती परम सुधि है, श्याम-प्यारे-करों की
९. सजी सबकी कलाई
पर मेरा ही हाथ सूना है.बहिन तू दूर है मुझसे
हुआ यह दर्द दूना है.
१०. धेनु वत्स को जब दुलारती
माँ! मम आँख तरल हो जाती.
जब-जब ठोकर लगती मग पर
तब-तब याद पिता की आती.
११. जब जब बहार आयी और फूल मुस्कुराये
मुझे तुम याद आये.
स्मरण अलंकार का एक रूप ऐसा मिलता है जिसमें उपमेय के सदृश्य उपमान को देखकर उपमेय का प्रत्यक्ष दर्शन करने की लालसा तृप्त हो जाती है.
१२. नैन अनुहारि नील नीरज निहारै बैठे बैन अनुहारि बानी बीन की सुन्यौ करैं
चरण करण रदच्छन की लाली देखि ताके देखिवे का फॉल जपा के लुन्यौं करैं
रघुनाथ चाल हेत गेह बीच पालि राखे सुथरे मराल आगे मुकता चुन्यो करैं
बाल तेरे गात की गाराई सौरि ऐसी हाल प्यारे नंदलाल माल चंपै की बुन्या करैं
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