कुल पेज दृश्य

शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

smaran alankar

अलंकार सलिला: २७ 

स्मरण अलंकार
*
















*
बीती बातों को करें, देख आज जब याद 
गूंगे के गुण सा 'सलिल', स्मृति का हो स्वाद।।

स्मरण करें जब किसी का, किसी और को देख
स्मित अधरों पर सजे, नयन अश्रु की रेख
करें किसी की याद जब, देख किसी को आप
अलंकार स्मरण 'सलिल', रहे काव्य में व्याप

जब काव्य पंक्तियों को पढ़ने या सुनने पहले देखी-सुनी वस्तु, घटना अथवा व्यक्ति की, उसके समान वस्तु, घटना अथवा व्यक्ति को देखकर याद ताजा हो तो स्मरण अलंकार होता है
जब किसी सदृश वस्तु / व्यक्ति को देखकर किसी पूर्व परिचित वस्तु / व्यक्ति की याद आती है तो वहाँ स्मरण अलंकार होता है स्मरण स्वत: प्रयुक्त होने वाला अलंकार है कविता में जाने-अनजाने कवि इसका प्रयोग कर ही लेता है।
स्मरण अलंकार से कविता अपनत्व, मर्मस्पर्शिता तथा भावनात्मक संवगों से युक्त हो जाती है

स्मरण अलंकार सादृश्य (समानता) से उत्पन्न स्मृति होने पर ही होता है। किसी से संबंध रखनेवाली वस्तु को देखने पर स्मृति होने पर स्मरण अलंकार नहीं होता। 

स्मृति नामक संचारी भाव सादृश्यजनित स्मृति में भी होता है और संबद्ध वस्तुजनित स्मृति में भी। पहली स्थिति में स्मृति भाव और स्मरण अलंकार दोनों हो सकते हैं। देखें निम्न उदाहरण ६, ११, १२ 

उदाहरण:

१. देख चन्द्रमा
    चंद्रमुखी को याद 
    सजन आये      - हाइकु 

२. श्याम घटायें
    नील गगन पर 
    चाँद छिपायें।
    घूँघट में प्रेमिका
    जैसे आ ललचाये।  -ताँका      

३. सजी सबकी कलाई
    पर मेरा ही हाथ सूना है

    बहिन तू दूर है मुझसे
    हुआ यह दर्द दूना है

४. धेनु वत्स को जब दुलारती
    माँ! मम आँख तरल हो जाती
    जब-जब ठोकर लगती मग पर
    तब-तब याद पिता की आती

५. प्राची दिसि ससि उगेउ सुहावा 
    सिय-मुख सुरति देखि व्है आवा 

६. बीच बास कर जमुनहिं आये
    निरखिनीर लोचन जल छाये 

७. देखता हूँ जब पतला इन्द्र धनुषी हल्का,
    रेशमी घूँघट बादल का खोलती है कुमुद कला
   तुम्हारे मुख का ही तो ध्यान
   मुझे तब करता अंतर्ध्यान

८. ज्यों-ज्यों इत देखियत मूरख विमुख लोग
    त्यों-त्यों ब्रजवासी सुखरासी मन भावै है

    सारे जल छीलर दुखारे अंध कूप देखि,
    कालिंदी के कूल काज मन ललचावै है

    जैसी अब बीतत सो कहतै ना बैन
    नागर ना चैन परै प्राण अकुलावै है

    थूहर पलास देखि देखि कै बबूर बुरे,
    हाय हरे हरे तमाल सुधि आवै है


९. श्याम मेघ सँग पीत रश्मियाँ देख तुम्हारी
    याद आ रही मुझको बरबस कृष्ण मुरारी
    पीताम्बर ओढे हो जैसे श्याम मनोहर.
    दिव्य छटा अनुपम छवि बांकी प्यारी-प्यारी


१०. सघन कुञ्ज छाया सुखद, सीतल मंद समीर
     मन व्है जात अजौं वहै, वा जमुना के तीर   

११. जो होता है उदित नभ में कौमुदीनाथ आके
     प्यारा-प्यारा विकच मुखड़ा श्याम का याद आता

१२. छू देती है मृदु पवन जो पास आ गाल मेरा 
     तो हो आती परम सुधि है श्याम-प्यारे-करों की 

१३. जब जब बहार आयी और फूल मुस्कुराए
     मुझे तुम याद आये

     जब-जब ये चाँद निकला और तारे जगमगाए 
     मुझे तुम याद आये
===========================

कोई टिप्पणी नहीं: