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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

kruti charcha: shivaansh se shiv tak

कृति चर्चा:
शिवांश से शिव तक : ग्रहणीय पर्यटन वृत्तांत
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[कृति विवरण: शिवांश से शिव तक (कैलास-मानसरोवर यात्रा में शिवतत्व की खोज), ओमप्रकाश श्रीवास्तव - भारती, यात्रा वृत्तांत, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक लैमिनेटेड, पृष्ठ २०४ + १६ पृष्ठ बहुरंगी चित्र, प्रकाशक: मंजुल पब्लिशिंग हाउस, द्वितीय तल, उषा प्रीत कॉम्प्लेक्स, ४२ मालवीय नगर भोपाल ४६२००३, लेखक संपर्क: opshrivastava@ymail.com]
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भाषा और साहित्य का एक सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हें पृथक नहीं किया जा सकता। जैसे कोई संतान मन से जन्मती और माँ को परिपूर्ण करती है वैसे ही साहित्य भाषा से जन्मता और भाषा को सम्पूर्ण करता है। भाषा का जन्म समाज से होता। आम जन अपने दैनन्दिन क्रिया-कलाप में अपनी अनुभूतियों और अनुभवों को अभिव्यक्त और साझा करने के लिये जिस शब्द-समुच्चय और वाक्यावलियों का प्रयोग करते हैं, वह आरम्भ में भले ही अनगढ़ प्रतीत होती है किन्तु भाषा की जन्मदात्री होती है। शब्द भण्डार, शब्द चयन, कहन (बात कहने का सलीका), उद्देश्य तथा सैम सामयिकता के पंचतत्व भाषा के रूप निर्धारण में सहायक होते है और भशा से ही वर्ण्य-विषय (कथ्य) पाठक-श्रोता तक पहुँचता है।  स्पष्ट है कि भाषा रचनाकार और पाठक के मध्य संवेदन सेतु का निर्माण करती है।  जो लेखक ये संवेदना-सेतु बना पते हैं उनकी कृति हाथ दर हाथ गुजरती हुई पढ़ी, समझी, सराही और चर्चा का विषय बनाई जाती है. विवेच्य कृति इसी श्रेणी में गणनीय है।

हिंदी में सर्वाधिक लिखी जानेवाली किन्तु न्यूनतम पढ़ी जानेवाली विधा पद्य है। प्रकाशकों के अनुसार गद्य अधिक बिकाऊ और टिकाऊ है किन्तु गद्य की लोकप्रिय विधाएँ कहानी, उपन्यास, व्यंग और लघुकथा हैं। एक समर्थ रचनाकार इन्हें छोड़कर एक ऐसी विधा में अपनी पहली पुस्तक प्रस्तुत करने का साहस करें जो अपेक्षाकृत काम लिखी-पढ़ी और बिकती हो तो उसकी ईमानदारी का अनुमान किया जा सकता है की वह विषय के अनुकूल अपनी भावाभिव्यक्ति और कथ्य के अनुरूप सर्वाधिक उपयुक्त विधा का चयन कर रहा है और उसे दुनियादारी से अधिक अपने आप की संतुष्टि और विषय से न्याय करने की चिंता है। 'स्व' और 'सर्व' का समन्वय और संतुलन 'सत्य-शिव-सुन्दर' की प्रतीति करने के पथ पर ले जाता है। यह कृति आत्त्म-साक्षात के माध्यम से 'शिवत्व' के संधान का सार्थक प्रयास है।

श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव पेशेवर या आदतन लिखने के आदि नहीं हैं इसलिए उनकी अनुभूतियाँ अभिव्यक्ति बनाते समय कृत्रिम भंगिमा धारण नहीं करतीं, दिल की गहराइयों में अनुभूत सत्य कागज़ पर तथ्य बनकर अंकित होता है। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी होने को विस्मृत कर वे आम जन की तरह व्यवहार करते और पाते हुए यात्रा की तैयारियों, परीक्षणों, चरणों तथा समापन तक सजग-सचेष्ट रहे हैं। भारती जी ने भोजन में पानी की तरह कहीं भी प्रत्यक्ष न होते हुए भी सर्वत्र उपस्थित हैं तथा पूरे प्रसंग को सम्पूर्णता दे स्की हैं। धर्म, लोक परम्परा, विज्ञान, कल्पना तथा यथार्थ के पञ्च तत्वों का सम्मिश्रण उचित अनुपात में कर सकने में लेखन सफल हुआ है। किसी भी एक तत्व का अधिक होना रस-भंग कर सकता था किन्तु ऐसा हुआ नहीं ।

यह पुस्तक पाठक को सांगोपांग जानकारी देती है। यथावश्यक सन्दर्भ प्रामाणिकता की पुष्टि करते हैं। दुनियादारी और
वीतरागिता के मध्य संतुलन साधना दुष्कर होता है किन्तु एक का निष्पक्ष होने प्रशासनिक अनुभव और दूसरे का गार्हस्थ जीवन में होकर भी न होने की साधना सकल वृत्तांत को पठनीय बना सकी है।  शिव का आमंत्रण, शिव से मिलने की तैयारी, हे शिव! यह शरीर आपका मंदिर है, शिव- अनेकता में एकता के केंद्र, निःस्वार्थ सेवा की सनातन परंपरा, व्यष्टि का समष्टि में विलय, प्रकृति से पुरुष तक, प्रकृति की रचना ही श्रेष्ठ है, जहाँ प्रकृति स्वयं ॐ लिखती है, रात का रहस्यमयी सौंदर्य, स्वर्गीय सौंदर्य से बंजर पठारों की ओर, चीनी ड्रैगन की हेकड़ी और हमारा आत्म सम्मान, शक्ति और शांति के प्रतीक: राक्षस ताल और मानसरोवर, शिव का निवास कैलास, जहाँ आत्मा नृत्य कर उठे, महाकाल के द्वार से, परम रानी गिरिबरु कैलासू, जहाँ पुनर्जन्म होता है, भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी, कैलास और शिवतत्व, कैलास पर्वते राम मनसा निर्मितं परम, मानसरोवर के चमत्कार, तब इतिहास ही कुछ और होता, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी तथा फिर पुराने जगत में शीर्षक २५ अध्यायों में लिखित यह कृति पाठक के मनस-चक्षुओं में कैलाश से साक्षात की अनुभूति करा पाती है। आठ परिशिष्टों में भविष्य में कैलास यात्रा के इच्छुकों के लिये मार्गों, खतरों, औषधियों, सामग्रियों, ऊँचाईयों, सहायक संस्थाओं तथा करणीय-अकरणीय आदि संलग्न करना यह बताता है कि लेखक को पूर्वानुमान है की उनकी यह कृति पाठकों को कैलास यात्रा के लिए प्रेरित करेगी जहाँ वे आत्साक्षात् के पल पाकर धन्य हो सकेंगे।

हिंदी वांग्मय का पर्यटन खंड इस कृति से निश्चय ही समृद्ध हुआ है। लेखक की वर्णन शैली रोचक, प्रसाद गुण संपन्न है। नयनाभिराम चित्रों ने कृति की सुंदरता ही नहीं उपयोगिता में भी वृद्धि की है। यत्र-तत्र रामचरित मानस, श्रीमद्भगवत्गीता, महाभारत, पद्मपुराण, बाल्मीकि रामायण आदि आर्ष ग्रंथों ने उद्धरणों ने प्रामाणिकता के साथ-साथ ज्ञानवृद्धि का मणि-काञ्चन संयोग प्रदान किया है।  कैलास-मानसरोवर क्षेत्र में चीनी आधिपत्य से उपजी अस्वच्छता, सैन्य हस्तक्षेप, असहिष्णुता तथा अशालीनता का उल्लेख क्षोभ उत्पन्न करता है किन्तु यह जानकारी होने से पाठक कैलास यात्रा पर जाते समय इसके लिये खुद को तैयार कर सकेगा।

विश्व हिंदी सम्मलेन भोपाल में मध्य प्रदेश के मुख्या मंत्री श्री शिवराज सिंग के कर कमलों से कृति का विमोचन होना इसके महत्त्व को प्रतिपादित करता है। कृति का मुद्रण स्तरीय, कम वज़न के कागज़ पर हुआ है, बँधाई मजबूत है। सकल कृति का पाठ्य पठान सजगतापूर्वक किया गया है। अत:, अशुद्धियाँ नहीं हैं।  मूलत: साहित्यकार न होते हुए भी लेखक की भाषा प्रांजल, शुद्ध, तत्सम-तद्भव शब्दावली युक्त तथा सहज ग्राह्य है।  सारत: समसामयिक उल्लेखनीय यात्रा वृत्तांतों में 'शिवांश से शिव तक' की गणना की जाएगी। इस सारस्वत अनुष्ठान  संपादन हेतु श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव तथा श्रीमती भारती श्रीवास्तव साधुवाद के पात्र हैं।
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