लघु कथा:
उत्सव २
*
बेटी ने माँ को बताया की उसकी कक्षा में एक लड़की होशियार है लेकिन किताब न लाने के कारण उसे रोज डाँट पड़ती है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं।
अगले दिन स्कूल जाते समय माँ ने बेटी को एक पैकेट दिया कि उस लड़की के लिये है, दे देना। लड़की स्कूल से लौटी तो माँ से पूछा कि बिना माँगे, अपने पैसे खर्च कर पढ़ाई का सामान क्यों भिजवाया?
माँ बोली: 'तुम खाना खा रही हो और एक चिड़िया भूख से मर रही हो तो देखती रहोगी?'
' नहीं, उसको थोड़ा खाना-पानी दे दूँगी, वह खा-पीकर फुर्र से उड़ जाएगी। दाना लेकर घर जाएगी तो उसके बच्चे कित्ते खुश होंगे'
'यही तो, तुम्हारी सहेली घर जाकर पढ़ेगी, अच्छी नंबर लाएगी तो वह और उसके घर के सब लोग खुश होंगे, तुमको दुआ देंगे, तभी तो मनेगा उत्सव।'
***
उत्सव २
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बेटी ने माँ को बताया की उसकी कक्षा में एक लड़की होशियार है लेकिन किताब न लाने के कारण उसे रोज डाँट पड़ती है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं।
अगले दिन स्कूल जाते समय माँ ने बेटी को एक पैकेट दिया कि उस लड़की के लिये है, दे देना। लड़की स्कूल से लौटी तो माँ से पूछा कि बिना माँगे, अपने पैसे खर्च कर पढ़ाई का सामान क्यों भिजवाया?
माँ बोली: 'तुम खाना खा रही हो और एक चिड़िया भूख से मर रही हो तो देखती रहोगी?'
' नहीं, उसको थोड़ा खाना-पानी दे दूँगी, वह खा-पीकर फुर्र से उड़ जाएगी। दाना लेकर घर जाएगी तो उसके बच्चे कित्ते खुश होंगे'
'यही तो, तुम्हारी सहेली घर जाकर पढ़ेगी, अच्छी नंबर लाएगी तो वह और उसके घर के सब लोग खुश होंगे, तुमको दुआ देंगे, तभी तो मनेगा उत्सव।'
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