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बुधवार, 1 अप्रैल 2009

तसलीस (उर्दू त्रिपदी) अज़ीज़ अहमद अंसारी, इंदौर


सब नज़ारे दिखाई देते हैं
मुझको छोटे से अपने इस घर में
चाँद तारे दिखाई देते हैं.

आप अपना जवाब होते हैं
जिनमें होती है दूरअंदेशी
वो सदा कामयाब होते हैं.

प्यार में अब यकीं नहीं मिलता
जिस्म ही आदमी का मिलता है
जिस्म में दिल कहीं नहीं मिलता.

क्या ये आँखों को खोलता भी है?
तुमने पूछा था पहले दिन मुझसे
अब वो तुतला के बोलता भी है.

जो मिले उसके संग होती है
जिंदगानी 'अज़ीज़' बच्चों सी
जैसे पानी का रंग होती है.

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