दोहा दुनिया-
उदय भानु का जब हुआ,
तभी ही हुआ प्रभात.
नेह नर्मदा सलिल में,
क्रीड़ित हँस नवजात.
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बुद्धि पुनीता विनीता,
शिविर की जय-जय बोल.
सत्-सुंदर की कामना,
मन में रहे टटोल.
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शिव को गुप्तेश्वर कहो,
या नन्दीश्वर आप.
भव-मुक्तेश्वर भी वही,
क्षमा ने करते पाप.
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चित्र गुप्त शिव का रहा,
कंकर-कंकर व्याप.
शिवा प्राण बन बस रहें
हरने बाधा-ताप.
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शिव को पल-पल नमन कर,
तभी मिटेगा गर्व.
मति हो जब मिथलेश सी,
स्वजन लगेंगे सर्व.
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शिवता जिसमें गुरु वही,
शेष करें पाखंड.
शिवा नहीं करतीं क्षमा,
देतीं निश्चय दंड.
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शिव भज आँखें मून्द कर,
गणपति का करें ध्यान.
ममता देंगी भवानी,
कार्तिकेय दें मान.
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संजीव
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 10 दिसंबर 2017
दोहा दुनिया- शिव वंदन
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