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सोमवार, 22 नवंबर 2021

मुक्तिका, कुण्डलिया, दोहा, अनुप्रास

मुक्तिका
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लोहा हो तो सदा तपाना पड़ता है
हीरा हो तो उसे सजाना पड़ता है
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गजल मुक्तिका तेवरी या गीतिका कहें
लय को ही औज़ार बनाना पड़ता है
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कथन-कहन का हो अलहदा तरीका कुछ
अपने सुर में खुद को गाना पड़ता है
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बस आने से बात नहीं बनती लोगों
वक्त हुआ जब भी चुप जाना पड़ता है
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चूक जरा भी गए न बख्शे जाते हैं
शीश झुकाकर सुनना ताना पड़ता है
***
मुक्तिका
रामसेवक राम सेवक हो गए
*
कुछ कहा जाता नहीं है क्या कहूँ?
मित्र! तुमको याद कर पल-पल दहूँ।
चाहता है मन कि बनकर अश्रु अब
नर्मदा में नेह की गुमसुम बहूँ
मोह बंधन तोड़कर तुम चल दिए
याद के पन्ने पलटकर मैं तहूँ
कौन समझेगा कि क्या नाता रहा
मित्र! बिछुड़न की व्यथा कैसे सहूँ?
रामसेवक राम सेवक हो गए
हाथ खाली हो गए यादें गहूँ
***

कार्यशाला-
विधा - कुण्डलिया छंद
कवि- भाऊ राव महंत
०१
सड़कों पर हो हादसे, जितने वाहन तेज
उन सबको तब शीघ्र ही, मिले मौत की सेज।
मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता
जीवन का तब वेग, हमेशा थम ही जाता।
कह महंत कविराय, आजकल के लड़कों पर
चढ़ा हुआ है भूत, तेज चलते सड़कों पर।।
१. जितने वाहन तेज होते हैं सबके हादसे नहीं होते, यह तथ्य दोष है. 'हो' एक वचन, हादसे बहुवचन, वचन दोष. 'हों' का उपयोग कर वचन दोष दूर किया जा सकता है।
२. तब के साथ जब का प्रयोग उपयुक्त होता है, सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज।
३. सबको मौत की सेज नहीं मिलती, यह भी तथ्य दोष है। हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज
४. मौत की सेज मिलने के बाद यम का बुलावा या यम का बुलावा आने पर मौत की सेज?
५. जीवन का वेग थमता है या जीवन (साँसों) की गति थमती है?
६. आजकल के लड़कों पर अर्थात पहले के लड़कों पर नहीं था,
७. चढ़ा हुआ है भूत... किसका भूत चढ़ा है?
सुझाव
सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज
हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज।
मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता
जीवन का रथचक्र, अचानक थम सा जाता।
कह महंत कविराय, चढ़ा करता लड़कों पर
जब भी गति का भूत, भागते तब सड़कों पर।।
०२
बन जाता है हादसा, थोड़ी-सी भी चूक
जीवन की गाड़ी सदा, हो जाती है मूक।
हो जाती है मूक, मौत आती है उनको
सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको।
कह महंत कविराय, सुरक्षित रखिए जीवन
चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत बन।।
१. हादसा होता है, बनता नहीं। चूक पहले होती है, हादसा बाद में क्रम दोष
२. सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको- अभिव्यक्ति दोष
३. रखिए, मत बन संबोधन में एकरूपता नहीं
हो जाता है हादसा, यदि हो थोड़ी चूक
जीवन की गाड़ी कभी, हो जाती है मूक।
हो जाती है मूक, मौत आती है उनको
सड़कों पर देखा चलते इतराकर जिनको।
कह महंत कवि धीरे चल जीवन रक्षित हो
चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत हो।
*
दोहा सलिला:
कुछ दोहे अनुप्रास के
संजीव
अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
*
अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
*
अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
*
आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
*
अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
*
अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
*
अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
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कुंडलिया छंद
*
सत्य अनूठी बात, महाराष्ट्र है राष्ट्र में।
भारत में ही तात, युद्ध महाभारत हुआ।।
युद्ध महाभारत हुआ, कृष्ण न पाए रोक।
रक्तपात संहार से, दस दिश फैला शोक।।
स्वार्थ-लोभ कारण बने, वाहक बना असत्य।
काम करें निष्काम हो, सीख मिली चिर सत्य।।
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