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रविवार, 14 नवंबर 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
जब तक मन में चाह थी, तब तक मिली न राह.
राह मिली अब तो नहीं, शेष रही है चाह.
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राम नाम की चाह कर, आप मिलेगी राह.
राम नाम की राह चल, कभी न मिटती चाह.
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दुनिया कहती युक्ति कर, तभी मिलेगी राह.
दिल कहता प्रभु-भक्ति कर, मिल मुक्ति बिन चाह.
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भटक रहे बिन राह ही, जग में सारे जीव.
राम-नाम की राह पर, चले जीव संजीव.
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मुक्तक
लहर में भँवर या भँवर में लहर है?
अगर खुद न सम्हले, कहर ही कहर है.
उसे पूजना है, जिसे चाहना है
भले कंठ में हँस लिए वह ज़हर है
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१४-११-२०१७

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