*
कली रखे यदि शूल, कुसुम वीर हो देश में।
कोई सके न भूल, देख बदनीयत से उसे।।
*
तम का करते अंत, तभी रहें जब साथ मिल।
दीपक बाती तेल, ज्योति न होते जब अलग।।
मार मिलातीं धूल, असुरों को दुर्गा शुभे।
सिंह देता रद हूल, कर गर्जन अरि वक्ष में।।
*
चाह रहा है देश, नारी बदले भूमिका।
धारे धारिणी वेश, शुभ-मंगल कर भूमि का।।
वन हों नदिया कूल, शांति स्वच्छता पा विहग।
नभ-सागर मस्तूल, फहराए निज परों के।।
*
पंचतत्व रख शुद्ध, पंच पर्व हम मनाएँ।
करें अनय से युद्ध, विजय विनय को दिलाएँ।।
सुख सपनों में झूल, समय गँवाएँ व्यर्थ मत।
जमा जमीं में मूल, चलो!छुएँ आकाश हम।।
***
कली रखे यदि शूल, कुसुम वीर हो देश में।
कोई सके न भूल, देख बदनीयत से उसे।।
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तम का करते अंत, तभी रहें जब साथ मिल।
दीपक बाती तेल, ज्योति न होते जब अलग।।
मार मिलातीं धूल, असुरों को दुर्गा शुभे।
सिंह देता रद हूल, कर गर्जन अरि वक्ष में।।
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चाह रहा है देश, नारी बदले भूमिका।
धारे धारिणी वेश, शुभ-मंगल कर भूमि का।।
वन हों नदिया कूल, शांति स्वच्छता पा विहग।
नभ-सागर मस्तूल, फहराए निज परों के।।
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पंचतत्व रख शुद्ध, पंच पर्व हम मनाएँ।
करें अनय से युद्ध, विजय विनय को दिलाएँ।।
सुख सपनों में झूल, समय गँवाएँ व्यर्थ मत।
जमा जमीं में मूल, चलो!छुएँ आकाश हम।।
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