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मंगलवार, 23 नवंबर 2021

दोहा, गीत

दोहा सलिला 

दिल से दिल की बात हो, जब तब रहता मौन। 
मौन भंग हो तो लगे, पड़ा खीर में नौन।। 
*
काैन किसका सगा है, ठगता हर संबंध।  
नेह न नाता नित्य है, छलता बन अनुबंध।।  
*
चिल्लाने से नियति कब, सुनती? व्यर्थ पुकार। 
मौन भाव से टेर प्रभु, सुन करते उद्धार।। 
***
गीत:
किरण कब होती अकेली…
*
किरण कब होती अकेली?
नित उजाला बाँटती है
जानती है सूर्य उगता और ढलता,
उग सके फिर
सांध्य-बेला में न जगती
भ्रमित होए तिमिर से घिर
चन्द्रमा की कलाई पर,
मौन राखी बाँधती है
चाँदनी भेंटे नवेली
किरण कब होती अकेली…
*
मेघ आच्छादित गगन को
देख रोता जब विवश मन
दीप को आ बाल देती,
झोपड़ी भी झूम पाए
भाई की जब याद आती,
सलिल से प्रक्षाल जाए
साश्रु नयनों से करे पुनि
निज दुखों का आचमन
वेदना हो प्रिय सहेली
किरण कब होती अकेली…
*
पञ्च तत्वों में समाये
पञ्च तत्वों को सुमिरती
तीन कालों तक प्रकाशित
तीन लोकों को निहारे
भाईचारा ही सहारा
अधर शाश्वत सच पुकारे
गुमा जो आकार हो साकार
नभ को चुप निरखती
बुझती अनबुझ पहेली
किरण कब होती अकेली…
***


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