कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

तेवरी

तेवरी के तेवर :
संजीव 'सलिल'
१.
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपड़ी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..
नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
***********
२.
दिल ने हरदम चाहे फूल.
पर दिमाग ने बोए शूल..
मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..
बहुत दोगली है दुनिया
तनिक न भाते इसे उसूल..
पैर मत पटक नाहक तू
सर जा बैठे उड़कर धूल..
बने तीन के तेरह कब?
डुबा दिया अपना धन मूल..
मँझधारों में विमल 'सलिल'
गंदा करते हम जा कूल..
धरती पर रख पैर जमा
'सलिल' न दिवास्वप्न में झूल..
****************
३.
खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम..
जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
टन-टन रुचे न मन्दिर की.
राम न भाते, भाती रम..
***

कोई टिप्पणी नहीं: