गणितीय मुक्तक:
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बिंदु-बिंदु रखते रहे, जुड़ हो गयी लकीर।
जोड़ा किस्मत ने घटा, झट कर दिया फकीर।।
कोशिश-कोशिश गुणा का, आरक्षण से भाग-
रहे शून्य के शून्य हम, अच्छे दिन-तकदीर।।
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खड़ी सफलता केंद्र पर, परिधि प्रयास अनाथ।
त्रिज्या आश्वासन मुई, कब कर सकी सनाथ।।
छप्पन इंची वक्ष का निकला भरम गुमान-
चाप सिफारिश का लगा, कभी न श्रम के हाथ।।
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गुणा अधिक हो जोड़ से, रटा रहे तुम पाठ।
उल्टा पा परिणाम हम, आज हुए हैं काठ।।
एक गुणा कर एक से कम, ज्यादा है जोड़-
एक-एक ग्यारह हुए जो उनके हैं ठाठ।।
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संजीव
४.११.२०१८
७९९९५५९६१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 4 नवंबर 2021
गणितीय मुक्तक
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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