हिंदी व्याकरण : ऋ और रि
ऋ वर्ण संस्कृत का मूल वर्ण है जिसे हिंदी देवनागरी लिपि में भी उसी रूप मे लिखा जाता है। ऋ को स्पष्ट रूप से बताने के लिए कुछ बातों का उल्लेख करना चाहती हूँ।
- ऋ एक स्वर है और घोष ध्वनि है।
- ऋ का उच्चारण मूर्धन्य वर्ग में आता है जिसमें ट, ठ, ड, ढ, ण आता है। इसमें जिह्वा का अग्र भाग तालु के मध्य भाग को स्पर्श करता है।
- ऋ की मात्रा (ृ ) होती है ।जैसे गृ और शब्द बनेगा गृह । मृ से मृग। पृ से पृथ्वी ।
- ऋ में कोई मात्रा नहीं लगाई जाती है। ऋी या ऋि लिखना सर्वथा गलत होगा। संस्कृत का मूल रूप होने के कारण इसे ऋ ही लिखते हैं। इससे बनने वाले शब्द हैं : ऋषि , ऋतु, ऋण, ऋचा ,ऋग्वेद आदि ।
रि एक व्यंजन है जिसका उच्चारण र + इ( ह्रस्व) है।
र में ह्रस्व इ की मात्रा लगाने से रि बनता है। जैसे : रिवाज, रिझाना।
र में दीर्घ ई की मात्रा लगाएंगे तो री बनता है। जैसे : रीति, रीता ।
इसलिए ऋ और रि दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। अत: ऋषि की जगह रिषी लिखना गलत होगा। सबने पढ़ा भी होगा किताबों में ऋ से ऋषि शब्द ही बताया जाता है।
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