कुल पेज दृश्य

सोमवार, 29 जून 2020

पद- दोहा

पद
छंद: दोहा.
*
मन मंदिर में बैठे श्याम।।
नटखट-चंचल सुकोमल, भावन छवि अभिराम।
देख लाज से गड़ रहे, नभ सज्जित घनश्याम।।
मेघ मृदंग बजा रहे, पवन जप रहा नाम।
मंजु राधिका मुग्ध मन, छेड़ रहीं अविराम।।
छीन बंसरी अधर धर, कहें न करती काम।
कहें श्याम दो फूँक तब, जब मन हो निष्काम।।
चाह न तजना है मुझे, रहें विधाता वाम।
ये लो अपनी बंसरी, दे दो अपना नाम।।
तुम हो जाओ राधिका, मुझे बना दो श्याम।
श्याम थाम कर हँस रहे, मैं गुलाम बेदाम।।
***
२९.६.२०१२, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

कोई टिप्पणी नहीं: