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मंगलवार, 23 जून 2020

मुक्तक

🌱 मुक्तक 🍀🌵
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हम हैं धुर देहाती शहरी दंद-फंद से दूर
पुलकित होते गाँव हेर नभ, ऊषा, रवि, सिंदूर
कलरव-कलकल सुन कर मन में भर जाता है हर्ष
किलकिल तनिक न भाती, घरवाली लगती है हूर. *
तुम शहरी बंदी रहते हो घर की दीवारों में
पल-पल घिरे हुए अनजाने चोरों, बटमारों में
याद गाँव की छाँव कर रहे, पनघट-अमराई भी
सोच परेशां रहते निश-दिन जलते अंगारों में
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