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गुरुवार, 25 जून 2020

विमर्श: पुरुष सामंती हैं और स्त्री?

विमर्श:
कृष्णा अग्निहोत्री: ९०% पुरुष सामंती धारणा के हैं. आपकी क्या राय है?
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और स्त्रियाँ? शत प्रतिशत... विवाह होते ही स्वयं को हरः स्वामिनी मानकर पति के पूरे परिवार को बदलने या बेदखल करने की कोशिश, सफल न होने पर शोषण का आरोप, सम्बन्ध न निभा पाने पर खुद को न सुधार कर शेष सब को दंडित करने की कोशिश. जन्म से मरण तक खुद को पुरुष से मदद पाने का अधिकारी मानेंगी और उसी पर निराधार आरोप भी लगाएँगी. पिता की ममता, भाई का साथ, मित्र का अपनापन, पति का संरक्षण, ससुराल की धन-संपत्ति, बच्चों का लाड़, दामाद का आदर सब स्त्री का प्राप्य है किन्तु यह देनेवाला सामन्ती, शोषक, दुर्जन और न जाने क्या-क्या है. पुरुष प्रधान समाज में एक अकेली स्त्री आकर पति गृह की स्वामिनी हो जाती है जबकि पुरुष अपनी ससुराल में केवल अतिथि ही हो पाता है. यदि स्त्री प्रधान समाज हो तो स्त्री पुरु को जन्म ही न लेने दे या जन्मते ही दफना दे. इसी लिए प्रकृति ने पुरुष का अस्तित्व बचाए रखने के लिए प्राणी जगत में पुरुष को सबल बनाया.
२५-६-२०१७ 

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