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रविवार, 28 जून 2020

हिंदी व्याकरण : रस

हिंदी व्याकरण : रस क्या है?
रस बहुअर्थी शब्द है। काव्य शास्त्र में काव्य को पढ़ने में पाठक को, दर्शक को देखने में और श्रोता को सुनने में जो आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है उसे रस कहते हैं। रस का अर्थ सार तत्व भी लिया जाता है। फलों का सार तत्व रस है। 
आचार्य भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र नामक ग्रन्थ की रचना की थी , इसी ग्रन्थ में उन्होंने सबसे पहले रसों की व्याख्या की थी । इसलिए रस के जनक भरत मुनि कहलाए ।
भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या ८ होती हैं ।
९ वां रस शांत है , जिसके जनक उद्धभट है ।
वात्सल्य रस को विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने दिया है । ( १० वां रस)
रूप गोस्वामी ने भक्ति रस को मान्यता दी । ( ११ वाँ रस)
रमेश राज विरोध को १२ वां रस कहते हैं।  
श्रृंगार रस के दायरे में ही भक्ति एवं वात्सल्य रस आ जाते है ।
इसलिए रसों की संख्या ९ मानना उचित है ।
रसों के अंग = रस के ४ अंग होते हैं ।
  1. स्थायी भाव
  2. विभाव१ प्रकार होते हैं ।
  1. श्रृंगार रस
  2. हास्य रस
  3. करूण रस
  4. रौद्र रस
  5. वीभत्स रस
  6. भयानक रस
  7. अद्भुत रस
  8. वीर रस
  9. शांत रस
  10. वात्सल्य रस
  11. भक्ति रस
  12. १२. विरोध रस।

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