ॐ
दोहा शतक
आभा सक्सेना 'दूनवी'
चित्रगुप्त प्रभु! आइए, मन-मंदिर में नाथ।
सत-शिव-सुंदर लेखनी, रचे उच्च हो माथ।।
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सत-शिव-सुंदर लेखनी, रचे उच्च हो माथ।।
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टिप-टिप बूँदों की हुई, जब प्रिय बिन बरसात।
अंदर भी बारिश हुई, काटे कटी न रात।।
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धनतेरस के पर्व पर, कर लें कार्य महान।
निर्धन को बर्तन करें, दान आप श्रीमान।।
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दीवाली लाए सदा, खुशियाँ अपरंपार।
खील-बताशे कह रहे, हम खुश आकर द्वार।।
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लक्ष्मी संग गणेश को , पूजें खुश हों नाथ।
मिले संपदा दूर हो, विघ्न नवाएँ माथ।।
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होई करवा चौथ का, सत्य अनोखा मेल।
पर्वों की जैसे चली, धकापेल अब रेल।।
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इस दीवाली लग रही, फीकी सी सब ओर।
सीमा पर प्रहरी तकें, एक सुहानी भोर।।
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आँखों में प्रभु बस रहे, देते हैं आनन्द।
सच्ची सुख अनुभूति हो,पाकर परमानंद।।
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सच्ची सुख अनुभूति हो,पाकर परमानंद।।
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यादों के झूले दिए, मन-रस्सी पर डार।बचपन आया झूलने, माँ आँगन कर पार।।
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ईंट रेत सीमेंट से, निर्मित भव्य मकान।पापा के जाते हुआ, बेगाना-वीरान।।
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कानों के कच्चे मनुज, करते हैं अवरोध।
सुनी-सुनाई बात पर, नाहक ही प्रतिरोध।।
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सुनी-सुनाई बात पर, नाहक ही प्रतिरोध।।
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यादों के सुर ताल ने छेड़ा आज अलाप।
मेरी डोली में चला माँ का रुदन विलाप।।
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मेरी डोली में चला माँ का रुदन विलाप।।
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माँ-बेटी पढ़ सके तो, पढ़ लेता परिवार।
जले दीप से दीप तो, घर में हो उजियार।।
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जले दीप से दीप तो, घर में हो उजियार।।
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सूख गईं नदियाँ सभी, सूख गये हैं खेत।
तपता हुआ अलाव है, गंगा जी की रेत।।
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तपता हुआ अलाव है, गंगा जी की रेत।।
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पगफेरी छत पर करे, पायल पहने रात।
नूपुर की रुनझुन कहे, पूज रही अहिवात।।
नूपुर की रुनझुन कहे, पूज रही अहिवात।।
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हरिद्वार में हो रहे, होटल सारे सील।
गंगा मैली हो रही, हम सब की है ढील।।
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गंगा मैली हो रही, हम सब की है ढील।।
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चंदा करता साँझ से, मीठी सी मनुहार।
आना मेरे गाँव दूँ, तारों का उपहार।।
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आना मेरे गाँव दूँ, तारों का उपहार।।
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कुछ सुत श्रवण कुमार बन, करें दिखावा रोज।
माँ से कितना प्यार है, करें न मन में खोज।।
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माँ से कितना प्यार है, करें न मन में खोज।।
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बेटी आई मायके, नेह किवरियाँ खोलI
कुछ गुम-सुम सी लग रही, फूट न पाए बोल।।
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कुछ गुम-सुम सी लग रही, फूट न पाए बोल।।
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पीली पड़ती दूब सब, पीले पड़ते खेत।
इस गर्मी ने झोंक दी, मौसम, आँखों रेत।।
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इस गर्मी ने झोंक दी, मौसम, आँखों रेत।।
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सूखे पत्ते गिर पड़े, बेचारे निर्दोष।
खाद न पानी दे रहा, माली है मदहोश।।
खाद न पानी दे रहा, माली है मदहोश।।
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खेल-खिलौने खेलकर, मनुज खेलता खेल।
खेल-खेल में कर लिया, जीवन-पथ बेमेल।।
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खेल-खेल में कर लिया, जीवन-पथ बेमेल।।
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पुरवाई ने मेघ को, दी है चिठिया लाल।
अब की सावन में बरस, भर नदियाँ-ताल।।
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अब की सावन में बरस, भर नदियाँ-ताल।।
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जीवन एक मृृदंग है, करे नित्य हुड़दंग।
जीवन की इस थाप से, हो मत जाना तंग।।
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जीवन की इस थाप से, हो मत जाना तंग।।
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पहचानी सी आहटें करतीं मुझे प्रफुल्ल।
पिय आवन की घड़ी है, मन होता उत्फुल्ल।।
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पिय आवन की घड़ी है, मन होता उत्फुल्ल।।
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कान छिदे लड्डू बँटे, घर भर में त्यौहार।
नानी लाई बालियाँ, मामा दें उपहार।।
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नानी लाई बालियाँ, मामा दें उपहार।।
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दोहे को परिशुद्ध कर, कर देते उद्धार।
मेरे मन में गुरु बसे, नमन करूँ हर बार।।
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मेरे मन में गुरु बसे, नमन करूँ हर बार।।
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आँखों में लघु किरकिरी पल-पल देती त्रास।
चपल हठीली रश्मियाँ, ज्यों देखे खग्रास।।
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चपल हठीली रश्मियाँ, ज्यों देखे खग्रास।।
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रीत गए हैं कूप सब, सूख गए तालाब।
जेठ बजाए बाँसुरी, जी न सके सुरखाब।।
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जेठ बजाए बाँसुरी, जी न सके सुरखाब।।
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जिए सड़क पर मुंबई, दौड़ रही दिन-रात।
बड़ा-पाव खाकर करे, चौपाटी पर बात।।
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बड़ा-पाव खाकर करे, चौपाटी पर बात।।
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बहती धारा गृहस्थी, ग्रहणी नौका काठ।
पति-बच्चे पतवार हैं, तालमेल से ठाठ।।
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पति-बच्चे पतवार हैं, तालमेल से ठाठ।।
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हम ऐसे अनुबंध पर, सही कराएँ आज।
मानव मानव बंधु हों, बने न शत्रु समाज।।
मानव मानव बंधु हों, बने न शत्रु समाज।।
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अपने अंदर ढूँढ ली, एक सुनहरी चाह I
अपने अंदर ढूँढ ली, एक सुनहरी चाह I
अंधे को जैसे मिली, पहचानी सी राह।।
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आँख मिलाए श्याम पर, मिल न पा रहे नैन।
राधा आँख चुरा रहीं, मन उन्मन बेचैन।।
राधा आँख चुरा रहीं, मन उन्मन बेचैन।।
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जेठ जेठ हैं एक से, गर्माते हैं खूब।
पर्दा कर पर्दा लगा, बहुरिया ऊब।।
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पर्दा कर पर्दा लगा, बहुरिया ऊब।।
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बहती धारा गृहस्थी, घरनी धारा-नीर।
पति-बच्चे पतवार प्रभु!, पार लगा धार धीर।।
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पति-बच्चे पतवार प्रभु!, पार लगा धार धीर।।
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पंछी अब भी कूजते , मधुर नहीं आवाज़।
गर्मी से व्याकुल हुए, भूल गये परवाज़।।
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पीले पत्ते कह रहे, यही हमारा भाग्यI
विधना को मंजूर था, गिरे यही दुर्भाग्य।।
विधना को मंजूर था, गिरे यही दुर्भाग्य।।
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चुन काफिया-रदीफ़ लो, मन माफिक सरकार|
ग़ज़ल बने चुटकी बजा, हों सुंदर अशआर।।
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नई बहू शरमा रही, घूंघट पट की ओट।
गये बराती गाँव को, सास निकाले खोट।।
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गये बराती गाँव को, सास निकाले खोट।।
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श्रमिक नहीं कहना उन्हें, जिनने जोते खेत।
धरा-पुत्र कहिये उन्हें, हँस सम्मान समेत।।
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धरा-पुत्र कहिये उन्हें, हँस सम्मान समेत।।
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मन वीणा के तार पर, जब होती झंकार।
यति, गति, लय, मिल साथ हों, दोहा ले आकार।।
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यति, गति, लय, मिल साथ हों, दोहा ले आकार।।
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सूरज में दिन-दिन बढ़े, गरमागरम प्रवाह।
लू भी थककर चूर है, छाया रही कराह।।
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लू भी थककर चूर है, छाया रही कराह।।
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लिखते-लिखते ही करूँ, दोहों का अभ्यास।
कालजयी दोहे कहें, अनथक करो प्रयास।।
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कालजयी दोहे कहें, अनथक करो प्रयास।।
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पपड़ी सी पपड़ा, गयी नदी किनारे छाँव।
जेठ दुपहरी ढूँढती, पीपल नीचे ठाँव।।
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जेठ दुपहरी ढूँढती, पीपल नीचे ठाँव।।
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सूरज की पहली किरन, जल से करे किलोल।
मधुर छटायें खोजतीं, प्रेम पगा माहौल।।
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मधुर छटायें खोजतीं, प्रेम पगा माहौल।।
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निकले पपड़ी परत सी, गरम धूप छतनार।
जेठ दुपहरी खिल रही, लाल रंग कचनार।।
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जेठ दुपहरी खिल रही, लाल रंग कचनार।।
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मन-पनघट पर कर रही, कविता सुर में बात।
लय, गति-यति को साधते, होने आया प्रात।।
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लय, गति-यति को साधते, होने आया प्रात।।
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आँख आँख से कह रही, कह कुछ मन की बात।
आँखों से क्यों हो रहीं, दिवस–रात बरसात।।
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आँखों से क्यों हो रहीं, दिवस–रात बरसात।।
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तू जब नयनों में बसा, रहा न तेरा नेह।
बरखा बाहर हो रही, किन्तु न मन में मेह।।
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अंतस में न समेटिये , चिंताओं के जाल।
कह देना ही है उचित, मन होता खुशहाल।।
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कह देना ही है उचित, मन होता खुशहाल।।
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जेठ दुपहरी तवे सी, जलती भट्टी साँझ।
चाँद निकलता रात को, किन्तु चांदनी बाँझ।।
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चाँद निकलता रात को, किन्तु चांदनी बाँझ।।
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है बनारसी पान का, स्वाद बहुत ही नीक।
जिव्हा स्वाद ले झूमकर, कुरता ढोए पीक।।
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जिव्हा स्वाद ले झूमकर, कुरता ढोए पीक।।
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पाती दई पठाय है, भेज दिया है तार।
बेटी अबकी आ रही माँ बाबूजी द्वार।।
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बेटी अबकी आ रही माँ बाबूजी द्वार।।
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जेठ-दुपहरी तप रही, कुम्हलाती है शाम।
चाँद न ठंडक दे सका, हाय! विधाता वाम।।
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चाँद न ठंडक दे सका, हाय! विधाता वाम।।
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गरज-तरजकर कर रहे, बादल दल आवाज।
बरखा की शादी करें, खूब सजाएँ साज।।
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सूखी रोटी में मिले, माँ-हाथों से स्वाद।
भू-नभ से आशीष दें, सबकी है फरियाद
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भू-नभ से आशीष दें, सबकी है फरियाद
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काला चश्मा आँख पर, झट से हुआ सवार।
धूप न लगती धूप सी, धूमिल सा संसार।।
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धूप न लगती धूप सी, धूमिल सा संसार।।
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दिग-दिगंत तक हो रही, मातृ दिवस की बात।
माताएँ बेबस पडीं, चल बदलें हालात।।
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माताएँ बेबस पडीं, चल बदलें हालात।।
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हर आहट से बँध रही, मुझे पिया की आस।
पल युग सम कटता नहीं, कब आएँ प्रिय पास।।
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पल युग सम कटता नहीं, कब आएँ प्रिय पास।।
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माँ सम सुंदर चंद्र है, ताप-पीर हर मौन।
अमिय-किरण बरसा रहा, कैसे बूझे कौन।।
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अमिय-किरण बरसा रहा, कैसे बूझे कौन।।
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पगफेरी छत पर करे, पायल पहने रात।
नूपुर की रुनझुन कहे, प्रिय को चाहे गात।।
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नूपुर की रुनझुन कहे, प्रिय को चाहे गात।।
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बादल ने भिजवा दिया, पत्र पवन के हाथ।
पिय लिखते ही रह गये, मन की मन में बात।।
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पिय लिखते ही रह गये, मन की मन में बात।।
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आवारा बादल करे, मस्त पवन से बात।
साथ-साथ क्यों तू चले, दिन हो या फिर रात।।
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साथ-साथ क्यों तू चले, दिन हो या फिर रात।।
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बेटा ठंडी छाँव है, बहू गुनगुनी धूप।
बेटे के कारण मिले, ऐसी भेंट अनूप।।
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बेटे के कारण मिले, ऐसी भेंट अनूप।।
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मित्र फेस बुक के सभी, बने एक परिवार।
ऐसे मित्रों को नमन, स्वागत बारंबार।।
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ऐसे मित्रों को नमन, स्वागत बारंबार।।
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खिड़की पर पर्दे पड़े, बेपर्दा है धूप।
दामन सूरज से बचा, छिपती साँझ अनूप।।
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दामन सूरज से बचा, छिपती साँझ अनूप।।
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काँप रही है दीप-लौ ,धुआँ निकलता श्याम।
जीवन का ऋगवेद पढ़, होगा समय न वाम।।
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जीवन का ऋगवेद पढ़, होगा समय न वाम।।
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नीम पड़े झूले कहें, सावन कुछ दिन बाद।
आना बिटिया मायके, माँ करती है याद।।
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आना बिटिया मायके, माँ करती है याद।।
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वाणी में मधु घोलिये, करिए मीठी बात।
बजे चैन की बाँसुरी, पुलकित हो मन गात।।
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बजे चैन की बाँसुरी, पुलकित हो मन गात।।
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सूरज खिड़की पर खड़ा, देता है आवाज।
जाग मुसाफिर भोर में, करो सुबह के काज।।
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जाग मुसाफिर भोर में, करो सुबह के काज।।
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जेठ न दौड़े आजकल, चलता कछुआ चाल।
गर्मी की इस मार ने, किया बुरा है हाल।।
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गर्मी की इस मार ने, किया बुरा है हाल।।
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तारे-जुगनू का मिलन, अजब-अनूठा मेल।
दोनों टिमटिम कर रहे, ज्योति-किरण का खेल।।
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दोनों टिमटिम कर रहे, ज्योति-किरण का खेल।।
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अंतस घायल हो गया, सही न जाए पीर।
तीक्ष्ण व्यंग की मार ने, दर्द दिया गंभीर।।
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तीक्ष्ण व्यंग की मार ने, दर्द दिया गंभीर।।
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आघातों की बारिशें , फिसलन चारों ओर।
फिसलेंगे दादुर सभी, करते नाहक शोर।।
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फिसलेंगे दादुर सभी, करते नाहक शोर।।
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बीज पिता माता तना, बेटा सुदृढ़ शाख।
बेटी शोभित सुमन सी, संग रहें तो साख।।
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बेटी शोभित सुमन सी, संग रहें तो साख।।
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बेटा तो है शाख सा, बेटी चिपकी डार।
वृद्ध वृक्ष माता-पिता ,जीवन का हैं सार।।
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वृद्ध वृक्ष माता-पिता ,जीवन का हैं सार।।
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बेटा घर की शान है, बेटी घर का मान।
जिस घर दोनों शोभते, दुनिया दे सम्मान॥
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जिस घर दोनों शोभते, दुनिया दे सम्मान॥
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आँगन की शोभा बहू, बेटा घर का द्वार।
बेटी ज्योतित दीप सम, जामाता उजियार।।
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बेटी ज्योतित दीप सम, जामाता उजियार।।
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अलस्सुबह उठ चाय में, घोला प्यार-दुलार।
हाय विधाता! माँगते, प्रियतम क्यों अख़बार।।
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हाय विधाता! माँगते, प्रियतम क्यों अख़बार।।
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धूप कुलाँचे मारती, ढूँढे ठंडी छाँव।
पीपल तरु की शरण जा, तभी मिलेगी ठाँव।।
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पीपल तरु की शरण जा, तभी मिलेगी ठाँव।।
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धूप निगोड़ी सो रही, मूँड़ उघारे आज।
पीपल झौरे बैठकर, बिसरी परदा-लाज।।
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आँख झुकी पति रीझते, आँख उठी हों मुग्ध।
पलकें मुँदती देखकर, हुए क्षुब्ध चुप दग्ध।।
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पीपल झौरे बैठकर, बिसरी परदा-लाज।।
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आँख झुकी पति रीझते, आँख उठी हों मुग्ध।
पलकें मुँदती देखकर, हुए क्षुब्ध चुप दग्ध।।
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रिश्तों की फसलें उगीं, खरपतवारी खूब।
उम्मीदी आँधी चली, कुम्हलाई है दूब।।
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उम्मीदी आँधी चली, कुम्हलाई है दूब।।
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जुगनू की है रोशनी, भले बहुत ही अल्प।
फिर भी जुगनू खोजता, कोई ठोस विकल्प।।
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जीवन पापड़ हो गया, बेल-बेल दिन रात।
थकी न लेकिन मैं रुकी, यह मेरी औकात।।
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थकी न लेकिन मैं रुकी, यह मेरी औकात।।
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चिंतन की द्रुत गामिनी, चले तीर की भांति।
सद्विचार बाहर निकल, पा जाता है ख्याति।।
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कानाफूसी मत करें, हो जाता मन-भंग।
बिना बात की बात का, बनता व्यर्थ प्रसंग।।
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सद्विचार बाहर निकल, पा जाता है ख्याति।।
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कानाफूसी मत करें, हो जाता मन-भंग।
बिना बात की बात का, बनता व्यर्थ प्रसंग।।
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पलक द्वार पर है खड़ी, नींद सरीखी नार।
कब आएँगे साजना, ले सपनों का हार।।
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कब आएँगे साजना, ले सपनों का हार।।
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माया का सब खेल है, माया से है जीत।
माया बिन कुछ भी नहीं, यही जगत की रीत।।
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माया बिन कुछ भी नहीं, यही जगत की रीत।।
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राजनीति की भीड़ में, चीख रही है चीख।
अब तो हद ही हो गयी, जान माँगती भीख।।
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अब तो हद ही हो गयी, जान माँगती भीख।।
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आस पखेरू उड़ चला, भरता नयी उड़ान।
ऊँचा उड़ दिखला रहा, जग को अपनी शान।।
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ऊँचा उड़ दिखला रहा, जग को अपनी शान।।
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केवट सुरसरि तीर पर, धोए-पोंछे पाँव।
राम लखन सिय से कहे, फिर-फिर आना गाँव।।
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राम लखन सिय से कहे, फिर-फिर आना गाँव।।
*
रेतीले पर्वत यहाँ, सूखे की है मार।
रेत फिसलती पाँव से, लू की पैनी धार।।
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रेत फिसलती पाँव से, लू की पैनी धार।।
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सागर है दोहा विधा, बहुत तरह के रत्न।
मोती पाने के लिए, करूँ निरंतर यत्न।।
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मोती पाने के लिए, करूँ निरंतर यत्न।।
*
आस पखेरू उड़ चला, भरता नई उड़ान।
जग को वह दिखला रहा, अपनी ऊँची शान।।
*
जग को वह दिखला रहा, अपनी ऊँची शान।।
*
तप्केश्वेर में महादेव, बसते देहरादून।
बूँद गिरें शिवलिंग पर, सबको मिले सुकून।।
बूँद गिरें शिवलिंग पर, सबको मिले सुकून।।
*
राम तुम्हारे द्वार पर, चढ़ा न पाई भेंट।
अंजुरी भर श्रृद्धा लिए, आई खाली टेंट।।
अंजुरी भर श्रृद्धा लिए, आई खाली टेंट।।
*
दोहा लिखने की कला, सिखला दो गुरु आज।
मैं भी दोहा लिख करूँ, हिंदी माँ का काज।।
*मैं भी दोहा लिख करूँ, हिंदी माँ का काज।।
तू-मैं दोनों एक हैं, तू-तू मैं-मैं व्यर्थ।
'आभा' आ भा जब कहें, तब जीवन का अर्थ।। १००
*
*
कुछ और दोहे
माँ की कमी न दूर हो, माँ के बिन सब सून।
माँ जब तक जीवित रही, घर था देहरादून।।
माँ जब तक जीवित रही, घर था देहरादून।।
*
गीत लिखे गज़लें लिखीं, छपे-भरे अख़बार।
छूट रहीं क्यों गलतियाँ, दोहे में हर बार।।
*
मन व्यथित अब हो गया ,ना है मन को चैन।
*
मन व्यथित अब हो गया ,ना है मन को चैन।
दोहा लिखना छोड़ कर, प्रभु भजूं दिन रैन।।
*
*
जीवन बीहड़ हो गया, नहीं एक भी पेड़।
बहती धारा भक्ति की, बन श्रद्धा की मेंड़।।
बहती धारा भक्ति की, बन श्रद्धा की मेंड़।।
*
दोपहरी भारी हुई, भारी होती सांझ।
अम्मा ने पकड़ा दिया, वधु को दूना काज।।
*
दोपहरी भारी हुई, भारी होती सांझ।
अम्मा ने पकड़ा दिया, वधु को दूना काज।।
*
चिंता चिता सदृृश्य है, चित्त धरहु प्रभु ओर।
प्रभुहिं नाम ही नाम है, प्रभु के बिना न ठौर।।
*
प्रभुहिं नाम ही नाम है, प्रभु के बिना न ठौर।।
*
गीत लिखे गजलें लिखीं, लिखे छन्द नव गीत।
लिख न सकी अब तक भजन, गयी जिन्दगी बीत।।
*
लिख न सकी अब तक भजन, गयी जिन्दगी बीत।।
*
सघन मनोरम कुञ्ज लखि, दृग निरखत ही जात।
ऐसी किरपा प्रभु करो, मनहिं बसे दिन रात।।
*
ऐसी किरपा प्रभु करो, मनहिं बसे दिन रात।।
*
पुरवाई चलने लगी, झूम रहे हैं पात।
वृक्ष वृक्ष करने लगा बूटा बूटा बात।।
*
वृक्ष वृक्ष करने लगा बूटा बूटा बात।।
*
उपवन के मेले लगे, भांति भांति के फूल।
कुछ छूने में रेशमी , कुछ के संग तिरशूल।।
*
रदीफ़ काफिया ढूंढ लो, मन माफिक सरकार|
ग़ज़ल बने चुटकी बजा, हों सुंदर अशआर||
*
*
शेरों के मुँह लग गया, इंसानों का खून।
हर दिन ही अब देखिये, देते इंसा भून।।
*
*
दल दल में तुम मत पड़ो, दल दल दल-दल भाँति।
दल से मुँह मत फेरना, दल के बिना न ख्याति।
*
गर्म कचौड़ी-पूरियाँ, कटहल, मिर्च अचार।
मीठे की मनुहार फिर, खीर जायकेदार।।
दल से मुँह मत फेरना, दल के बिना न ख्याति।
*
गर्म कचौड़ी-पूरियाँ, कटहल, मिर्च अचार।
मीठे की मनुहार फिर, खीर जायकेदार।।
*
गीत लिखे गज़लें लिखीं, छपे-भरे अख़बार।
छूट रहीं क्यों गलतियाँ, दोहे में हर बार।।
*
गीत लिखे गज़लें लिखीं, छपे-भरे अख़बार।
छूट रहीं क्यों गलतियाँ, दोहे में हर बार।।
*
मन व्यथित अब हो गया ,ना है मन को चैन।
दोहा लिखना छोड़ कर, प्रभु भजूं दिन रैन।।
*
दोहा लिखना छोड़ कर, प्रभु भजूं दिन रैन।।
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