कविता:
अहसास
*
'अहसास' तो अहसास है
वह छोटा-बड़ा
या पतला-मोटा नहीं होता.
'अनुभूति' तो अनुभूति है
उसका मजहब या धर्म नहीं होता.
'प्रतीति' तो प्रतीति है
उसका दल या वाद नहीं होता.
चाहो तो 'फीलिंग' कह लो
लेकिन कहने से पहले 'फील' करो.
किसी के घाव को हील करो.
कभी 'स्व' से आरम्भकर
'सर्व' की प्राप्ति करो.
अब तक अपने लिए जिए
अब औरों के लिए मरो.
देखोगे,
मौत का भय मिट गया है.
अँधेरे का घेरा सिमट गया है.
विष रुका गया है कंठ में
और तुम
हो गए हो नीलकंठ'
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें